हालांकि, लोकसभा चुनाव लड़ने का मनोहर लाल के लिए नया अनुभव नहीं है। वे खुद बेशक, पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा नेताओं को चुनाव कई बार लड़वा चुके हैं।
2019 में मनोहर लाल की माइक्रो मैनेजमेंट और केंद्र में पांच वर्षों में मोदी सरकार के फैसलों का असर यह हुआ कि पहली बार भाजपा ने लोकसभा की सभी दस सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा नेतृत्व और पीएम नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर मनोहर लाल को ‘दस का दम’ दिखाने का ‘टास्क’ दिया हुआ है। भाजपा ने अपने उम्मीदवार घोषित करने में सबसे पहली बाजी मारी। इसका फायदा यह हुआ कि पार्टी के सभी 10 प्रत्याशी अपने-अपने संसदीय क्षेत्र का अधिकतर हिस्सा कवर कर चुके हैं।
वहीं, प्रमुख विपक्षी दल- कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन में उलझी रही। दस साल की सरकार के प्रति एंटी-इन्कमबेंसी होना स्वभाविक है। शायद, मनोहर लाल इस बात को पहले ही भांप गए थे। ऐसे में जिस भी कॉर्नर पर उन्हें जरा भी कमजोरी महसूस हुई, उसी मोर्चे को उन्होंने मजबूत करने का काम किया। लोगों के गिले-शिकवे दूर किए। टिकट नहीं मिलने की वजह से थोड़ा-बहुत नाराज पार्टी नेताओं को मनाकर वे उन्हें भी फील्ड में लगा चुके हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी मनोहर लाल काफी एक्टिव थे, लेकिन जितनी सक्रियता उन्होंने इस बार दिखाई है, उसकी चर्चा पार्टी के अलावा दूसरे दलों और प्रशासनिक गलियारों में भी चर्चाओं में बनी हुई है। आमतौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद नेता भी ‘सुस्त’ पड़ जाते हैं, लेकिन मनोहर लाल डबल जोश के साथ फील्ड में डटे हैं। उनकी सक्रियता के पीछे एक कारण यह भी है कि लगभग सवा नौ वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए और नयी नीतियों की शुरुआत की, जो लोगों को पसंद आई।
सभी 90 हलकों में ‘विजय संकल्प रैलियां’ करने का उन्हीं का प्लान था। अधिकांश हलकों को उन्होंने कवर भी किया है। जहां वे नहीं गए, वहां सीएम नायब सिंह सैनी ने मोर्चा संभाला। आधा दर्जन से ज्यादा उन्होंने रोड-शो किए हैं। एक दिन में उन्होंने 30 से 40 गांवों के लोगों के साथ सीधा संपर्क साधा है और उनके साथ जनसंवाद किया है। अगर किसी भी नजरिए से कोई भाजपा उम्मीदवार कहीं कमजोर नजर आता था तो उसकी कमजोरी को दूर करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री ने सक्रिय होकर काम किया और उस कमजोरी को दूर करने का काम किया।
करीब डेढ़ महीने में मनोहर लाल ने हरियाणा के 5 लाख से ज्यादा लोगों के साथ भाजपा के ‘स्टार कैंपेनर’ के रूप में संवाद करने का काम किया है। इस दौरान आखिरी सप्ताह में उनका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं रहने के बावजूद उन्होंने अपने कार्यक्रमों में कोई बदलाव नहीं किया और न ही कोई कार्यक्रम रद्द किया। इस दौरान मनोहर ने कार्यकर्ताओं को चार्ज भी किया। ऐसे में उन्होंने प्रचार को ‘धार’ देने के साथ-साथ संगठन को चुनाव प्रचार में लगाने का काम किया है।
26 अक्तूबर, 2014 को जब मनोहर लाल ने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में पारी शुरू की तो विपक्ष ने उन्हें अनुभवहीन बताया था। साथ ही, दावा किया था कि उनकी सरकार जल्दी ही चली जाएगी। केवल 47 विधायकों के सहारे अपना 5 वर्ष का कार्यकाल न केवल उन्होंने पूरा किया, अपितु उसके बाद विधानसभा चुनावों में भी वह भाजपा को सबसे बड़े एकल दल के रूप में लाने में सफल रहे। यहां उन्होंने 2019 में गठबंधन की सरकार चलाने का काम किया।
भले ही, बहुत से गांवों में एक वर्ग विशेष के कुछ लोगों द्वारा भाजपा उम्मीदवारों का विरोध हुआ, लेकिन इस वर्ग के बुद्धिजीवी यह मानते हैं की मनोहर सरकार में आने के बाद जिस प्रकार से हरियाणा में नौकरियां मेरिट पर दी हैं, उससे इस वर्ग को बहुत लाभ हुआ है।
मनोहर लाल ने सत्ता संभाली तो हरियाणा में बुजुर्गों की पेंशन 1000 रुपए थी। इसे बढ़ाकर 3000 रुपये तक ले गए। हरियाणा में आज 6000 से ज्यादा गांव में 24 घंटे बिजली दी जा रही है। लोगों को आयुष्मान योजना का भी लाभ मिला।
बिना खर्ची बिना पर्ची नौकरी का कितना असर है इस बात का उदाहरण मनोहर लाल ने बताया कि समालखा विधानसभा क्षेत्र में एक परिवार के चार बच्चे नौकरी लग गए। इनमें से एक राजेश नामक युवक नायब तहसीलदार लगा। उसने आकर कहा कि उनके परिवार को चार नौकरियों की जरूरत नहीं थी। वह नायब तहसीलदार नौकरी छोड़कर पूर्व मुख्यमंत्री के साथ काम करने की बात कहने लगा। तुरंत मिली हुई नौकरी छोड़ने की पेशकश करने का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता।
-मनोहर लाल, पूर्व सीएम, हरियाणा