नयी दिल्ली, 31 मार्च (एजेंसी)
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को ऐलान किया कि दशकों बाद एक अप्रैल से नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा) के तहत आने वाले अशांत क्षेत्रों को घटाया जा रहा है। गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि इस फैसले का मतलब यह नहीं है कि उग्रवाद प्रभावित इन राज्यों से आफस्पा को पूरी तरह से हटाया जा रहा है, बल्कि यह कानून तीन राज्यों के कुछ इलाकों में लागू रहेगा। बता दें कि तीन पूर्वोत्तरी राज्यों में दशकों से आफस्पा लागू है जिसका मकसद क्षेत्र में उग्रवाद से निपटने के लिए तैनात सुरक्षा बलों की मदद करना है।
करीब तीन महीने पहले केंद्र ने नगालैंड से आफस्पा को हटाने की संभावना को देखने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। नगालैंड में पिछले साल दिसंबर में सेना ने ‘गलत पहचान’ के मामले में 14 आम लोगों को मार दिया था। शाह ने ट्वीट किया, ‘एक अहम कदम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व में भारत सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में दशकों बाद सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के तहत आने वाले अशांत इलाकों को घटाने का फैसला किया है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं पूर्वोत्तर के लोगों को इस अहम मौके पर बधाई देता हूं।’
क्या हैं विशेष अधिकार
आफस्पा सुरक्षा बलों को अभियान चलाने और बिना वारंट किसी को भी गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान करता है और अगर सुरक्षा बलों की गोली से किसी की मौत हो जाए तो भी यह उन्हें गिरफ्तारी और अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है। कानून के प्रावधानों को कड़ा बताते हुए इसके खिलाफ प्रदर्शन होते रहे हैं। मणिपुर की कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला ने कानून को हटवाने के लिए 16 साल तक भूख हड़ताल की। उन्होंने 9 अगस्त, 2016 को अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी थी। वर्ष 2015 में त्रिपुरा से और 2018 में मेघालय से आफस्पा को पूरी तरह से हटा दिया था। समूचे असम में 1990 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू है।