कोरोना महामारी की त्रासदी से जूझती मानवता को अब एक ही इंतजार है कि जल्द से जल्द कोई ऐसी वैक्सीन आये जो जीवन को सामान्य बनाने में कारगर हो। ऐसे में रूस द्वारा कोरोना वायरस की वैक्सीन खोज लेने के दावे को वैसा प्रतिसाद नहीं मिल पाया, जैसी उम्मीद लगायी जा रही थी। इसे शीतयुद्ध की बाकी कड़वाहट कहें या वैक्सीन पहले खोजने की प्रतिस्पर्धा कि पश्चिमी जगत ने इस खोज के प्रति गंभीरता नहीं दर्शायी। इन संशयवादियों ने लोगों के उत्साह को कम किया है। मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने आश्चर्यजनक ढंग से घोषणा की कि कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली गई है। फिलहाल दुनिया में सौ से अधिक वैक्सीनों पर काम चल रहा है और कई वैक्सीनों का ट्रायल अंतिम चरण में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सूची में जिन छह वैक्सीनों के कामयाबी के करीब पहुंचने का उल्लेख है, उसमें रूसी वैक्सीन का जिक्र नहीं है। फिर भी रूसी वैक्सीन पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गई। जब पुतिन ने अपनी बेटी पर वैक्सीन के ट्रायल की बात कही तो दुनिया में इसकी खासी चर्चा हुई। आमतौर पर पुतिन के परिजन सार्वजनिक जीवन में नजर आने से बचते रहे हैं। रूस का दावा है कि अक्तूबर तक वह पहले अपने स्वास्थ्य कर्मचारियों और फिर शिक्षकों के लिये टीकाकरण अभियान चलाएगा। टीके का व्यावसायिक उत्पादन अक्तूबर तक होने की बात कही गई। यहां तक दावा किया गया कि पांच सौ मिलियन खुराक तैयार करने के लिये विदेशी कंपनियों के साथ समझौता किया गया है। रूस ने इस वैक्सीन का नाम स्पुतनिक-वी दिया है। दरअसल, स्पुतनिक रूस का पहला सैटेलाइट था, जिसने अमेरिका को पछाड़ कर अंतरिक्ष में रूसी वर्चस्व को कायम किया था। इस वैक्सीन का नाम स्पुतनिक रखकर रूस कहीं न कहीं अमेरिका को यही संदेश दे रहा है कि वह कोरोना वैक्सीन की दौड़ में अमेरिका से आगे निकल गया है। ये वक्त बतायेगा कि टीका कितना कारगर साबित होगा।
दरअसल, रूस के वैक्सीन के दावे पर इसलिये भी सवाल उठे हैं क्योंकि इस टीके का परीक्षण अभी अंतिम तीसरे चरण में है। टीके की प्रभावशीलता पर सवाल उठाये जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर रूस टीका बनाने में जल्दबाजी कर रहा है। डब्ल्यूएचओ भी किसी भी टीके को तैयार करने से पहले उसके पर्याप्त चरणों की जरूरत को पूरा करने पर बल देता है। कहा जा रहा है कि यदि भारत में इस वैक्सीन का प्रयोग होता है तो इसकी मंजूरी से पहले टीके का दूसरे व तीसरे चरण का परीक्षण देश में करना होगा, जिसमें कुछ माह का समय लग सकता है। अभी भारत में एक स्वदेशी वैक्सीन के अलावा ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के ट्रायल अंतिम चरण में हैं। दुनिया में अब तक दो करोड़ से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और साढ़े सात लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इस महामारी ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है। कारगर वैक्सीन का पूरी दुनिया को बेसब्री से इंतजार है। ऐसे में रूस के गेमालेया इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित वैक्सीन को लेकर व्यक्त की जा रही शंकाएं निराधार नहीं हैं। वैक्सीन का सुरक्षा मानकों पर खरा उतरना बेहद जरूरी है, तभी इसका व्यापक पैमाने पर उपयोग किया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ भी कह रहा है कि उसके पास इस वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है ताकि वह इसका मूल्यांकन कर सके। जांच प्रक्रिया में सुरक्षित पाये जाने पर ही संगठन इस वैक्सीन के उपयोग की सिफारिश करेगा। जून में शुरू किये ट्रायलों के आधार पर रूस ने इस वैक्सीन को लेकर जो जल्दबाजी दिखायी है, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। रूस ने ट्रायल के दौरान सेफ्टी डाटा भी अभी जारी नहीं किये हैं। दरअसल, सुरक्षित वैक्सीन बनाने में वर्षों का समय लगता है। वैक्सीन की कसौटी इस बात में होगी कि यह संक्रमण से बचाव में कितनी कारगर है और कितने समय तक प्रभावी रहेगी।