आखिरकार महाराष्ट्र में हाईवोल्टेज राजनीतिक ड्रामे का पटाक्षेप भी उतना ही चौंकाने वाला रहा। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद साफ हो गया था कि सदन के पटल पर विश्वास मत हासिल करने की जरूरत न होगी। एक तरह से शिवसेना के बागियों व भाजपा के लिय सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया था। लेकिन बड़े राजनीतिक दल के नाते भाजपा से मुख्यमंत्री बनने के कयासों को उस समय विराम लग गया जब इस पद के प्रबल दावेदार देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे के नाम की घोषणा मुख्यमंत्री पद के लिये कर दी। कह सकते हैं कि इस फैसले से भाजपा ने कई लक्ष्य साध लिये। सबसे बड़ा संदेश यह देने का प्रयास किया कि यह सारा विवाद शिवसेना के भीतर था और उसमें भाजपा की कोई भूमिका नहीं है। दरअसल, यह दर्शाने का प्रयास किया गया कि उद्धव ठाकरे खुद को अन्याय पीड़ित न दिखा सकें। बहुत संभव है कि भाजपा की सोच यह भी रही होगी कि शिंदे समेत तमाम बागियों को शिवसेना का असली वारिस दर्शाया जाये। बहरहाल, भले ही भाजपा कितना भी दावा करे कि उसकी शिवसेना में नेतृत्व विवाद व गठबंधन सरकार गिराने में कोई भूमिका नहीं रही, लेकिन यह सर्वविदित है कि सारी पटकथा उसकी चाहत के अनुसार ही लिखी गई है। सब ने देखा कि कैसे बागी विधायक भाजपा शासित गुजरात व फिर असम में सरकारी संरक्षण में रहे हैं। भले ही अब शिंदे को कमान सौंपकर भाजपा दिखा रही है कि उसने सत्ता एक शिवसैनिक को ही सौंपी है, इसके बावजूद कह सकते हैं कि भाजपा की तुरुप चाल ने राज्य में विपक्षी राजनीति को चारों खाने चित कर दिया है। अब उद्धव ठाकरे उस बयान से पीछे नहीं हट सकते जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि कोई दूसरा शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनेगा तो उन्हें प्रसन्नता होगी। वहीं महाविकास अघाड़ी गठबंधन की स्थिति भी सांप-छछूंदर की हो चली है,न उगलते बनती है और न निगलते।
बहरहाल, भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद एकनाथ शिंदे को दिये जाने के फैसले ने हर किसी को चौंकाया है जिसे राजनीतिक पंडित भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। आम धारणा थी कि ज्यादा विधायक होने के नाते भाजपा से मुख्यमंत्री होगा। यह कयास इस लिये भी लगाया जा रहा था कि पिछला विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने वाली शिवसेना व भाजपा में अलगाव भी मुख्यमंत्री पद को लेकर ही था। बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती है। उसके बाद बढ़ी तल्खी पिछले ढाई साल में खुलकर सामने आई जिसके क्रम में तमाम केंद्रीय एजेंसियां महाविकास अघाड़ी गठबंधन के नेताओं पर निशाने साधती रहीं। बल्कि दो पू्र्व मंत्री इन दिनों जेल में हैं। हालांकि पिछले ढाई साल में महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार ठीक-ठाक चलती नजर आई, लेकिन शिव सेना विधायकों को यह बात कचोटती रही है कि दशकों जो दल शिवसेना के कट्टर विरोधी रहे हैं, उनके साथ सरकार में एक साथ कैसे रह सकते हैं। यह भी कि अगले चुनाव में पार्टी के नेता हिंदुत्व एजेंडे के लिये कैसे फिर जनता के बीच जा सकेंगे। बहरहाल, सरकार बनाने के बाद एकनाथ शिंदे की कोशिश शिवसेना संगठन पर कब्जे व अपने गुट को असली शिवसेना दर्शाने की होगी। वहीं उद्धव ठाकरे भी खुद को बाला साहब का उत्तराधिकारी बताते हुए पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास करेंगे। निस्संदेह, शिवसेना में वर्चस्व की जंग के बीच भाजपा अगले विधान सभा व आम चुनावों में बढ़त के लिये पार्टी संगठन को मजबूत बनाने का प्रयास करेगी। लगता नहीं कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना के साथ बाकी ढाई साल में सरकार चलाने में किसी दिक्कत का सामना करना पड़ेगा। पार्टी को न केवल राज्य में विस्तार करना है बल्कि अगले आम चुनाव में पार्टी को बढ़त दिलाने का प्रयास करना है। फिलहाल नहीं लगता कि पार्टी को एकनाथ शिंदे की सरकार से तालमेल बनाने में कोई परेशानी आयेगी। बहरहाल, महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन महाविकास अघाड़ी गठबंधन के लिये बड़ा झटका है। इसके बावजूद तमाम रणनीतियों व राजनीतिक उठापटक से नेताओं की विश्वसनीयता को तो आंच जरूर आई है।