आर. कुमार
कोविड-19 मामलों में फिर से उछाल आना शुरू हो गया है। घबराए लोग नीम-हकीम, ओझा और साइबर ठगों का शिकार बनने लगे हैं। आर्थिक और स्वास्थ्य खतरों ने लोगों को ज्यादा डरा दिया है और इससे ठगी करने वालों के लिए मौका बन गया है।
अनेक व्यक्ति यह सोचकर निजी लैबोरेट्रियों से टेस्ट करवा रहे हैं ताकि पॉजिटिव निकलने पर सरकारी एजेंसियों की नजर से बच सकें और खुद को क्वारंटीन करने को सरकारी अस्पतालों में भर्ती न होना पड़े, लेकिन इस तरह वे जाली टेस्टिंग एवं उपचार में फंस जाते हैं। रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली फर्जी दवाएं, जिनका वास्तव में कोई मूल्य नहीं है, वैकल्पिक इलाज के रूप में एक बड़ा धंधा बन गया है। यहां तक कि नामी गिरामी अस्पताल की चेन या पड़ोस की लैब भी ऐसे-ऐसे इलाज और टेस्ट ईजाद कर रहे हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक मूल्य नहीं है और भोले लोगों को ठगना ही मनोरथ है।
यह खबर सुनना आम है कि किसी 5 सितारा अस्पताल ने कोविड मृतक का शरीर तब तक नहीं दिया जब तक कि परिजनों ने लाखों का बकाया बिल न चुका दिया हो। दवा बेचने वाली कंपनियां भी लूट का हिस्सा बन गई हैं क्योंकि उन्हें अपनी दवाएं थोक में बेचने के लिए ऊपर से लेकर नीचे तक हिस्सेदारी देनी है।
आंकड़े बता रहे हैं कि उन लोगों में दवा-संबंधित मौतें ज्यादा हो रही हैं जो कोविड से बहुत ज्यादा घबराकर सेवन कर रहे हैं। दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक पर आरोप लगा कि अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने को वह मरीजों की संख्या गलत बता रहे हैं।
वर्ष 1918 में स्पैनिश फ्लू नामक महामारी ने 50 करोड़ लोगों को संक्रमित किया था, 5 करोड़ लोग मारे गए थे। केवल भारत में ही इससे 1.2 से 1.3 करोड़ मौतें हुई थीं। विश्वभर में कोविड-19 से 13 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। भारत में यह संख्या अब तक 1.34 लाख है। लेकिन बीमारी से ज्यादा इसको लेकर बना डर कहीं ज्यादा तेजी से फैला है और अस्पतालों ने दोहन करते हुए अनाप-शनाप बिल बनाए हैं। महामारी के दौरान हरेक मौत को कोरोना से हुई बताया जा रहा है, चाहे कारण हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर, अत्यंत संक्रमण या वृद्धावस्था क्यों न हो, यह भी एक घपला है। क्या किसी भी मौत को कोविड-19 बताने से लाभ मिलता है? एक व्यक्ति जिसे टाइप-2 डायबिटीज़ थी जो इंसुलिन नहीं ले पाया, अब यदि उसकी मृत्यु डायबिटीज़ किटोसाडोसिस से हो जाए, भले ही वह कोविड-19 के लिए पॉजिटिव क्यों न पाया गया हो। अब उसकी मौत कोरोना से मानी जाएगी, न कि डायबिटीज की वजह से। यहां कोविड संयोग था, न कि मृत्यु का असल कारण।
नकली टेस्टिंग भी आम बात है। इसके शिकार वे लोग ज्यादा बनते हैं जो अपने लक्षणों को गुप्त रखना चाहते हैं ताकि सरकारी क्वारंटीन गृहों में न रहना पड़े। जब कोई व्यक्ति देखने में अमीर लगता है या उसके पास स्वास्थ्य बीमा कार्ड होता है, अगर वह टेस्टिंग के लिए आए तो आमतौर पर उसे पॉजिटिव बता दिया जाता है। इसके बाद उसके परिवार एवं मित्र लाइन लगाकर अपना टेस्ट करवाने लगते हैं कि कहीं उन्हें भी संक्रमण न हो गया हो। इनमें ज्यादातर को कोविड पॉज़िटिव घोषित कर दिया जाता है और इलाज के लिए 5 सितारा कोविड केंद्रों को रैफर कर दिया जाता है। उगाही की कड़ी इस तरह काम करती है। गलत छवि वाले अस्पताल अपने यहां पर्याप्त इलाज सुविधा न होने के बावजूद बिस्तर देने के लाखों रुपये वसूल रहे हैं।
जांच केंद्र और मौके का फायदा लेने वाले बिना कोई टेस्ट किए ही फर्जी कोविड नेगेटिव सर्टिफिकेट उन लोगों को दे रहे हैं, जिन्हें सफर करना हो या कोई खास सुविधा लेनी हो। इस हरकत से साथ यात्रा करने वाले मुसाफिरों के जरिए महामारी का संक्रमण फैलने का मौका बन जाता है। हर किस्म के घपलेबाजों ने फर्जी इलाजों से उपभोक्ताओं को सराबोर कर रखा है। इसमें कथित जड़ी-बूटियों से बनी गोलियां, चाय पत्ती, फूलों के तेल, कैनाबिन, कोलाइडल सिल्वर और नसों में दिए जाने वाले विटामिन-सी उपचार इत्यादि टोटके क्लीनिक और बेवसाइटों पर कोविड-रोधी होने का ढिंढोरा पीटते नजर आ रहे हैं।
गंभीर मामलों में अस्पताल इलाज का प्रोटोकॉल इस्तेमाल में लाते हैं – जिसमें पहले चरण में एंटी-वायरल दिए जाते हैं, दूसरे में ऑक्सीजन और फैलाव-रोधी दवाएं तो तीसरे में खून के थक्के बनने से रोकने वाली गोलियां दी जाती हैं।
ज्यादा समय नहीं हुआ जब क्लोरोक्वीन, रेमडेसिविर और ह्यूमन प्लाज्मा की प्रभावशीलता का बहुत शोर मचा था। हालांकि कुछ मरीजों में आंशिक फायदा देखने को मिला भी था लेकिन मीडिया ने अतिशयोक्तिपूर्ण फायदेमंद बताना शुरू कर दिया। लिहाजा विक्रेताओं ने प्रति खुराक लगभग 20 से 25 हजार के बीच ब्लैक में बहुत ऊंचे दामों में बेची, फिर चाहे वह असली हो या नकली।
कुछ ठग कोविड को तंत्र-मंत्र के बल पर ठीक करने का दावा कर चांदी कूट रहे हैं। कोरोना पर आधारित ऑनलाइन फीसिंग लालच, मालवेयर संक्रमण, नेटवर्क में सेंध और साइबर फ्रॉड डार्क नैट पर अबाध चल रहे हैं। इनबॉक्स में चंदा मांगने या सस्ता कोविड बीमा करवाने के संदेश रोजाना आते हैं या फिर कंप्यूटर-मोबाइल में ऐसा मालवेयर घुसा दिया जाता है, जिसके जरिए अपराधी आपके पासवर्ड और आर्थिक लेन-देन की जानकारी पा लेते हैं।
कुछ लोगों ने ‘शीघ्र जारी की जाने वाली कोविड वैक्सीन’ की अग्रिम बुकिंग करवाने के नाम पर ठगी शुरू कर भी दी है! अब वैक्सीन सुरक्षित होगी या नहीं, प्रभावशाली रहेगी या मानवता पर एक और घपला सिद्ध होगी, यह समय ही बताएगा।