डिजिटल युग में सोशल मीडिया उपभोक्ताओं को छलने के चौतरफा प्रपंचों के बीच सरकार ने उनके हितों की रक्षा के लिये पहल की है। दरअसल, तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर मशहूर हस्तियों व आभासी अवतारों के लाखों फॉलोवर होते हैं। ऐसे में ये हस्तियां अघोषित तौर पर विभिन्न उत्पादों का प्रचार आर्थिक लाभ उठाते हुए कर रही थीं। जबकि सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले उपभोक्ता इन हस्तियों के आभामंडल के पीछे छिपे खेल को नहीं समझ पा रहे थे। अब सरकार ने दिशा-निर्देश दिये हैं कि यदि ये लोग विज्ञापनदाताओं द्वारा किसी प्रकार नकद या वस्तु के रूप में लाभ हासिल करते हैं तो अनुचित व्यापार प्रथाओं और भ्रामक प्रचार के लिये उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। कुल मिलाकर ऐसे व्यावसायिक समझौते में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया जा रहा है। अब सोशल मीडिया को प्रभावित करने वाले विशिष्ट लोग यदि ऑडियो, वीडियो या लाइव स्ट्रीम के जरिये ऐसा प्रयास करते हैं तो उन्हें इससे होने वाले लाभ के बारे में बताना होगा। इसके बावजूद उल्लंघन करने पर दंड के रूप में जुर्माना और जेल की सजा का सामना उन्हें करना पड़ेगा। दरअसल, जैसे-जैसे स्मार्टफोन का दायरा लगातार बढ़ा है लोग अपनी रुचि की जानकारी को तलाशने के लिये इंटरनेट सर्फिंग में समय बिता रहे हैं। विडंबना यह है कि लाखों फॉलोअर्स वाली सोशल मीडिया हस्तियों की प्रभावशाली पहुंच का लाभ व्यावसायिक कंपनियों द्वारा उठाया जा रहा है। आकलन है कि देश के लाखों उत्पाद निर्माताओं का पांच वर्षों में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन व्यय तीन अरब डॉलर से अधिक हो जायेगा। ऐसे में उन लोगों को कानून के दायरे में लाना जरूरी था जो अनुचित तरीके से अपने फॉलोवरों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। वे किस तरह की खरीददारी करते हैं या जीवन के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं पर अपनी राय देते हैं, यह दर्शाने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। जिसका लाभ विभिन्न उत्पाद कंपनियां उठाती हैं और सोशल मीडिया उपभोक्ताओं का अनुचित दोहन किया जाता है।
एक आकलन के अनुसार भारत में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के बाजार का जो आकार बीस फीसदी की औसत वृद्धि दर के साथ वर्ष 2022 में 1275 करोड़ रुपये था वह 2025 तक बढ़कर 2800 करोड़ रुपये हो जायेगा। निस्संदेह, नई पीढ़ी के युवाओं के लिये विश्वसनीय सूचनाओं का प्रवाह सुनिश्चित करना नियामक संस्थाओं का दायित्व है। उन्हें इस बात को जानने का हक है कि उनके रोल मॉडल ने उनकी कीमत पर व्यावसायिक समूहों से कितना मौद्रिक लाभ, उपहार या किसी तरह की छूट ली है। उसे पता होना चाहिए कि खास लोगों की पोस्ट में सशुल्क प्रचार शामिल है। बताया जाता है कि भारत में विज्ञापन के मानकों का निर्धारण करने वाली नियामक संस्था ने पाया है कि एक तिहाई इन्फ्लुएंसर नियमों के उल्लंघन के लिये जिम्मेदार थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी गाइड लाइन्स के बाद ऐसे लोगों पर शिकंजा कसने में कामयाब मिलेगी। अब ऐसे लोगों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जानकारी देनी होगी कि इस सूचना या जानकारी का उन्हें किसी उत्पादक द्वारा भुगतान तो नहीं किया गया है। सरकार द्वारा ऐसे लोगों को कानून के दायरे में लाने का स्वागत ही किया जाना चाहिए। बेहतर होता यह कदम और पहले उठा लिया जाता। वैसे भी यह एक नया क्षेत्र था और व्यवस्था की खामियों का लाभ उठाया जा रहा था। निस्संदेह, अब रोचक, मनोरंजक व काम की जानकारी की सूचनाओं के बीच विशिष्ट लोग किसी कंपनी के उत्पाद का प्रचार करके मनमाना मुनाफा न कमा सकेंगे। नियामक कानून न होने की वजह से अब तक वे जो चुपचाप बड़े लाभ उठाते रहे हैं उस पर अब किसी हद तक लगाम लग सकेगी। बड़े जुर्माने व प्रतिबंध के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि संबंधित पक्ष लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नहीं करेंगे। जिससे इस क्षेत्र को अनुशासित करने में भी मदद मिल सकेगी और साथ ही व्यावसायिक नजरिये को तर्कसंगत बनाया जा सकेगा।