मोहम्मद मुइज्जू ने चुनाव परिणाम को ‘सुपर मेजोरिटी’ कहा है। दो लाख 84 हज़ार 887 मालदीवियन वोटरों में से 84.14 फीसद ने संसदीय चुनाव में हिस्सा लिया था। मुइज़्ज़ू की पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) ने संसद की 93 सीटों में से 71 पर फतह की है। पीएनसी के पास अपने गठबंधन दलों के साथ कुल मिलाकर 75 सीटें हैं, जबकि मुख्य विपक्षी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) पहले की 65 सीटों से घटकर केवल 12 सीटों पर रह गई है। पीएनसी ने 90 प्रत्याशी उतारे थे, जबकि एमडीपी ने 89 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चुनाव लड़ा। 130 स्वतंत्र उम्मीदवारों से अलहदा जम्हूरी पार्टी (जेपी) के 10 और डेमोक्रेट्स के 39 कैंडिडेट्स थे।
जीत-हार का फ़ासला सुनकर हैरान होइएगा। पचास-सौ वोट से भारत के किसी गली-मोहल्ले और हाउसिंग सोसायटी चुनाव में लोग हारते-जीतते हैं। दुनिया मॉमून मालदीव की विदेशमंत्री रह चुकी हैं। अहमद फारिस मॉमून उनके भाई हैं, जो कभी अर्थ मंत्रालय संभालते थे। पूर्व राष्ट्रपति मॉमून अब्दुल गयूम की दोनों संतानें इस बार चुनाव हार चुकी हैं। 1978 से 2008 तीस साल तक अखंड राज किया था मॉमून अब्दुल गयूम ने। उस कालखंड में इनकी संतानों के जलवे थे। जनमत की ताक़त ने चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला। यह बात सफलता के नशे में चूर राष्ट्रपति मुइज्जू की समझ में शायद देर से आये।
अभी सबको यही लग रहा है कि मुइज्जू ने ‘इंडिया आउट’ का जो नारा दिया था, उसका असर संसदीय चुनाव पर भी पड़ा है। बेशक पड़ा होगा। लेकिन अमेरिकी फैक्टर सबकी आंखों से ओझल है। इस परिणाम से अमेरिका को भी झटका लगा है। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि हमने चुनाव परिणामों पर बारीकी से नजर रखी है। हमें यह सुनकर खुशी हुई कि पर्यवेक्षकों ने कोई बड़ा मुद्दा या अनियमितता नहीं बताई है और नतीजे लोगों की इच्छा के अनुरूप हैं। हिंद-प्रशांत में क्षेत्रीय प्रभाव को विस्तार देने और चीन को बेअसर करने के लिए अमेरिका ने 2023 में माले में दूतावास खोला था। यों, अमेरिका ने मालदीव की स्वतंत्रता के बाद 1966 में उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक साझेदारी को विस्तार देने के मकसद से अमेरिका ने सितंबर, 2020 में मालदीव से सुरक्षा सहयोग पर हस्ताक्षर किए थे। तो क्या मालदीव में अमेरिकी रणनीति विफल हो गई? दिल्ली पर सवाल दरपेश करने से पहले इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
मालदीव ने 1965 में इस्राइल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। उस समय इस्राइल, मालदीव को मान्यता देने वाला तीसरा देश था, और इस्राइली राजदूत मालदीव के राष्ट्रपति को अपना प्रत्यय पत्र प्रस्तुत करने वाले पहले कूटनीतिक थे। 2009 में राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद के नेतृत्व में मालदीव ने इस्राइल के साथ पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए। मालदीव इस्राइली पर्यटकों के बीच लोकप्रिय डेस्टिनेशन रहा है। लेकिन गाज़ा युद्ध के बाद सब कुछ बदल गया।
