जयंतीलाल भंडारी
उनतीस नवंबर को शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन किसानों से किए गए वादे के मुताबिक सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में तीन कृषि कानूनों को रद्द करने हेतु कृषि कानूनों का निरस्तीकरण विधेयक, 2021 पारित कर दिया। इस विधेयक को पेश करने के पहले कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया था। अब उसी के अनुरूप शीतकालीन सत्र के पहले दिन तीनों कृषि कानून वापस लिए जा रहे हैं। जब सरकार के साथ विपक्ष भी कानूनों की वापसी के लिए तैयार है, तो फिर इस पर चर्चा का कोई औचित्य नहीं है।
इस समय कृषि कानूनों की वापसी के बाद ऐसे रणनीतिक प्रयासों की जरूरत है, जिससे किसानों की आय बढ़ सके। खासतौर से छोटे किसान अधिक लाभान्वित हो सकें। ऐसे में किसानों की आय बढ़ाने के विभिन्न महत्वपूर्ण रणनीतिक आधारों पर ध्यान दिया जाना होगा। यह बात महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कृषि को प्रभावी बनाने, विकास की नयी रणनीति और जीरो बजट खेती की तरफ प्रभावी कदम बढ़ाने के लिए एक कमेटी के गठन का फैसला भी किया है। उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर क्रॉप पैटर्न के वैज्ञानिक तरीके, एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर भविष्य को ध्यान में रखते हुए नयी कमेटी द्वारा प्रभावी निर्णय लिए जाने की बात कही। नि:संदेह कृषि संबंधी मसलों के समाधान के लिए समिति बनाने के सरकार के फैसले से किसानों की मुश्किलों को दूर करने में मदद मिलेगी। इससे सरकार को किसानों की आय के स्तर को बढ़ाने के लिए पर्याप्त कृषि नीति बनाने में मदद मिलेगी।
अब स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि एमएसपी पर गारंटी कानून बना दिया जाए, तब भी इसे पूरा करना संभव नहीं है। हरित क्रांति के दौरान किसानों को गेहूं उगाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एमएसपी की व्यवस्था की गई थी। बाद में इसके तहत चावल व अन्य फसलों को लाया गया। कानून बनने के बाद भी सरकार पूरा अनाज खरीद पाने में सक्षम नहीं होगी। सब्सिडी का ढांचा ढह जाएगा और निजी व्यापारी भी उसे खरीदने के लिए आगे नहीं आएंगे। यदि कोई ऐसा नियम बन भी जाए तो निजी व्यापारी ऐसा करके घाटा उठाने के बजाय अनाज के आयात को प्राथमिकता दे सकते हैं। जहां कृषि क्षेत्र को उभरते बाजार और मांग की परिस्थितियों के साथ भी तालमेल बिठाने की आवश्यकता है, वहीं सरकार को सब्सिडी के लिए विश्व व्यापार संगठन की सीमाओं को भी ध्यान में रखने की जरूरत है।
ऐसे में इस समय एमएसपी पर कानून बनाने से अलग हटकर इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि बिना समर्थन मूल्य के भी किसानों की आमदनी में वृद्धि की जा सकती है। इसके लिए ऊंचे दाम वाली विविध फसलों के उत्पादन को विशेष प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। ये प्रोत्साहन विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। किसानों की आय बढ़ाने का एक अच्छा तरीका किसानों के लिए लागू की गई नकदी हस्तांतरण योजना का विस्तार किया जाना भी हो सकता है।
देश के 70 से ज्यादा रेल रूटों पर किसान रेल चलने से छोटे किसानों के कृषि उत्पाद कम ट्रांसपोर्टेशन के खर्चे पर देश के दूरदराज के इलाकों तक पहुंच रहे हैं। अब और नए रेल रूटों पर किसान रेल से छोटे किसानों को लाभान्वित करने का रणनीति पर आगे बढ़ना होगा। देश के छोटे किसानों की मुट्ठियों में वित्तीय समावेशन की खुशियां तेजी से बढ़ानी होंगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक पीएम किसान योजना के अंतर्गत अगस्त 2021 तक 11.37 करोड़ किसानों के बैंक खातों में डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिये 1.58 लाख करोड़ रुपए जमा किए जा चुके हैं।
