कैलाश सिंह
कजरा मुहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला, कजरे ने ले ली मेरी जान, हाय रे मैं तेरे कुर्बान’, ‘मेरे पिया गये रंगून, वहां से किया है टेलीफोन’, ‘लेके पहला पहला प्यार, भरके आंखों में ख़ुमार’, ‘कभी आर कभी पार’ जैसे सदाबहार गीत आपने अवश्य सुने होंगे, भले ही इनकी गायिका का नाम युवा पीढ़ी को मालूम न हो। यह भी हो सकता है कि इनके रीमिक्स आपने सुने हों। इन गीतों को अपनी मधुर आवाज़ से सजाया है शमशाद बेगम ने, जो हिंदी सिनेमा में प्लेबैक देने वाली शुरुआती महिलाओं में से एक रहीं। वे नूरजहां व लता मंगेशकर दोनों से सीनियर थीं। बहुत बड़े-बड़े संगीतकार जैसे गुलाम हैदर, ओपी नय्यर, एसडी बर्मन, नौशाद, सी रामचन्द्र आदि उनकी आवाज़ के दीवाने थे। शमशाद बेगम ने सिर्फ़ उर्दू व हिंदी में ही सैंकड़ों गाने नहीं गाये बल्कि गुजराती, पंजाबी, मराठी, तमिल व बंगाली में भी उनके सैंकड़ों गाने हैं।
गायन की औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल 1919 में लाहौर के एक परंपरा प्रेमी परिवार में हुआ था, इसलिए एक पार्श्व गायिका बनने के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा। पंद्रह साल की आयु में धर्म की दीवारें तोड़कर शादी की। हालांकि शमशाद बेगम ने गायन की कभी औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन उनमें प्रतिभा जन्मजात थी, जिसे सबसे पहले पहचाना 1924 में उनके प्राइमरी स्कूल के अध्यापक ने। उन्हें क्लासरूम प्रार्थना की मुख्य गायिका बना दिया गया। जब वह दस साल की हुईं तो धार्मिक समारोहों व परिवार की शादियों में गाने लगीं। साल 1931 में जब वह 12 साल की थीं तो उनके एक चाचा उन्हें ज़ेनोफोन म्यूजिक कंपनी में ऑडिशन के लिए लेकर गये। लाहौर स्थित संगीतकार गुलाम हैदर उनकी आवाज़ से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शमशाद बेगम को 12 गानों का कांट्रेक्ट दे दिया। शमशाद बेगम के पिता ने अपनी बेटी के गाने इस शर्त पर रिकॉर्ड होने दिए कि वह बुर्का ओढ़कर गायेंगी। निर्माता दिलसुख पंचोली ने शमशाद बेगम को अपनी फिल्म में रोल ऑफर किया था, लेकिन शमशाद बेगम के पिता ने यह मंजूर नहीं करने दिया।
पब्लिसिटी से हमेशा रहीं दूर
शायद यही वजह है कि अपने जीवन के अंत तक शमशाद बेगम अपने फोटो खिंचवाना पसंद नहीं करती थीं। साल 1933 और 1970 के बीच बहुत कम लोगों ने ही उनकी तस्वीरें देखीं। वह पब्लिसिटी से ख़ुद को दूर रखती थीं। शमशाद बेगम ने शुरू में गाने की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन बाद में 1937 व 1939 के बीच उन्हें सारंगी उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहब और गुलाम हैदर से औपचारिक ट्रेनिंग हासिल हुई। गुलाम हैदर ने अपनी शुरुआती फिल्मों में शमशाद बेगम की आवाज़ का भरपूर इस्तेमाल किया और जब 1944 में वह बॉम्बे शिफ्ट हो गये तो शमशाद बेगम भी लाहौर से उनकी टीम के साथ बॉम्बे शिफ्ट हो गईं। देश विभाजन के समय गुलाम हैदर पाकिस्तान चले गये और शमशाद बेगम दूसरे संगीतकारों के लिए भी गाने लगीं।
नौशाद देते थे अपनी सफलता का श्रेय
नौशाद अपनी सफलता का श्रेय शमशाद बेगम को दिया करते थे। उनके अनुसार वह बहुत आहिस्ता बोलने वाली भावुक महिला थीं, जिन्हें पब्लिसिटी की कोई इच्छा नहीं थी। साल 2009 में शमशाद बेगम को ओपी नय्यर अवार्ड और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
दोबारा गाने के लिए ओपी नय्यर ने मनाया
पब्लिसिटी की इच्छुक न होने के बावजूद शमशाद बेगम 1940 से 1955 तक और फिर 1957 से 1968 तक सबसे अधिक कमाई करने वाली महिला गायिका थीं। 1955 में उनके पति गणपत लाल बट्टो की एक हादसे में मृत्यु हो गई थी जिसके बाद उन्होंने गाना बंद कर दिया था। उन्हें फिर से गाने के लिए ओपी नय्यर ने मनाया। शमशाद बेगम की नय्यर से लाहौर में मुलाक़ात हुई थी, जब वह आल इंडिया रेडियो के लिए गाया करती थीं। जब 1954 में नय्यर को संगीतकार के रूप में ब्रेक मिला तो फिल्म ‘मंगू’ के गानों की रिकॉर्डिंग के लिए सबसे पहले शमशाद बेगम के पास ही गये थे। नय्यर का कहना था कि शमशाद बेगम की आवाज़ अपनी टोन की स्पष्टता के कारण ‘मंदिर की घंटी’ की तरह है।
किशोर कुमार के साथ गायन
1940 के दशक के अंत में मदन मोहन और किशोर कुमार शमशाद बेगम के गानों में कोरस गाया करते थे। उस समय शमशाद बेगम ने मदन मोहन से वायदा किया था कि वे जब संगीत निर्देशक बनेंगे तो वह उनके लिए कम फीस पर भी गायेंगी। उन्होंने अपना वायदा निभाया। उन्होंने किशोर कुमार के बारे में भविष्यवाणी की थी कि वह महान गायक बनेंगे। उन्होंने किशोर के साथ युगल गीत भी गाये। लम्बी बीमारी के बाद शमशाद बेगम का मुंबई स्थित अपने निवास पर 23 अप्रैल 2013 को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह अपने पीछे अपनी बेटी उषा रात्रा को छोड़ गई। -इ.रि.सें.