मध्यप्रदेश जब राज्य बना तब प्रश्न उठा कि किस नेता को प्रथम मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी जाये? किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बनी। तीन नाम उभर कर सामने आये- पहला पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, दूसरा पंडित रविशंकर शुक्ल और तीसरा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा। कागज़ के तीन टुकड़ों पर ये नाम अलग-अलग लिखे गए। तीनों पुड़ियां आपस में खूब फेंटी गयी, फिर एक पुडि़या निकाली गयी जिस पर पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का नाम अंकित था। इस प्रकार तय पाया गया कि वे नवगठित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होंगे। तत्कालीन दिग्गज नेता माखनलाल जी के पास दौड़ पड़े। सबने उन्हें इस बात की सूचना और बधाई भी दी कि अब आपको मुख्यमंत्री के पद का कार्यभार संभालना है। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने सबको लगभग डांटते हुए कहा कि मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते ‘देवगुरु’ के आसन पर बैठा हूं। मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे ‘देवराज’ के पद पर बैठाना चाहते हो जो मुझे पूरी तरह अस्वीकार्य है। उनकी इस असहमति के बाद रविशंकर शुक्ल को नवगठित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। प्रस्तुति : पूनम पांडे