निश्चित रूप से अब तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए स्वामित्व योजना को एक नई आर्थिक शक्ति बनाया जा सकता है। विगत 6 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के हरदा में आयोजित स्वामित्व योजना के शुभारंभ कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल होते हुए देश के 3000 गांवों के 1.71 लाख ग्रामीणों को जमीनों के अधिकार पत्र सौंपे। सरकार देश के 6 लाख गांवों में ड्रोन के माध्यम से ग्रामीणों की जमीन का सर्वेक्षण कराकर स्वामित्व योजना को तेजी से बढ़ाने के लिए आगे बढ़ी है।
यह बात महत्वपूर्ण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सशक्तीकरण और गांवों में नयी खुशहाली की इस महत्वाकांक्षी योजना के सूत्र मध्य प्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल के द्वारा वर्ष 2008 में उनके राजस्व मंत्री रहते तैयार की गई मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास अधिकार योजना से आगे बढ़ते हुए दिखाई दिए हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में 2 अक्तूबर 2008 को पटेल के गृह जिले हरदा के दो गांवों में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में 1554 भूखंडों के मालिकाना हक के पट्टे ग्रामीण आवास अधिकार पुस्तिका के माध्यम से दोनों गांवों के किसानों को सौंपे गए थे। दोनों गांवों में अनेक लोगों ने अपनी स्वामित्व की जमीन पर बैंकों से सरलतापूर्वक ऋण लेकर छोटे, कुटीर और ग्रामीण उद्योग शुरू किए हैं। इन गांवों में किसानों की आय बढ़ी है। गरीबी व बेकारी कम हुई है।
ऐसे में देशभर के गांवों में स्वामित्व योजना के तेजी से लागू होने से किसानों की गैर कृषि आय बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चमकीली स्थिति बनाई जा सकेगी। अब कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसानों के लाभान्वित करने एक अच्छा तरीका यह भी हो सकता है कि राज्य सरकारों को नेतृत्व करने दिया जाए। इससे पहले भी केंद्र राज्यों को अलग-अलग स्तर की सफलता के साथ अपने कृषि विपणन कानूनों में सुधार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बार-बार प्रयास कर चुका है। सरकार किसानों को कम मूल्य मिलने की भरपाई के लिए उपयुक्त योजना के साथ सामने आ सकती है। इसके साथ-साथ सरकार सहकारिता या किसान उत्पादकों को मूल्य शृंखला में भागीदारी के लिए भी प्रेरित कर सकती है। गेहूं व चावल के अलावा फसलों का विविधीकरण बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। फसल पैटर्न बदलने के तरीके खोजे जाने होंगे।
पिछले पांच वर्षों में 1600 से ज्यादा फसल किस्में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा विकसित की गई हैं। उन्हें छोटे किसानों को उपयोग में दिए जाने हेतु कार्ययोजना बनाई जानी होगी। देश के 80 फीसदी किसानों के पास जीविकोपार्जन के लिए पर्याप्त खेत नहीं हैं। अतएव उनकी गैर कृषि आय बढ़ाने का विकल्प आगे बढ़ाना होगा। सरकार के द्वारा स्थायी राष्ट्रीय कृषि आयोग बनाया जा सकता है, जो किसानों की समस्याओं और उनके समाधान को लगातार सरकार को पहुंचाता रहे। सरकार द्वारा अनुबंध खेती के नियम में मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिए बदलाव किया जा सकता है। इसके साथ-साथ किसानों के लिए ऋण बीमा तक पहुंच में सुधार और फसल कटाई के बाद बर्बादी को कम करने के लिए उत्पादकता में सुधार के वास्ते बुनियादी ढांचे की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। किसान उत्पादन संघों को अधिकतम प्रोत्साहन देकर बेहतर भंडारण और विपणन सुविधाएं विकसित की जानी होंगी। इससे सौदे की शक्ति बढ़ेगी और बिचौलियों का दबाव भी कम होगा। कृषि प्रसंस्करण को बढ़ावा जरूरी है।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।