शिमला, 24 अप्रैल (हप्र)
हिमाचल प्रदेश में सेब की पैदावार लगातार कम हो ही है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते मौसम में आए बदलाव की वजह से बीते एक दशक में सेब पैदावार घटने से बागवान चिंतित हैं। एक ओर जहां सेब की पैदावार कम हो रही है, वहीं उत्पादन लागत में इजाफा हो रहा है। आयातित सेब की मार भी हिमाचल के सेब पर पड़ रही है।
बावजूद इसके चुनावी रणभूमि में शुरू हुए आरोप-प्रत्यारोप के दौर के बीच सेब व अन्य फलों के मुद्दों पर चर्चा नदारद है। बागवानी के मुद्दों पर चर्चा न होने से खफा संयुक्त किसान मंच अब चुनाव प्रचार के दौरान मौजूद सांसदों के साथ साथ अन्य दलों के उम्मीदवारों से भी बागवानी को लेकर उनके रुख के बारे में सवाल दागने की तैयारी में है। संयुक्त किसान मंच के सह संयोजक संजय चौहान का कहना है कि किसान व बागवान उसी उम्मीदवार का समर्थन करेंगे जो उनकी बात करेगा।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के सांसदों ने संसद में सेब और गुठलीदार फल बागवानों का कोई मुद्दा नहीं उठाया। प्रत्याशी वोट मांगने आएंगे तो उनसे आयात शुल्क, जीएसटी और एमआईएस को लेकर सवाल पूछे जाएंगे। संयुक्त किसान मंच 7 मई को चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले शिमला में रणनीति बनाएगा। मंच ने सरकार से कश्मीर की तर्ज पर ए ग्रेड सेब 80, बी ग्रेड 60 और सी ग्रेड 45 रुपये किलो खरीदने की मांग की है। साथ ही स्वामिनाथन कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक एमएसपी देने की मांग भी मंच कर रहा है। मंच का कहना है कि चाय व कॉफी की तर्ज पर सेब पर भी आयात शुल्क 100 फीसद होना चाहिए। इसके अलावा कार्टन, बीज, खाद तथा कीट व फफूंदनाशकों पर जीएसटी समाप्त किया जाना चाहिए।
हिमाचल में सेब आर्थिकी से जुड़े हैं पौने दो लाख परिवार
हिमाचल प्रदेश में करीब पौने दो लाख परिवार प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर बागवानी से जुड़े हैं। करीब 17 विधानसभा क्षेत्रों में इन परिवारों का असर है। इन 17 हलकों में मंडी, शिमला व कांगड़ा संसदीय क्षेत्र शामिल हैं। लिहाजा संयुक्त किसान मंच चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों से बागवानों के मुद्दों पर चर्चा के मूड में है। संजय चौहान का कहना है कि चर्चा में राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों के रुख का पता चल सकेगा। बागवान उसी आधार पर मतदान का फैसला लेंगे।