स्वामी विवेकानंद लगभग चार वर्ष तक विदेश में रहे। वहां उन्होंने लोगों के मन में भारत के बारे में व्याप्त भ्रमों को दूर किया तथा हिंदू धर्म की विजय पताका सर्वत्र फहरायी। जब वे भारत लौटे तो उनके स्वागत के लिए रामेश्वरम के पास रामनाड के समुद्र तट पर बहुत बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए। उनका जहाज जैसे ही दिखाई दिया, लोग उनकी जय-जयकार करने लगे। लेकिन स्वामी जी ने जहाज से उतरते ही सबसे पहले भूमि को दंडवत प्रणाम किया। फिर वे हाथों से धूल उठाकर अपने शरीर पर डालने लगे। जो लोग उनके स्वागत के लिए मालाएं आदि लेकर आये थे, वे हैरान रह गये। उन्होंने स्वामी जी से इसका कारण पूछा तो स्वामी जी ने कहा, ‘मैं जिन देशों में रहकर आया हूं, वे सब भोगभूमियां हैं। वहां के अन्न-जल से मेरा शरीर दूषित हो गया है। अतः मैं अपनी मातृभूमि की मिट्टी शरीर पर डालकर उसे फिर से शुद्ध कर रहा हूं।’
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार