कोरोना संकट के दौरान अपना व परिवार का जीवन संकट में डालकर संक्रमितों की पहचान व उपचार में मदद करने वाली आशा कार्यकर्ताओं ने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में नई आशा जगायी है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने यह भी संदेश दिया है कि सीमित संसाधनों और मामूली वेतन में मानवता की कितनी बड़ी सेवा की जा सकती है। अब उनके इस योगदान को देश ने ही नहीं, पूरी दुनिया ने भी स्वीकारा है। देश की ग्रामीण आबादी में महिलाओं को जागरूक करने व बच्चों को प्राथमिक उपचार, पोषण जागरूकता व शिक्षा अनुकूल वातावरण मुहैया कराने वाली लाखों आशा कार्यकर्ताओं का सिर आज गर्व से ऊंचा उठा है। उन्हें कोरोना संकट के दौरान मानवता की सेवा करने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड देकर सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें लोगों की जीवन रक्षा करने, सेवा मुहिम को कुशल नेतृत्व देने तथा ग्रामीण जीवन में गुणात्मक सुधार लाने में योगदान के लिये दिया गया है। वाकई, समर्पित आशा वर्कर इस सम्मान की हकदार थीं। हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का जो स्तर है वह किसी से छिपा नहीं है। ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र का पहला पायदान कहे जाने वाले आंगनवाड़ी केंद्र सरकार की स्वास्थ्य जागरूकता हेतु महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं जिसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्ग के लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना भी रहा है। दरअसल, आशा कार्यकर्ताओं ने बच्चों व माताओं के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिये अथक प्रयास किये हैं। इसमें टीकाकरण से लेकर कुपोषण की चुनौती का मुकाबला भी शामिल रहा है। इतना ही नहीं, देश में विशाल पोलियो वैक्सीन कार्यक्रम बिना आशा कार्यकर्ताओं के सफल होना संदिग्ध था। कुल मिलाकर सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं को समृद्ध करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके अलावा लोगों को जीवन शैली से उपजे रोगों से मुक्त कराने तथा स्वच्छता की मुहिम से रोग भगाने जैसे अभियानों में आशा वर्करों ने नई उम्मीद जगाई है।
हाल के दिनों में पूरे देश से आशा वर्करों के आंदोलन की खबरें विचलित करती रहीं। कोरोना संकट में अग्रिम मोर्चे पर खड़ी रही इन कार्यकर्ताओं का सड़क पर उतरना परेशान करता रहा है। ग्रामीण जीवन की सेहत के लिये महत्वपूर्ण योगदान देने वाली आशा वर्करों के बीच यदि निराशा पैदा होती है तो हम संपूर्ण स्वास्थ्य के लक्ष्य हासिल नहीं कर पायेंगे। दरअसल, इन कार्यकर्ताओं को इनके योगदान के अनुरूप मानदेय नहीं मिलता। अब जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इनके योगदान को मान्यता दी है तो केंद्र सरकार का दायित्व बनता है कि इन कार्यकर्ताओं की सेवाओं को स्थायी करने और सम्मानजनक वेतन देने की दिशा में पहल करे। इनकी सेवा शर्तों में सुधार के अलावा इन्हें वे साधन उपलब्ध कराये जाने चाहिएं जिनसे ये जटिल भौगोलिक परिस्थितियों में भी शीघ्रता से अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें। यह विडंबना ही है कि देश ग्रामीण इलाकों में साक्षरता के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाया है। ऐसे में स्वस्थ व कुपोषण-रहित भारत के लक्ष्यों को पूरा करने में जन-जागरण के जरिये आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ग्रामीण महिलाओं को मातृ दुग्धाहार के प्रति जागरूक, बच्चों के लिये पोषाहार की व्यवस्था तथा स्वास्थ्य व परिवार नियोजन के प्रति सचेत कर सकती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में चौदह लाख आंगनवाड़ी केंद्र हैं जिसमें तेरह लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व ग्यारह लाख से अधिक सहायिकाएं कार्यरत हैं। देश में ग्रामीण अंचलों में आर्थिक विसंगति, अशिक्षा व जागरूकता के अभाव से ग्रसित समाज को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने में ये समर्पित कार्यकर्ता निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। सरकार और हम सब का दायित्व है कि इनकी मूलभूत आवश्यकताओं को यथाशीघ्र पूरा किया जाये। जिससे ये उत्साहित होकर राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने में जुट जायें। वेतन व सेवा शर्तों में सुधार करके इनका मनोबल बढ़ाया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक सम्मान देकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों को मान्यता ही दी है। केंद्र सरकार का इस दिशा में उठाया गया कोई भी कदम राष्ट्रीय कल्याण के यज्ञ में आहुति का ही कार्य करेगा।