निस्संदेह राजपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह का भव्य आयोजन हमारी आर्थिक, सामरिक, वैज्ञानिक और सामाजिक तरक्की का जीवंत चित्र उकेरता है। यह पर्व जहां हमारे सत्ताधीशों को जवाबदेही का सबक देता है, वहीं नागरिकों से जिम्मेदार व्यवहार की उम्मीद भी करता है। यह भी कि स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से अस्तित्व में आया गणतंत्र सिर्फ अधिकारों के लिये ही नहीं है, कर्तव्यों के लिये भी जिम्मेदारी तय करता है। यह पर्व हमें आत्ममंथन का मौका भी देता है कि हम सात दशक के लोकतंत्र में उन लक्ष्यों को हासिल कर पाये हैं जो आजादी के परवानों के सपने थे। वहीं सत्ताधीशों के लिये भी मंथन का मौका कि क्यों हमारे साथ आजाद हुए देश हमसे अधिक तरक्की कर बैठे। हमारे नीति-नियंताओं से कहां चूक हुई। क्या हम समाज में आर्थिक आजादी के लक्ष्यों को हासिल कर पाये हैं? लैंगिक समानता समाज में प्रतिष्ठित हुई है? समतामूलक समाज के लक्ष्य हासिल हो पाये हैं? सही मायनों में भारतीय लोकतंत्र संविधान के आलोक में वाकई समृद्ध हुआ है? यह भी कि 26 जनवरी, 1950 को घोषित लोकतांत्रिक संप्रभुता और गणतांत्रिक व्यवस्था क्या वाकई इन मूल्यों का लाभ आम आदमी को पहुंचा पा रही है? क्या हम असहमति के स्वरों को सम्मान दे पा रहे हैं? एक नागरिक के रूप में हम सही जनप्रतिनिधियों का चयन कर पा रहे हैं? क्यों अब भी हम अपने प्रतिनिधि के चुनाव में शतप्रतिशत मतदान नहीं कर पाते? गणतंत्र का पर्व साल में एक-दो विशेष दिनों पर मनाकर हमारे कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती है। निस्संदेह जहां सत्ताधीशों की जवाबदेही तय है, वहीं लोकतंत्र की छोटी इकाई के रूप में हमारी भी जिम्मेदारी होती है कि बहुमत के नाम पर सत्ता निरंकुश न हो जाये। बहुमत की आवाज अल्पमत की आवाज को न दबा दे। हमें वक्त की मार्गदर्शक आवाज का अनुसरण करना चाहिए। यह सुखद ही है कि हम देश में महामारी के संकट से सुनियोजित तरीके से उबरे हैं। वैज्ञानिकों के प्रयास से देश में निर्मित वैक्सीनों से देशवासियों का आत्मबल बढ़ा है।
इस बार देश का गणतंत्र दिवस समारोह कई मायनों में अलग होगा। कोरोना संकट की छाया सीमित उपस्थिति और जवानों व कलाकारों के मुंह पर मास्क के रूप में नजर आयेगी। पहली बार परेड में बांग्लादेश का सैनिक दस्ता शामिल होगा। भारत की सैन्य, तकनीकी, वैज्ञानिक उन्नति के साथ दुनिया का सर्वोत्तम लड़ाकू विमान राफेल राजपथ पर गरजेगा। नारी शक्ति के रूप में महिला फाइटर पायलट विमान उड़ाती नजर आयेंगी। केंद्रशासित प्रदेश के रूप में लद्दाख की झांकी पहली बार नजर आयेगी। वहीं अदालत में विवाद के पटाक्षेप के बाद परेड में राममंदिर के प्रारूप की झांकी होने के विशिष्ट मायने होंगे। बहरहाल, आयोजन के साथ देश व सरकार की चिंता इस दिन आयोजित होने वाली किसानों की ट्रैक्टर रैली भी होगी। निस्संदेह होना तो यह सुखद संयोग ही चाहिए था कि राजपथ पर जवान और बाहरी रोड पर किसान। लेकिन आंदोलन के तेवर और विभिन्न राजनीतिक दलों की आकांक्षाओं की पूर्ति अप्रत्याशित घटनाक्रम का भी विस्तार कर सकती है। काश! ऐसा ही हो जैसा किसान संगठन के नेता कह रहे हैं कि हम दिल्ली जीतने नहीं, दिल जीतने आ रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि गणतंत्र दिवस समारोह निर्विघ्न रूप से गरिमा हासिल करेंगे। लेकिन इसके बावजूद लोकतंत्र में असहमति के स्वरों को सम्मान देने की परंपरा को आंच नहीं आनी चाहिए। संभव है कि केंद्र सरकार अच्छी नीयत के साथ सुधार की पहल कर रही हो, मगर इतना तय है कि वह अपने तर्कों से आंदोलनकारियों को सहमत नहीं कर पायी है। असहमति के सुरों के राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं लेकिन लोकतंत्र में हर असहमत आवाज को भी तरजीह दी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत भी कह चुकी है कि विरोध करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है। लेकिन यह विरोध लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून-व्यवस्था का सम्मान करते ही किया जाना चाहिए। दूसरे नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण भी न हो। उम्मीद की जानी चािहए कि पर्व अपनी गरिमा के साथ शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होगा।