
डॉ. पवन शर्मा
एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठतम् दर्जा दिया गया है। हर एक एकदाशी का अपना एक अलग महत्व होता है। इसी कड़ी में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि इस पूजा को पूरे विधान और वैदिक रिवाजों से करने पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है और दुखों से मुक्ति मिलती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जया एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु का स्मरण करने से पिशाच योनि का भय नहीं रहता है।
प्राचीन काल में नंदन वन में एक उत्सव का आयोजन किया गया था, जहां सभी देवतागणों के साथ ऋषि-मुनि भी पधारे थे। इस उत्सव में माल्यावान नाम का एक गंधर्व गायक और पुष्यवती नाम की एक नृत्यांगना नृत्य कर रही थी। पुष्यवती माल्यावान के रूप पर मोहित होकर उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। जिसका प्रभाव माल्यावान पर पड़ा तो वह भी पुष्यवती की ओर आकर्षित हो गया और सुरताल भूल गया। उसका संगीत लयविहीन होने से उत्सव का रंग फीका पड़ने लगा, जिससे देवराज इंद्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने दोनों को पृथ्वी लोक पर भेज दिया। संयोगवश से कष्टों के बीच एक बार माघ शुक्ल की जया एकादशी को दोनों ने भोजन नहीं किया, केवल कंद-मूल का सेवन किया। उन्हें इस बात का आभास ही नहीं था कि उस दिन जया एकादशी थी और अनजाने में उन्होंने जया एकादशी का व्रत कर लिया। यही वजह है कि भगवान विष्णु की कृपा उन पर हुई और वे दोनों पिशाच योनि से मुक्त हो गए। ऐसा माना जाता है कि जया एकादशी का व्रत करने से लोगों को पापों से मुक्ति मिलती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार जया एकादशी के दिन पवित्र मन में किसी प्रकार की द्वेष भावना को नहीं लाना चाहिए और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। मन में द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना नहीं लानी चाहिए। इसके अलावा नारायण स्तोत्र एवं विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना लाभकारी साबित होगा। पूरे विधि-विधान से व्रत का पालन करने पर माता लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु की कृपा बरसती है।
इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा-उपासना की जाती है। पद्मपुराण में निहित है कि जया एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सभी पापों और अधम योनि से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति होती है।
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