वर्ष 2023 में फलस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए मालदीव में ‘इस्राइल आउट’ जैसे प्रदर्शन आयोजित किये गये। मालदीव के सांसद सऊद हुसैन ने इस्राइली पासपोर्ट धारकों को देश में आने पर प्रतिबंध लगाने के लिए संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था। साथ में इस्राइली युद्ध का समर्थन करने वाली कंपनियों के बहिष्कार का आह्वान किया था। इन सबका फायदा मुइज्जू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) को इस बार के संसदीय चुनाव में मिला है। भारत ने जिस तरह नेतन्याहू के प्रति सहानुभूति दिखाई, उसने भी चुनाव प्रचार के समय पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के लिए ईंधन का काम किया था। पीएनसी की विजय और मुख्य विपक्षी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की पराजय के पीछे पंचतंत्र की तरह कहानी के पीछे कहानियों के जाल बिछे हैं।
इस समय सबसे गद्गद चीन है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हम सफल संसदीय चुनावों के लिए मालदीव को बधाई देते हैं, और मालदीव के लोगों की पसंद का पूरा सम्मान करते हैं। हमें साझा भविष्य तय करना है। मालदीव के साथ काम करने को हम तैयार हैं।’ अब जिस तरह मालदीवियन संसद ‘मजलिस’ में सुपर मेजोरिटी मुइज्जू की पार्टी को हासिल हुई है, चीन के सोये अरमान जग चुके हैं।
शिन्हुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग ने कहा, ‘चुनाव से पहले, विपक्षी दल ने संसद को नियंत्रित किया था, इसलिए मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति पद को काफी दबाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। अब हासिल चुनावी जीत मुइज़्ज़ू को काफी मजबूत करती है, जो उनकी वर्तमान घरेलू और विदेशी नीतियों के सुचारु कार्यान्वयन के लिए फायदेमंद है।’
थिएनक्वांगछिंग चाइनिज अकादमी ऑफ सोशल साइंस में सीनियर रिसर्च फेलो हैं। उनके बयान पर ग़ौर करें, तो चीनी मंशा साफ हो जाती है। थिएनक्वांगछिंग ने कहा, ‘आकार और जनसंख्या के मामले में एक छोटे राष्ट्र के रूप में मालदीव की प्राथमिक चिंताएं स्वतंत्रता बनाए रखना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। मालदीव में भारत की सैन्य उपस्थिति देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए ख़तरा है। मुइज्जू का अभियान आर्थिक विकास पर काफी हद तक केंद्रित है। यह चुनाव राष्ट्रपति के विकास एजेंडे के लिए जनता के समर्थन को दर्शाता है।’
मतलब साफ़ है कि चीनी बंदूक प्रेसिडेंट मुइज़्ज़ू के कंधे पर है। वो संसद में मालदीव के आर्थिक विकास के नाम पर ‘वन बेल्ट रोड इनीशिएटिव’ की कई सारी लंबित योजनाएं पास कराएंगे। संसद से रक्षा समझौतों की पुष्टि कराएंगे। इस इलाके में भारत के रणनीतिक असर को कैसे कम करना है, उसकी कवायद शुरू हो जाएगी। इसे काउंटर करने के लिए भारत को क्या करना चाहिए? यह सबसे बड़ा सवाल है। मालदीव भौगोलिक रूप से एक ओर अदन की खाड़ी और पश्चिमी हिंद महासागर के होर्मुज जलडमरूमध्य के चोकप्वाइंट पर टिका है, दूसरी ओर पूर्वी हिंद महासागर के मलक्का जलडमरूमध्य के चोकप्वाइंट के बीच एक ‘टोल गेट’ की तरह अवस्थित है। ऐसे सामरिक महत्व के मुल्क की हम उपेक्षा भी नहीं कर सकते।
भारत और मालदीव के बीच 545 नॉटिकल माइल्स वाली समुद्री सीमा को एक द्विपक्षीय समझौते के माध्यम से सीमांकित किया गया था, जिस पर 28 दिसंबर, 1976 को हस्ताक्षर किए गए थे, और 8 जून, 1978 को लागू हुआ था। हमारी प्राथमिकता ‘सतर्कता गई, दुर्घटना हुई’ वाली स्थिति से बचने की होनी चाहिए। यों, भारत ने अपनी सैन्य क्षमता को उन्नत करने के लिए लक्षद्वीप द्वीप समूह में एक नया नौसैनिक अड्डा ‘आईएनएस जटायु’ स्थापित किया है। यह बेस मालदीव का निकटतम नौसैनिक अड्डा होगा। लेकिन, इसे काफ़ी मत मानिये।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।