रेनू सैनी
इस शताब्दी के 21 साल बीत गए। नये वर्ष की शुरुआत हो चुकी है। प्रत्येक व्यक्ति की यह कामना होती है कि नये वर्ष का जीवन एवं कार्य पुराने वर्ष से अच्छा हो। किसी भी वर्ष को सफल बनाने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि व्यक्ति को दूसरों के साथ कार्य एवं व्यवहार की समझ हो। कई संबंध केवल इसलिए बिखर और बिगड़ जाते हैं क्योंकि व्यक्तियों को दूसरों के नज़रिए को प्रभावित करने की कला नहीं आती।
दूसरों पर नियंत्रण के लिए यहां किसी जादू की बात नहीं की जा रही है, अपितु एक मनोविज्ञान के नियम को उजागर किया जा रहा है। इस नियम को जानकर प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के कार्य और दृष्टिकोण पर सहजता से नियंत्रण पा सकता है। क्या आपको यह ज्ञात है कि जिन मामलों में आपके साथ अशिष्ट व्यवहार हुआ, आपको निम्नतर आंका गया, उनमें से 95 प्रतिशत मामलों में दरअसल आपने खुद ऐसी स्थिति की मांग की थी। उस समय आप सामने वाले के कार्य को नियंत्रित कर रहे थे और उसे मजबूर कर रहे थे कि वह आपके साथ अशिष्टता करे।
यह पढ़कर आपको अचरज हो रहा होगा कि भला यह कैसे हो सकता है? लेकिन यह सत्य है। मनोविज्ञान का नियम जानकर आप भी उपरोक्त कथन से सहमति जताए बिना नहीं रह पाएंगे। मनोविज्ञान का नियम है कि व्यक्ति सामने वाले द्वारा किए गए कार्य अथवा कथन पर समान प्रतिक्रिया करता है। समान प्रतिक्रिया करना सहज है लेकिन इससे मिलने वाले परिणाम आश्चर्यजनक हैं। हम कई बार व्यक्ति को बिना जाने-समझे ही उसके बारे में निर्णय कर लेते हैं कि वह सही नहीं है। यह धारणा बनाने के बाद हम उससे उसी के अनुरूप व्यवहार करते हैं, जिससे वह नकारात्मक प्रतिक्रिया दे। उसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद हम अपनी पीठ थपथपाते हैं कि अमुक व्यक्ति के बारे में मेरी राय सटीक थी।
अमेरिकी नौसेना के साथ केनयॉन कॉलेज के स्पीच रिसर्च यूनिट ने यह साबित किया है कि जब किसी व्यक्ति पर चिल्लाया जाता है, तो वह व्यक्ति भी पलटकर चिल्लाए बिना नहीं रह सकता, भले ही वह वक्ता को न देख पाए। इस बात को जांचने के लिए फोन और इंटरकॉम पर एक परीक्षण किया गया। वक्ता फोन पर सरल सवाल पूछता था लेकिन हर बार सवाल अलग-अलग स्वर में पूछा जाता था। हैरत की बात यह थी कि जिस सुर में प्रश्न पूछा जाता था, उसी सुर में जवाब आता था। यदि प्रश्न सौम्य और सहज स्वर में होता था तो जवाब भी उसी सुर में। यदि प्रश्न क्रोध और रोषभरे स्वर में पूछा जाता था तो जवाब भी क्रोध एवं रोषपूर्ण होता था। यदि प्रश्न चिल्ला कर पूछा जाता था तो उत्तर भी चिल्ला कर ही मिलता था।
यदि इस मनोवैज्ञानिक परीक्षण को जीवन में इस्तेमाल किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति सामने वाले के क्रोध, डांट एवं नकारात्मक व्यवहार को अपने नियंत्रण में ले सकता है और छोटे से लेकर बड़े संबंध को सुधार सकता है। यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि व्यक्ति जितनी ऊंची आवाज में बोलता है, उसे क्रोध भी उतना ही तेज आता है। आवाज की गति धीमी रखने पर क्रोध नहीं आता। क्या आपने कभी किसी को मद्धिम स्वर में लड़ते अथवा गुस्सा करते देखा है? नहीं न। लड़ाई एवं क्रोध आवाज़ की हाई पिच पर ही होते हैं। मनोविज्ञान इस बात को स्वीकार कर चुका है कि नर्म आवाज और मंद स्वर का जवाब क्रोध एवं लड़ाई को मोड़ देता है।
उपरोक्त तथ्य को जानने के बाद सामने वाले की भावनाओं एवं मूड को आश्चर्यजनक तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। इसे अप्रत्यक्ष रूप से जादू कहा जा सकता है। लेकिन यह आश्चर्यजनक कमाल जादू का नहीं बल्कि मनोविज्ञान के नियम का होता है। कई बार व्यक्ति को जब बहुत अधिक क्रोध आ रहा होता है तो वह कुछ नहीं देखता। उस समय उसकी आंखों मंे क्रोध एवं विध्वंस की लालिमा तैरने लगती है। यह लालिमा चिंगारी बनकर फूटे और नुकसान कर दे, इससे पहले इसे रोक लेना चाहिए। इसे रोकने के लिए तुरंत अपनी आवाज नीची कर लेनी चाहिए। आवाज नीची होने पर दूसरे पक्ष को भी अपनी आवाज नीची करनी पड़ेगी। मगर हां इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि यह कार्य मामला बिगड़ने से पहले करना है। यदि सामने वाले का क्रोध हमने तेज-तेज बोलकर चरम पर पहुंचा दिया तो फिर बात हाथ से निकल सकती है। इसके बाद हम कितने भी प्रयास करें लेकिन कमान से निकला तीर वापस कमान में डालना असंभव है।
यह बात क्रोध एवं लड़ाई के साथ अन्य कई मामलों में भी कारगर सिद्ध होती है। कई व्यक्ति स्वयं से इतने परेशान होते हैं कि वे नकारात्मक अधिक बोलते हैं, इसी तरह कई लोगों की बेवजह शिकायतें करने की आदत अधिक होती है। यदि हम भी उनके रंग में ढल जाते हैं तो मानवता का अवसान होने लगता है और संबंध बिखरने लगते हैं। संबंधों को जोड़ने के लिए मनोविज्ञान के ‘नियंत्रण के नियम’ को सीखना और उस पर अमल करना अनिवार्य है। ऐसा करके हम साल के सभी दिन जीवन में खुशी, सफलता, उत्साह एवं जोश के रंग भर सकते हैं।