पिछले दिनों हरियाणा की वह घटना राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बनी, जिसमें रोहतक के 102 वर्षीय दुलीचंद ने वृद्धावस्था पेंशन बंद होने पर रचनात्मक तरीके से विरोध करके सरकारी तंत्र जगाया। उन्होंने बाकायदा बैंड-बाजे के साथ बारात निकाली। वे हाथ में तख्ती लिये थे कि ‘तुम्हारा फूफा अभी जिंदा है’। दरअसल, दुलीचंद कागजों में जीवित नहीं दिखाये गये थे। वे समाज कल्याण विभाग के दफ्तरों के चक्कर काटते थक गये। जब कोई राह न दिखी तो रचनात्मक विरोध का यह तरीका अपनाया। निस्संदेह, इस घटनाक्रम ने उनींदे तंत्र को जगाया। न केवल समाज कल्याण विभाग हरकत में आया बल्कि स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जनता दरबार के जरिये वृद्धावस्था पेंशन से वंचित लोगों का दुख-दर्द सुना। यहां तक कि पेंशन से वंचित एक महिला को न केवल पेंशन तुरंत शुरू होने का आश्वासन दिया बल्कि एक माह की पेंशन अपनी जेब से देकर संवेदनशील शासक का उदाहरण भी दिया। सवाल ये है कि समाज कल्याण विभाग ऐसी पहल क्यों नहीं करता? यह जानते हुए भी कि उम्र के इस पड़ाव में शारीरिक शैथिल्य व आय के संसाधन न होने पर बुजुर्ग वैसे ही परेशान रहते हैं। तो पेंशन के गिने-चुने पैसे तो कम से कम सही समय पर मिल जायें। आखिर ऐसा क्यों होता है कि जीवित लोगों को खुद को जिंदा दिखाने के लिये दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं? सवाल यह भी कि पेंशन बंदी किस आधार पर की जाती है जबकि व्यक्ति जीवित रहता है? वैसे भी साल में एक बार पेंशनरों को संबंधित विभाग में अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र बाकायदा देना ही पड़ता है। सवाल यह भी कि क्यों ऐसे दोषी कर्मचारियों व अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, जो वास्तविक तथ्यों की जांच किये बिना ही किसी की पेंशन रोक देते हैं। सही मायनों में असहाय बुढ़ापे में पेंशन एक प्राणवायु की तरह होती है। वैसे तो इतने पैसे में महंगाई के जमाने में आता ही क्या है लेकिन परिस्थितियों के चलते उसके भी खास मायने होते हैं।
निस्संदेह, पेंशन जैसे विभाग मौजूदा दौर में एक पोल खाता डिपार्टमेंट बन गये हैं। किसी को जीवित रहते मृतक घोषित करने की खबर आती है, तो किसी के परिवार को वर्षों तक मरने के बाद भी पेंशन मिलती रहती है। पेंशन वितरण में कई तरह के घपले सामने आते रहते हैं। जो दर्शाता है कि संबंधित विभाग जिम्मेदारी व संवेदनशील ढंग से कार्य नहीं करता है। निस्संदेह, इस विभाग के लोगों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वे बुजुर्गों से कैसे व्यवहार करें। उनके मामलों के निस्तारण में बेहद संवेदनशीलता दिखाएं। यदि विभाग के लोग जिम्मेदारी से अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे, तो दुलीचंद जैसे प्रकरण सामने नहीं आयेंगे। वहीं यह भी विडंबना है कि जरूरतमंद वर्ग की पेंशन को एक राजनीतिक एजेंडे की तरह दर्शाया जाता है। चुनाव से पहले कई राजनीतिक दल लंबी-चौड़ी हांकते हैं कि हम सत्ता में आये तो इतनी पेंशन दे देंगे। जबकि वे सरकार के सीमित संसाधनों को जानते हैं। लेकिन वर्ग विशेष के वोट हासिल करने के लिये बयानवीर बने रहते हैं। उन्हें पता है कि जीत गये तो कौन सा अपनी जेब से जायेगा, हार गये तो कौन पूछेगा। वहीं समाज के लोगों का भी दायित्व बनता है कि किसी की पेंशन का दुरुपयोग न करें। यदि पेंशन लेने वाले वृद्ध का निधन होता है तो समय पर समाज कल्याण विभाग को सूचित करके तुरंत पेंशन बंद करवायें। बहुत संभव है किसी अन्य जरूरतमंद की मदद हो सकेगी। किसी व्यक्ति को दोहरी पेंशन के प्रलोभन से बचना चाहिए। रोहतक में लगे जनता दरबार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा भी कि दो लाख से अधिक वार्षिक आय वाले बुजुर्ग बुढ़ापा पेंशन न लें। वहीं पूर्व सैनिक भी इस पेंशन के दायरे में नहीं आते। दूसरी ओर समाज कल्याण विभाग का भी दायित्व बनता है कि किसी वृद्ध की पेंशन शुरू होने व बंद होने की सूचना कारण सहित व्यक्ति को पुख्ता तौर पर दी जाये। विभाग नियमित रूप से ऐसे मामलों की पड़ताल करता रहे।