भरत झुनझुनवाला
आगामी बजट की मुख्य चुनौती रोजगार बनाने एवं जमीनी स्तर पर बाजार में मांग बनाने की है जो एक दुष्कर कार्य है। फिर भी इस कार्य को किया जा सकता है, यदि सरकार अपनी आय और खर्च दिशा में बदलाव करे। वर्तमान वित्तीय वर्ष कोविड के कारण असामान्य रहा है। इसलिए वर्ष 2019-20 के आधार पर राजस्व के क्षेत्र में पहला सुझाव है कि बड़ी कम्पनियों के द्वारा अदा किये जाने वाले कारपोरेट टैक्स में वृद्धि की जाये। इस मद से 2019-20 में 3.2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था।
कॉरपोरेट टैक्स की वृद्धि से बड़ी कंपनियों की प्रवृत्ति बनेगी कि वे अपने मुख्यालयों को भारत से हटा कर उन देशों में ले जाएं जहां कॉरपोरेट टैक्स की दर कम है। इससे निजात पाने का उपाय यह है कि दूसरे देशों के साथ किये गये डबल टैक्स एग्रीमेंट में संशोधन किया जाए। ऐसे में जो बड़ी कम्पनियां भारत से अपने मुख्यालयों को स्थानांतरित करेंगी, उन्हें भारत में आयकर देते रहना पड़ेगा। दूसरा सुझाव है कि व्यक्तिगत आयकर की दर में वृद्धि की जाये।
निश्चित रूप से इससे समृद्ध वर्ग द्वारा बाजार में उत्पन्न की जाने वाली मांग में कुछ गिरावट आएगी परन्तु इससे कई गुना ज्यादा भरपाई हेलीकाफ्टर मनी से हो जायेगी। तीसरा सुझाव है कि जीएसटी की दर में कटौती की जाये। वर्ष 2019-20 में जीएसटी से केन्द्र सरकार को 6.1 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। इससे बाजार में मांग बढ़ेगी क्योंकि माल सस्ता हो जाएगा। भ्रष्टाचार भी कम होगा।
चौथा सुझाव है कि आयात कर से वर्ष 2019-20 में केन्द्र सरकार को 0.6 करोड़ का राजस्व मिला था। इसे तीन गुना बढ़ाकर इससे 2.0 लाख करोड़ रुपये की वसूली की जाए। इस कदम में डब्ल्यूटीओ आड़े नहीं आता है, चूंकि वर्तमान में हम डब्ल्यूटीओ में स्वीकृत दरों से तिहाई से कम आयात कर वसूल कर रहे हैं। ऐसा करने से आयातित माल महंगा हो जाएगा, घरेलू उत्पादन को संरक्षण मिलेगा, घरेलू उत्पादन बढेगा, रोजगार बनेगा और अर्थव्यवस्था का चक्का चल निकलेगा। पांचवां सुझाव है कि केन्द्र सरकार द्वारा वसूल की गयी सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाया जाये। इस मद से 2019-20 में 2.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व केन्द्र सरकार को मिला था। इसे बढ़ाकर आगामी वर्ष में 4.0 लाख करोड़ रुपये की वसूली की जाए। इससे पेट्रोल और डीजल की खपत में कमी आएगी, इन पदार्थों का आयात कम होगा और निर्यातों पर भी दबाव कम होगा।
ऐसे में जो महंगाई बढ़ेगी, उसकी भरपाई पुनः हेलीकाफ्टर मनी से हो जायेगी, जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। अन्य मदों से केन्द्र सरकार को 2019-20 में 4.3 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था, जिसे आगामी वर्ष में उसी स्तर पर बरकरार माना जाए। वित्तीय घाटा 2019-20 में 7.7 लाख करोड़ रुपये रहा था, जिसे भी पूर्ववत रखा जाए। इस प्रकार 2019-20 में सरकार का कुल राजस्व 27 लाख करोड़ रुपये था जो ऊपर दिए गये सुझावों को लागू करने के बाद 30 लाख करोड़ रुपये हो जायेगा।
अब खर्च पर विचार करते हैं। रक्षा पर 2019-20 में 4.4 लाख करोड़ रुपये खर्च हुआ था। इसे बढ़ाकर 7.0 लाख करोड़ रुपये कर देना चाहिए क्योंकि देश पर सामरिक संकट छाया हुआ है। दूसरे, रिसर्च और संचार के क्षेत्र में 2019-20 में 0.6 लाख करोड़ रुपये का खर्च हुआ था। इसमें 5 गुना वृद्धि करके 3.0 लाख करोड़ रुपये कर देना चाहिए क्योंकि ये खर्च आने वाले समय में हमारी आर्थिक समृद्धि का आधारशिला होंगे। तीसरे, गृह मंत्रालय को 2019-20 में 1.4 लाख करोड़ रुपये का खर्च दिया गया था, जिसे पूर्ववत बनाये रखा जाए। चौथे, स्वास्थ्य मंत्रालय को 2019-20 में 0.6 लाख करोड़ रुपये आवंटित किया गया था, उसे पूर्ववत रखा जाये। इसमें परिवर्तन यह करना चाहिए कि व्यक्तिगत लोगों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं पर खर्च घटाकर कोविड जैसे संक्रामक रोगों की रिसर्च पर खर्च बढ़ा देना चाहिए।
पांचवां, अन्य तमाम मंत्रालयों पर 2019-20 में 20.0 लाख करोड़ रुपये का खर्च हुआ था। इन सभी के आवंटन में 50 प्रतिशत कटौती करके इसे 10.0 लाख करोड़ रुपये कर देना चाहिए। जब अर्थव्यवस्था पुनः गति पकड़ ले तब इन्हें पुनः बहाल कर देना चाहिए।
इस प्रकार 2019-20 के 27.0 लाख करोड़ रुपये के खर्च के सामने ऊपर बताया खर्च 22.0 लाख करोड़ रुपये बैठता है। शेष 8.0 लाख करोड़ रुपये की रकम को देश के प्रत्येक व्यक्ति को 500 रुपये प्रति माह की दर से सीधे उनके खातों में डाल देना चाहिए। ऐसा करने से 5 सदस्यों के प्रत्येक परिवार को 2500 रुपये प्रति माह मिल जायेंगे, जिससे उन्हें वर्तमान में राहत भी मिलेगी और यह रकम देश की अर्थव्यवस्था में भारी मांग भी उत्पन्न करेगी। सत्तारूढ़ पार्टी को राजनीतिक लाभ भी मिलेगा। यदि आयात कर में वृद्धि की गयी तो घरेलू उत्पादन तत्काल गतिशील हो जाएगा और रोजगार बनेंगे।
500 रुपये प्रति व्यक्ति के बैंक खाते में सीधे डाले जाने को हेलीकाफ्टर मनी कहा जाता है। ऐसा करने से देश के नागरिकों के हाथ में तरलता आ जाएगी और अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से चल निकलेगी।