ट्रिब्यून वेब डेस्क/एजेंसी
चंडीगढ़, 20 अक्तूबर
पंजाब विधानसभा में केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ एतिहासिक बिल पारित कर दिये हैं।ये विधेयक 5 घंटे से अधिक समय की चर्चा के बाद पारित किये गए जिसमें भाजपा के विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया। भाजपा के विधानसभा में दो विधायक हैं। विपक्षी शिरोमणि अकाली दल, आप और लोक इंसाफ के विधायकों ने विधेयकों का समर्थन किया। इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने आज सदन में मसौदा प्रस्ताव पेश करते हुए सभी दलों से विधानसभा में सर्वसम्मति से राज्य सरकार के ऐतिहासिक विधेयकों को पारित करने का आग्रह किया था। विधानसभा में पेश मसौदे के अनुसार अब अगर एमएसपी के नीचे रेट पर गेहूं या धान की बिक्री/खरीद होती है तो आरोपी को कम से कम 3 साल का कारावास होगा और साथ ही जुर्माना भी देना होगा। इसके अलावा 2.5 एकड़ तक लैंड अटैचमेंट से किसानों को छूट भी दी जायेगी। वहीं गेंहूं/धान की जमाखोरी और कालाबाजारी पर भी रोक लगाने का प्रस्ताव है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि वह पंजाब के किसानों के साथ हुए अन्याय के खिलाफ इस्तीफा देने के लिए भी तैयार हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के पेट पर हमला बर्दाश्त नहीं। उन्होंने कहा-‘मैं इस्तीफा देने से डरता नहीं हूं। मैं किसानों को बर्बाद नहीं होने दूंगा।’ कैप्टन ने कहा कि अगर केंद्र के कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया गया तो गुस्साए युवा सड़कों पर उतर सकते हैं जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है। 80 और 90 के दशक में ठीक ऐसा ही हुआ था। उन्होंने कहा कि चीन और पाकिस्तान दोनों राज्य में शांति की गड़बड़ी का फायदा उठाने के लिए मिलकर काम करेंगे, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने अन्य दलों से अपने राजनीतिक हितों से ऊपर उठने की अपील की।
मुख्यमंत्री ने खेद व्यक्त किया कि कुछ विधायकों ने कल राज्य सरकार द्वारा विधेयक को पेश नहीं किए जाने के विरोध में राजनीतिक लाभ के लिए विधानसभा में ट्रैक्टरों पर मार्च किया और कुछ ने विधानसभा परिसर के अंदर रात बिताई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि विभिन्न विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श और परामर्श के बाद 9.30 बजे बिल पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि आपातकालीन सत्र के दौरान ऐसे बिलों की प्रतियां वितरित करने में देरी हुई।