अमरावती, 26 दिसंबर (एजेंसी)
भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एनवी रमण ने रविवार को कहा कि यह धारणा एक मिथक है कि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका, न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया में शामिल कई हितधारकों में से महज एक हितधारक है।
सीजेआई रमण ने यह बात विजयवाड़ा स्थित सिद्धार्थ विधि महाविद्यालय में पांचवें श्री लवु वेंकेटवरलु धर्मार्थ व्याख्यान में ‘भारतीय न्यायपालिका- भविष्य की चुनौतियां’ विषय पर बोलते हुए कही। उल्लेखनीय है कि हाल में केरल से सांसद जॉन ब्रिट्टस ने संसद में कहा था कि न्यायाधीशों के ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की बात दुनिया में कहीं सुनाई नहीं देती। सीजेआई रमण ने कहा, ‘न्यायाधीश खुद न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे हैं, ऐसे जुमलों को दोहराना इन दिनों चलन हो गया है। मेरा मानना है कि यह बड़े पैमाने पर फैलाए जाने वाले मिथकों में से एक है। कई प्राधिकारी इस प्रक्रिया में शामिल हैं, जिनमें केंद्रीय कानून मंत्रालय, राज्य सरकार, राज्यपाल, उच्च न्यायालय का कॉलेजियम, खुफिया ब्यूरो और अंतत: शीर्ष में कार्यकारी शामिल हैं, जिनकी जिम्मेदारी उम्मीदवार की योग्यता को परखने की है। मैं यह देखकर दुखी हूं कि जानकार व्यक्ति भी यह धारणा फैला रहा है।’
न्यायिक अधिकारियों पर हमले बढ़े
सीजेआई ने कहा कि हाल के दिनों में न्यायिक अधिकारियों पर शारीरिक हमले बढ़े हैं और कई बार अनुकूल फैसला नहीं आने पर कुछ पक्षकार प्रिंट और सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ अभियान चलाते हैं। ये हमले ‘प्रायोजित और समकालिक’ प्रतीत होते हैं। सीजेआई ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों, खासतौर पर विशेष एजेंसियों को न्यायपालिका पर हो रहे दुर्भावनापूर्ण हमलों से निपटना चाहिए। न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘सरकार से उम्मीद की जाती है और उसका यह कर्तव्य है कि वह सुरक्षित माहौल बनाए ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी बिना भय के काम कर सकें।’ उन्होंने यह भी कहा कि लोक अभियोजकों के संस्थान को स्वतंत्र करने की जरूरत है। उन्हें पूर्ण आजादी दी जानी चाहिए और उन्हें केवल अदालतों के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है।