नागपुर, 5 अक्तूबर (एजेंसी)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि जनसंख्या को लेकर भारत में एक समग्र नीति बननी चाहिए जो सब पर समान रूप से लागू हो और किसी को भी इससे छूट नहीं मिले। संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय में विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।’ आरएसएस के विजयादशमी उत्सव में इस वर्ष प्रसिद्ध पर्वतारोही संतोष यादव मुख्य अतिथि रहीं। संघ प्रमुख ने कहा कि संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते महिलाओं की उपस्थिति की परम्परा पुरानी है।
उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का कारण बनता है, ऐसे में नयी जनसंख्या नीति सब पर समान रूप से लागू हो। भागवत ने कहा कि अपने देश की जनसंख्या विशाल है। इस जनसंख्या के लिए उसी मात्रा में साधन आवश्यक होंगे और अगर जनसंख्या बढ़ती चली जाए तो यह भारी व असह्य बोझ बन जाएगी।
चीन की ‘एक परिवार, एक संतान’ नीति का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा, ‘जहां हम जनसंख्या पर नियंत्रण का प्रयास कर रहे हैं, वहीं हमें देखना चाहिए कि चीन में क्या हो रहा है। उस देश ने एक परिवार, एक संतान नीति अपनाई और अब वह बूढ़ा हो रहा है।’ उन्होंने भारत के संदर्भ में कहा कि आज यह सबसे युवा देश है और 50 वर्षों के पश्चात आज के तरुण प्रौढ़ बनेंगे। भागवत ने कहा कि संतान संख्या का विषय माताओं के स्वास्थ्य, आर्थिक क्षमता, शिक्षा के अलावा प्रत्येक परिवार की आवश्यकता से भी जुड़ा होता है और यह जनसंख्या व पर्यावरण को भी प्रभावित करता है।
शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए, नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन/ प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है। भागवत ने कहा कि कुछ बाधाएं सनातन धर्म के समक्ष रुकावट बन रही हैं जो भारत की एकता एवं प्रगति के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतों द्वारा सृजित की गई हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी ताकतें गलत बातें एवं धारणाएं फैलाती हैं, अराजकता को बढ़ावा देती हैं, आपराधिक कार्यों में संलग्न होती हैं, आतंक तथा संघर्ष एवं सामाजिक अशांति को बढ़ावा देती हैं।
‘अल्पसंख्यकों को कोई खतरा नहीं’
सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि तथाकथित अल्पसंख्यकों में बिना कारण भय का हौवा खड़ा किया जाता है कि उन्हें संघ या हिन्दू से खतरा है, लेकिन हिन्दुओं या संघ का ऐसा स्वभाव व इतिहास नहीं रहा है, न हुआ है और न कभी होगा। उन्होंने कहा, ‘संघ पूरी दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारे, भद्रता व शांति के पक्ष में खड़ा है।’ असमानता का उल्लेख करते हुए भागवत ने कहा कि जब तक मंदिर, जलाशय और श्मशान सभी हिन्दुओं के लिए नहीं खुलेंगे, तब तक समानता की बात पूरी नहीं हो सकती। भाजपा की एक निलंबित प्रवक्ता का समर्थन करने पर एक दर्जी और दवा दुकानदार की हत्या किए जाने की घटनाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।
सुरक्षा के मोर्चे पर आत्मनिर्भर हो रहा भारत : भागवत ने श्रीलंका की संकट में मदद करने और यूक्रेन संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि इन घटनाक्रम से स्पष्ट है कि हमारे देश की बात दुनिया में सुनी जा रही है और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भारत अधिक आत्मनिर्भर बन रहा है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आर्थिक तथा विकास नीति रोजगार-उन्मुख हो, यह अपेक्षा स्वाभाविक ही की जाएगी, लेकिन रोजगार का मतलब केवल नौकरी नहीं है, …यह समझदारी समाज में भी बढ़ानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि कोई काम प्रतिष्ठा में छोटा या हल्का नहीं है, परिश्रम, पूंजी तथा बौद्धिक श्रम- सभी का महत्व समान है, यह मान्यता व आचरण हम सबका होना चाहिए।