शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी एससीओ के विदेश मंत्रियों की मास्को में आयोजित बैठक के दौरान भारत व चीन के रिश्तों में जमी बर्फ पिघलने के संकेत मिले हैं। बृहस्पतिवार को दोनों विदेश मंत्रियों के बीच हुई तीन घंटे की बैठक में कुछ मुद्दों पर सहमति बनती नजर आई। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर व उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच हुई मुलाकात में स्पष्ट किया गया कि भारत एलएसी पर जारी तनाव को और नहीं बढ़ाना चाहता और चीन को लेकर भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। वहीं चीनी विदेश मंत्रालय का कहना है कि पड़ोसी देश होने के नाते कुछ मुद्दों पर मतभेद स्वाभाविक हैं लेकिन इसे असहमतियों के उचित संदर्भ में देखा जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर चीन की कथनी-करनी के पुराने अनुभवों से सबक लेकर भारत ने सुरक्षा व सामरिक रणनीतियों को नये सिरे से निर्धारित करना शुरू कर दिया है। बुधवार को हिंद महासागर में चीन की घेराबंदी करने के नजरिये से भारत व जापान के बीच हुए ऐतिहासिक रक्षा समझौते को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वहीं दूसरी ओर मास्को में संपन्न एससीओ की बैठक के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बयान के हवाले से कहा है कि भारत व चीन के रिश्ते मौजूदा वक्त में दोराहे पर खड़े हैं, जिन्हें सही दिशा में बढ़ाने की जरूरत है। यह भी कि ऐसी कोई चुनौती नहीं है, जिसका समाधान संभव नहीं है। वहीं बैठक के बाद जारी भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान में भी कहा गया है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों में एलएसी विवाद को लेकर सकारात्मक बातचीत हुई है। तय हुआ कि दोनों ही पक्ष इन नेताओं के बीच हुई सहमतियों से सलाह लेंगे और असहमतियों को तनाव में नहीं बदलने देंगे। मौजूदा स्थिति को दोनों पक्षों के हित में न मानते हुए सैन्य बातचीत को जारी रखने की बात हुई। सीमा पर उचित दूरी बनाने व तनाव कम करने के प्रयासों पर भी सहमति हुई। साथ ही तनाव टालने के लिये मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉलों का पालन करने की बात कही गई।
कुल मिलाकर दोनों देश इस बात को स्वीकारते हैं कि सीमा पर तनाव कम होना चाहिए, शांति बरकरार रहनी चाहिए तथा भरोसा बढ़ाने के लिये कदम उठाने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीनी समकक्ष वेई फेंग से मुलाकात की थी और आगे विदेश मंत्रियों की बातचीत के लिये पृष्ठभूमि तैयार की गई थी। वहीं बृहस्पतिवार को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत के अलावा एलएसी पर सैन्य बातचीत भी हुई। इससे पहले भी कोर कमांडर स्तर के कई दौर की बातचीत हो चुकी है। दरअसल, दोनों ही देश एक-दूसरे पर एलएसी का अतिक्रमण करने और उकसाने के आरोप लगाते रहे हैं। मंगलवार को जारी एक तस्वीर में सशस्त्र चीनी सैनिकों को एलएसी पर अतिक्रमण की कोशिश करते दिखाया गया था। बहरहाल चीनी कूटनीति और रणनीतियों की जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार अपनी सुरक्षा व क्षेत्रीय संप्रभुता को लेकर सतर्क है और हाल ही में जापान से हुआ रक्षा समझौता इसी रणनीति का विस्तार है। एलएसी पर जारी हालिया टकराव के बीच भारत ने हिंद महासागर में चीन की घेराबंदी तेज कर दी है। भारत व जापान के बीच बुधवार को हुए महत्वपूर्ण समझौते को इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। इस समझौते के तहत दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति व सेवाओं का आदान-प्रदान होगा। दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के बीच ऐसा समझौता पहली बार हुआ है। उम्मीद है कि इससे भारत को हिंद महासागर में रणनीतिक बढ़त मिलेगी। समझौते के बाद जापानी सेनाएं अपने अड्डों के लिए जरूरी रक्षा सामग्री की आपूर्ति कर सकेंगी। इसके अलावा भारतीय सेनाओं के रक्षा सामान की सर्विसिंग भी उपलब्ध करायेंगी। ऐसी सुविधा भारतीय सैन्य अड्डों पर जापानी सेनाओं को भी मिलेगी। निस्संदेह युद्ध के दौरान यह समझौता बेहद उपयोगी साबित होगा, जो दोनों देशों के रक्षा सहयोग को मजबूत करेगा।