अकेला जोशीमठ शहर ही नहीं जो ढह रहा है, उत्तराखंड के उत्तरकाशी व कर्णप्रयाग जैसे कई अन्य शहर भी भू-धंसाव की चुनौती से जूझ रहे हैं। हाल में खबर आई है कि हिमाचल के मंडी जिले के दो गांवों में भी भू-धंसाव से कुछ मकानों में दरारें देखी गई हैं। जिसकी वजह चार लेन परियोजना को अंजाम देने के लिये गैर-वैज्ञानिक तरीके से पहाड़ियों को काटना बताया जा रहा है। जिसके चलते हुए भूस्खलन से दो गांवों को जाने वाली संपर्क सड़क क्षतिग्रस्त हो गई है। साथ ही जमीन के एक बड़े हिस्से में भी दरार आई बतायी जाती है। निस्संदेह, आज हिमालय रेंज में बसे शिमला और दार्जिलिंग जैसे भीड़भाड़ वाले पहाड़ी शहरों में जोशीमठ जैसी आपदा का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल,यह समस्या किसी एक राज्य या जिले की न होकर अपेक्षाकृत नये हिमालयी पहाड़ों में बसे तमाम शहरों की बनी हुई है। भले ही केंद्र व उत्तराखंड की सरकारों का मुख्य ध्यान भूस्खलन से प्रभावित लोगों के पुनर्वास पर है, लेकिन हिमालयी इलाकों में ऐसी आपदाओं को रोकने के लिये राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर दीर्घकालिक विकास योजनाओं को अमली-जामा पहनाने की जरूरत है। साथ ही आपदाओं को कम करने तथा बेहतर प्रबंधन पर ध्यान देने की भी जरूरत है। अनियोजित विकास अब चाहे वह विकास के नाम पर हो या पर्यटन के, वह नाजुक हिमालयी परिस्थितियों पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। पर्यटन सुविधाओं के विस्तार के बीच खबर है कि उत्तराखंड के राष्ट्रीय राजमार्ग-7 पर जोशीमठ से ऋषिकेश के बीच 247 किमी क्षेत्र को वैज्ञानिकों ने भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील माना है।
यहां ध्यान देने योग्य बात है कि भू-धंसाव के बाद जोशीमठ में व्यवसायों पर मंदी के प्रतिकूल प्रभाव से हजारों लोगों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है। जो यह बताता है कि तब तक पहाड़ों में पर्यटन का विकास लाभदायक नहीं हो सकता जब तक कि सतत विकास पर ध्यान न दिया जाये। देश की अदालतों और न्यायाधिकरणों को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी बुनियादी ढांचे से जुड़ी किसी भी परियोजना, मसलन- सड़कों, सुरंगों, पन-बिजली परियोजनाओं को तब तक अनुमति न मिले जब तक कि पारिस्थितिकी से जुड़ी चिंताओं का समाधान न हो जाये। पिछले साल ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित शिमला ड्राफ्ट डेवलपमेंट प्लान-2041 को अवैध बताते हुए हिमाचल की राजधानी में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी थी। निस्संदेह, बहुमूल्य पहाड़ियों और उनके निवासियों का जीवन सुरक्षित करने के लिये ऐसे दृढ़ संकल्प की जरूरत है। साथ ही पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये सख्त कदम उठाने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर नागरिकों के स्तर पर भी जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत महसूस की जा रही है कि पहाड़ों की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्माण को नियमबद्ध तरीके से अंजाम दें। निस्संदेह, पहाड़ों को बचाने के लिये सतर्क सरकारी प्रयासों व सजग नागरिक व्यवहार एक अपरिहार्य शर्त है। तभी हिमालयी पर्वत शृंखला में सुरक्षित जीवन संभव हो पायेगा।