दीपावली की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों पर उत्पाद शुल्क घटाकर उपभोक्ताओं को कुछ राहत देने का प्रयास किया। फिर भाजपा शासित राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने भी वैट घटाकर राज्यों के स्तर पर अतिरिक्त राहत देने की कोशिश की। विपक्ष इस फैसले को चुनावी चिंता से उपजा कदम बता रहा है, क्योंकि यह निर्णय उपचुनाव परिणामों के बाद मतदाताओं के मिजाज के अनुरूप लिया गया। वहीं वित्त मंत्रालय का कहना कि अर्थव्यवस्था को और गति देने हेतु केंद्र सरकार ने डीजल-पेट्रोल के उत्पाद शुल्क में कटौती की है। इससे जहां खपत बढ़ेगी, वहीं महंगाई में कमी आएगी। मध्यम वर्ग व गरीबों को राहत मिलेगी। लेकिन जानकार मान रहे हैं पेट्रोल पर पांच और डीजल पर दस रुपये का उत्पाद शुल्क कम करने से जनता को पर्याप्त राहत नहीं मिलेगी। यही वजह है कि कटौती पर आमतौर पर सकारात्मक प्रतिसाद नहीं मिला क्योंकि कई महानगरों में अभी भी पेट्रोल सौ पार पहुंचा है। दूसरे इस साल जो मूल्य वृद्धि हुई उसके मुकाबले कटौती कम है। वहीं आम धारणा है कि बढ़ती महंगाई के बीच सरकार ने इस मुद्दे पर अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं दिखायी। कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट व महंगाई के नश्तर के बीच यह कटौती कम है। जितनी बड़ी मुश्किलें हैं, उसी स्तर की राहत की प्रतीक्षा थी, फिर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल कीमत बढ़ने का सिलसिला थमा नहीं है।
दरअसल, 29 विधानसभा व तीन संसदीय सीटों पर उपचुनाव परिणाम आने पर एक भाजपा मुख्यमंत्री का बयान आया था कि हार की वजह महंगाई है। संयोगवश कटौती का फैसला उसके बाद ही आया। दरअसल, लंबे समय से उम्मीद थी कि सरकार कहे कि वह लोगों की चिंता में शामिल है और इसे कम करने के लिये गंभीर प्रयास कर रही है। वैसे अगले साल उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनाव केंद्र सरकार की अग्नि परीक्षा जैसे हैं। खासकर दिल्ली का रास्ता बनाने वाला उत्तर प्रदेश में। इसके बावजूद आम धारणा है कि कटौती असाधारण बढ़ोतरी के मुकाबले कम है। वह भी तब जब तेल के दामों के निर्धारण में एक्साइज ड्यूटी की बड़ी भूमिका है। दूसरी ओर पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में तेजी के कारण बढ़ी माल ढुलाई से खाद्यान्न, सब्जी व अन्य उत्पादों की कीमतों में अप्रत्याशित तेजी देखी गई है। कृषि लागत में भी इजाफा हुआ है। हालांकि, एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद केंद्र ने राज्यों से वैट में कटौती करने को कहा था। भाजपा शासित राज्यों, गठबंधन वाले राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में अतिरक्त कटौती तो की गई, लेकिन विपक्ष शासित राज्यों ने अपनी आय के मुख्य जरिये में कटौती में संकोच किया। हालांकि ओडिशा के बाद पंजाब सरकार ने भी वैट में कटौती की है। शेष कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा कदम न उठाने पर भाजपा हमलावर है और इसे संवेदनहीनता बता रही है। वजह साफ है कि पेट्रोल व डीजल कमाई का साधन होने के साथ ही एक राजनीतिक हथियार भी है।