आखिरकार देश के राजनीतिक व सामाजिक जीवन में भूचाल लाने वाले तीन कृषि सुधार कानूनों की वापसी पर संसद ने वैधानिक मोहर लगा दी। कृषि मंत्री द्वारा संसद के दोनों सदनों में रखे गये कृषि विधि निरसन विधेयक 2021 ध्वनि मत से पारित हुए। हालांकि विपक्ष कानूनों की वापसी पर चर्चा की मांग पर अड़ा रहा और एमएसपी आदि मुद्दों पर बहस करने के मूड में था। दरअसल, गुरु पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय संबोधन में इन कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान किया था तथा संसद के शीतकालीन सत्र में वापसी की वैधानिक प्रक्रिया पूरी करने की बात कही थी। उम्मीद करें कि अब सरकार की पहल के बाद किसान लचीला रुख दिखाते हुए आंदोलन वापसी पर गंभीरता से विचार करेंगे। हालांकि, किसान नेता राकेश टिकैत ने एमएसपी को लेकर आंदोलन जारी रखने की बात कही है। यद्यपि पिछले दिनों आंदोलनकारी किसानों ने आंदोलन की सालगिरह पर संसद तक ट्रैक्टर रैली निकालने के आह्वान को वापस लेकर सार्थक पहल की थी, लेकिन इस दिशा में गंभीर पहल जरूरी है। वहीं दूसरी ओर कृषि मंत्री कह चुके हैं कि एमएसपी के मुद्दे पर एक कमेटी बनाने का आश्वासन प्रधानमंत्री ने दिया है, जिसमें विशेषज्ञों के साथ किसान प्रतिनिधि भी भाग लेंगे। यह अच्छी बात है क्योंकि अब तक कयास लगाये जा रहे थे कि सरकार एमएसपी के मुद्दे पर टालमटोल करेगी, लेकिन अब सरकार इस पर भी बात करने को तैयार है। उम्मीद है, किसानों के रुख में भी बदलाव आयेगा। इस टकराव के चलते देश ने भी बड़ी कीमत चुकाई है और दिल्ली के प्रमुख रास्ते बंद होने से जहां यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा है, वहीं टोल बैरियर बाधित किये जाने से सरकार को रोज करोड़ों रुपये की चपत लगी है। वहीं बड़ी संख्या में किसानों को आंदोलन के दौरान हमने खोया है।
निस्संदेह, लंबे समय से एमएसपी से जुड़ी व्यावहारिक दिक्कतों को दूर करने की मांग उठती रही है। इस मुद्दे पर स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों का भी उल्लेख होता है, जिनका क्रियान्वयन नहीं हो सका। व्यावहारिक दिक्कत यह है कि एमएसपी का लाभ चंद राज्यों में किसानों को ही मिल पाता है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा तो जरूर करती है लेकिन व्यापारी एमएसपी पर फसल नहीं खरीदते। भंडारण क्षमता न होने और सिर पर चढ़े कर्जे के चलते किसान को फसल तैयार होने पर तुरंत औने-पौने दामों पर ही उपज बेचनी पड़ती है। ऐसे में एमएसपी सिस्टम को व्यावहारिक, पारदर्शी व लाभकारी बनाने की जरूरत है। मोदी सरकार भी कहती है कि किसानों की आय बढ़ायी जायेगी। उसे दुगना किया जायेगा, लेकिन इसके लिये प्रभावी व कारगर फार्मूला लेकर सरकार को आना चाहिए। किसान को उसकी लागत के अनुरूप दाम मिलने ही चाहिए। कृषि श्रमिकों व उन किसानों को भी जिनका परिवार अपना श्रम फसल उगाने में लगाता है। निस्संदेह मेहनताना न्याय संगत ढंग से मिलना चाहिए। यह तथ्य छिपा नहीं है कि लागत बढ़ने से किसान की मुश्किलें बढ़ी हैं। बिजली, डीजल, रासायनिक खाद व बीजों के दामों में वृद्धि तो हुई है लेकिन किसान का लाभ नहीं बढ़ा है। यह चिंता किसान आंदोलन में भी जुड़ गई थी। निस्संदेह, एमएसपी निर्धारण में इन तथ्यों का समावेश जरूरी है। इस बात में दो राय नहीं कि इन समस्याओं को संबोधित करते हुए सरकार व्यावहारिक तरीके से नीति निर्धारण करती है तो उसे किसानों का समर्थन भी हासिल होगा। यह भी हकीकत है कि बढ़ती एमएसपी का बोझ देश के वित्तीय संसाधनों पर पड़ेगा। अब जब सरकार ने आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने की बात कही और खेतों में पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है, किसानों को भी राष्ट्रीय सरोकारों को प्राथमिकता देते हुए उदार रवैया अपनाते हुए सदाशयता दिखानी चाहिए। किसानों व सरकार के बीच यह टकराव लंबा खिंचना देश के हित में नहीं होगा। यह कड़वाहटों को त्याग कर खुले मन से बातचीत की शुरुआत करके आगे बढ़ने का वक्त है।