
क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे। वे धर्म को लेकर कभी कट्टरपंथी नहीं रहे। उनके लिये मंदिर और मस्जिद में कोई फर्क न था। एक दिन शाहजहांपुर में हिंदू-मुसलमानों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। उस दौरान वे महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के साथ एक आर्यसमाज मंदिर में ठहरे हुए थे। तभी क्रद्ध भीड़ का एक गुट मंदिर पर हमला करने आने लगा। उन्हें देखकर अशफाक भरी पिस्तौल लेकर बाहर आ गये। वे बोले, ‘सुनो, मैं एक पक्का मुसलमान हूं, लेकिन उसके बाद भी मुझे इस मंदिर की एक-एक ईंट जान से प्यारी है। मेरे लिये मंदिर व मस्जिद का कोई भेद नहीं है। अगर तुम्हारा अंतिम लक्ष्य लड़ना ही है तो कहीं और जाकर लड़ो। यदि किसी ने भी इस मंदिर की तरफ बुरी नजर से देखा तो मेरी गोली का शिकार बनेगा।’ फिर किसी का आगे बढ़ने का साहस न हुआ।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा
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