डॉ. मोनिका शर्मा
‘जीवन चलने का नाम’ यह हम सब सुनते आये हैं। चलते रहना जरूरी है, यह भी खूब समझते हैं। हां, इस मोर्चे पर यह समझना भी आवश्यक है कि चलने की गति ही नहीं, संतुलन भी मायने रखता है। बैलेंस्ड लाइफ के लिए स्पीड ही नहीं, जीवन से जुड़े हर पक्ष से सरोकार रखना होता है। कैरियर का ग्राफ बढ़ाते हुए परिवार और रिश्तों की उलझनों में दोस्त पीछे छूट जाएं, ऐसा होना सही नहीं है। ठीक इसी तरह बच्चों की परवरिश में खुद का हर सपना भुला देना और ज़िम्मेदारियों की जद्दोजहद में सेहत से समझौता कर बैठना भी उचित नहीं। भविष्य में तेज़ गति से चलने के कारण न तो कुछ छूटने का अपराधबोध हिस्से आये और न ही नासमझी और आपाधापी में ज़िंदगी अपनी पटरी से डगमगाए। हर पहलू पर एक सहज तालमेल बना रहे।
बना रहे बैलेंस
ज़िंदगी में बहुत कुछ साथ लेकर चलना पड़ता है। ऐसे में बिना बैलेंस बनाए सोच को धरातल पर नहीं उतारा जा सकता। कोई भी इंसान बार-बार क्या करना है और क्या नहीं के फेर में आगे ही नहीं बढ़ पाता। हर किसी को यह भय घेरे रहता है कि यह किया तो वह छूट जाएगा या वह किया तो यह नहीं हो सकेगा। ऐसी दुविधा, कैरियर, रिश्ते, सेहत या आर्थिक पहलू सभी के मामले में सामने आती है। इसीलिए यह समझना आवश्यक है कि संतुलन जरूरी है पर यह संतुलन किसी एक बात या विचार पर अटके रहकर नहीं आता। वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टीन के मुताबिक’जीवन साइकिल चलाने की तरह है। संतुलन बनाए रखना है, तो आगे बढ़ते रहना जरूरी है।’ यकीनन यह बात ज़िंदगी की तमाम परिस्थितियों में गहराई से लागू होती है। अच्छे-बुरे हालातों में मिले अनुभवों को समझते-गुनते हुए जीवन को गतिमान रखना सबसे जरूरी है। यह सहज गति ही संतुलन बनाए रखने में मददगार है।
जारी रहे यात्रा
जीवन के सफर में थकना भी लाजिमी है और परेशान होना भी। बस मायने रखता है तो यह कि यात्रा जारी रहे। हम चलते रहने की राह चुनते हैं तो कहीं न कहीं पहुंचते भी हैं ही। हर एक कदम हमें मंज़िल के करीब लेकर जाता है। एक चीनी कहावत है कि ‘धीमी गति से आगे बढ़ना कोई डरने वाली बात नहीं, डरें केवल रुके रह जाने से।’ सच ही है क्योंकि कई बार समस्याएं रफ्तार धीमी भी कर देती हैं पर रुक जाना कोई हल नहीं। चर्चित नॉवलिस्ट और फिलॉसफर आयन रैंड के मुताबिक, ‘अन्य किसी बात की कोई अहमियत नहीं, सिवाय इसके कि आप अपना काम कितने अच्छे से करते हैं।’ आयन रैंड का यह भी कहना है कि ‘अगर कोई काम करने लायक है तो वो अच्छी तरह करने लायक भी है।’ यानी आप आगे बढ़ने की ठान लेते हैं तो संतुलन साधकर भी चल ही सकते हैं। हालांकि दिलो- दिमाग ज्यादा ही उलझने लगे तो ठहरकर सुस्ता जरूर लेना चाहिए। यह ठहराव स्थिति को समझने से लेकर निर्णय करने तक, हर पहलू पर मददगार बनता है। ‘द जॉय चॉइस’ किताब की लेखिका मिशेल सेगर एक सुंदर फ़ार्मूला सुझाते हुए कहती हैं कि किसी उलझन या समस्या के समय जब मन-जीवन का संतुलन बिगड़ने लगे तो -ठहराव, विकल्पों पर विचार और विकल्पों का चुनाव- यह थ्री स्टेप सूत्र अपनाना चाहिए । ज़िंदगी में बिगड़ते बैलेंस के दौर में जब उलझनें आ घेरें तब ठहराव विचारों पर फोकस करने की शक्ति देता है। इन परिस्थितियों में विकल्पों को लेकर सोचना संभावित हल सुझाने का काम करता है। नतीजतन, उस समय आपके सामने मौजूद बेहतरीन रास्ता चुनने में बहुत मदद मिलती है ।
खुशहाल ज़िंदगी की बुनियाद
जिंदगी के किसी एक ही पक्ष पर ही बेहतरीन परफॉर्म करना काफी नहीं होता। इस भागमभाग में छूट गए रिश्ते नाते, शौक या दूसरी कई चीजों की टीस ताउम्र मन में बनी रहती है। अपराधबोध भी जड़ें जमाता है। जबकि बीता हुआ समय लौट कर नहीं आ सकता। ऐसे में जरूरी है कि एक संतुलन साधते हुए जिंदगी को खुशहाल बनाया जाये। कैरियर, कामयाबी या संबंधों से जुड़े रहने की गहरी समझ। सबका मिलाजुला रंग ही जीवन को सुखी बनाता है। इसीलिए सेहत की संभाल से लेकर छुट्टियां मनाने तक, सब आपकी टू डू लिस्ट में शामिल होना चाहिए। ध्यान रहे कि कई बार एक ही पक्ष पर कमाल करना जिंदगी के कितने ही दूसरे पहलुओं को असंतुलित कर देता है। इससे बचने के लिए बैलेंस बनाकर चलें। यही खुशहाल जिंदगी की बुनियाद है।