सहीराम
कोविड की जिस तीसरी लहर का इंतजार था, वह अभी तक तो नहीं आयी। अच्छा ही रहा। आगे भी न आए तो और अच्छा रहेगा। लेकिन जिसका किसी को इंतजार नहीं था, किसान आंदोलन की वह तीसरी लहर आ गयी। चलो यह भी अच्छा ही रहा। आंदोलनकारी किसान कह रहे हैं कि पता नहीं अभी कितनी लहरें और आएंगी। सरकार विरोधी भी चाहते हैं कि किसान आंदोलन की यह लहरें आती रहें। यह ज्वार थमे नहीं।
कोविड की तीसरी लहर का इंतजार तो ऐसे हो रहा था, जैसे आदमखोर जानवर का होता है कि वह अपना शिकार करने आएगा तो जरूर। सतर्क रहो। विशेषज्ञ भी कह रहे थे कि कोरोना की तीसरी लहर आएगी तो जरूर। इसलिए सतर्क रहो। महामारियों का इतिहास है कि उनकी दूसरी, तीसरी, चौथी लहरें आती ही हैं। बस पहली लहर के बाद हम यह बात भूल गए थे, इसलिए दूसरी लहर काफी मारक रही। लेकिन सबसे अच्छी बात सरकार ने यह की कि उसने घोषित कर दिया कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। अगर वह यह भी घोषित कर देती कि गंगा में शव नहीं तैर रहे थे और गंगा की रेती में शव नहीं दफनाए गए थे तो और अच्छा रहता।
लेकिन खैर, कोरोना की तीसरी लहर का तो चाहे कितना ही इंतजार रहा हो, इंतजार सिर्फ माशूक का ही नहीं होता यार, संकट का भी होता है, पर किसान आंदोलन की तीसरी लहर का किसी को इंतजार नहीं था। इंतजार तो दूसरी लहर का भी नहीं था और पहली लहर के बाद जैसे कोरोना को खत्म हुआ मान लिया गया था, वैसे ही किसान आंदोलन को भी खत्म हुआ मान लिया गया था और इसीलिए किसान आंदोलन की गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के बाद सरकार गाजीपुर बाॅर्डर को खाली कराने पर आमादा हो गयी थी। लेकिन फिर टिकैत साहब के आंसुओं से आंदोलन का ऐसा ज्वार उठा, जिसकी सरकार ने कल्पना भी नहीं की थी, वैसे ही जैसे कोरोना की दूसरी लहर की उसने कल्पना नहीं की थी और बंगाल में विराट रैलियों का आयोजन करने लगी थी।
लेकिन अब कोरोना की तीसरी लहर का तो बस इंतजार ही है, पर मुजफ्फरनगर रैली के साथ किसान आंदोलन की तीसरी लहर जरूर आ गयी। यह लहर करनाल में जबरदस्त ढंग से दिखाई दी। यह लखनऊ में दिखाई दे रही है और जयपुर में भी दिखाई दे रही है। उधर सरकार ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम से एक विश्वविद्यालय शुरू करके इस पर काबू पाने का जतन करना शुरू कर दिया है।
बहरहाल, कोरोना की तीसरी लहर न ही आए तो अच्छा है और किसान आंदोलन की तीसरी लहर आ गयी तो भी कोई बुरी बात नहीं।