
शिमला, 25 मई (निस)
हिमाचल प्रदेश की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने राज्य के चिकित्सकों को मिलने वाला एनपीए बंद कर दिया है। मंत्रिमंडल के फैसले के बाद आज वित्त विभाग ने एनपीए बंद करने की अधिसूचना जारी कर दी। फैसले के मुताबिक भविष्य में राज्य में स्वास्थ्य, पशु पालन और आयुर्वेद विभाग में भर्ती होने वाले चिकित्सकों को एनपीए का भुगतान नहीं होगा। फैसले से डॉक्टरों को वित्तीय नुकसान होगा, मगर खजाने में हर साल बचत होगी। राज्य में स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ पशु पालन व आयुष विभाग में कार्यरत चिकित्सकों को नॉन-प्रैक्टिस एलाउंस अर्थात एनपीए मिलता है। एनपीए लेने के बाद चिकित्सक निजी अस्पतालों में प्रैक्टिस नहीं कर सकते। चिकित्सकों को पहले मूल वेतन का 25 फीसद एनपीए मिलता था, मगर छठे पंजाब वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद एनपीए को 20 फीसद किया गया है। चिकित्सकों को सालों से एनपीए का भुगतान सरकार कर रही है। मूल वेतन में एनपीए को शामिल करने के बाद चिकित्सकों के डीए की गणना के साथ-साथ पेंशन का निर्धारण भी होता है।
मगर अब राज्य में भर्ती होने वाले चिकित्सकों को एनपीए नहीं मिलेगा। जाहिर है कि चिकित्सकों को इसका वित्तीय नुकसान होगा। लिहाजा चिकित्सक फैसले का विरोध करने लगे हैं।
‘फैसला पूरी तरह से अव्यवहारिक’
हिमाचल मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि सरकार का यह फैसला पूरी तरह से अव्यवहारिक है। देश के अन्य कांग्रेस शासित राज्यों के साथ भाजपा व अन्य दलों द्वारा शासित राज्यों में भी एनपीए का भुगतान हो रहा है। मगर सुक्खू सरकार ने इसे बंद कर दिया है। एसोसिएशन के कहना है कि सरकार को फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए। एसोसिएशन ने सरकार के इस फैसले पर हैरानी जताते हुए कहा कि अफसरशाही सरकार को इस तरह के फैसले लेने के लिए विवश कर रही है। पहले स्वास्थ्य विभाग में हिमाचल प्रदेश मेडिकल सर्विस कारपोरेशन का गठन करने का फैसला लिया गया। इस निगम के गठन से खरीद प्रक्रिया में विलंब होगा। दवाओं की खरीद में विलंब होने से रोगियों को दिक्कत होगी।
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