आगरा, 27 मार्च (एजेंसी)भारत दौरे पर आए दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री सुह वूक ने यहां शनिवार सुबह भारतीय सेना के पैराट्रूपर के अभ्यास का जायजा लिया। वूक द्विपक्षीय रक्षा एवं सैन्य सहयोग को बढ़ाने के मकसद से 3 दिवसीय यात्रा के तहत बृहस्पतिवार को भारत पहुंचे। भारतीय थलसेना प्रमुख एमएम नरवणे ने भी करीब आधा घंटा चले इस अभ्यास का निरीक्षण किया। इस अभ्यास में 25 पैराट्रूपर ने हिस्सा लिया। इस अभ्यास के दौरान पैराट्रूपर ने ‘कॉम्बैट फ्री फॉल’ का प्रदर्शन किया। उन्होंने करीब 12,000 फुट की ऊंचाई से विमान से छलांग लगाई। इसके बाद करीब 80 पैराट्रूपर ने ‘स्टैटिक लाइन’ कूद का प्रदर्शन किया। उन्होंने करीब 1,250 फुट की ऊंचाई से विमान से छलांग लगाई। अभ्यास में कुल 650 जवानों ने हिस्सा लिया। इसके बाद, वूक भारतीय थलसेना के 60 पैरा फील्ड अस्पताल गए। इस अस्पताल ने 1950 के दशक में कोरियाई युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र एवं दक्षिण कोरियाई कर्मियों को चिकित्सकीय सहायता मुहैया कराई थी। दक्षिण कोरिया भारत में हथियार एवं सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करने वाला एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है। दोनों देशों ने 2019 में विभिन्न थल एवं नौसैन्य प्रणालियों के संयुक्त निर्माण में सहयोग के खाके को अंतिम रूप दिया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वूक ने शुक्रवार को दिल्ली छावनी में भारत-कोरियाई मैत्री पार्क का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया था। यह पार्क कोरियाई युद्ध के दौरान भारतीय शांतिरक्षक सेना के योगदान की स्मृति में बनाया गया है। वूक ने रक्षा संबंधों को मजबूत करने के संबंध में सिंह के साथ व्यापक मामलों पर वार्ता की।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।