घटना सन् 1894 के जनवरी मास में प्रयाग में होने वाले कुम्भ मेले की है। स्वामी श्री युक्तेश्वर का इस कुम्भ मेले में जाना हुआ। कुम्भ मेले में उनकी मुलाकात मृत्युंजय महागुरु ‘महावतार बाबाजी’ से हुई। बाबाजी ने पूछा, ‘स्वामी जी, कुम्भ मेले के बारे में कुछ बताएं।’ स्वामी जी ने कहा, ‘आपका दर्शन होने से पहले तक मुझे कोई आलौकिक तेजोमूर्ति नहीं मिला। यह मेला कोलाहल और भिखारियों का जमघट मात्र लगा।’ महावतार बाबाजी ने कहा, ‘अनेक के दोषों के कारण सभी को दोषी मत समझो। इस दुनिया में हर चीज मिश्रित रूप में है, शक्कर और रेत के मिश्रण की तरह। चींटी की तरह बुद्धिमान बनो, जो शक्कर और रेत के मिश्रण में से केवल शक्कर के कणों को चुन लेती है और रेत-कणों को छोड़ देती है। इस मेले में जहां अनेक साधु अभी भी माया में भटक रहे हैं, वहीं कुछ ईश्वर-साक्षात्कारी संतों ने इसे पावन किया हुआ है।
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा