सीताराम गुप्ता
मनुष्य की लंबाई या उसका कद उसके व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, इसमें संदेह नहीं। लंबे कद वाले व्यक्ति का न केवल बाह्य व्यक्तित्व ही आकर्षक होता है अपितु वे शारीरिक रूप से भी अपेक्षाकृत सुदृढ़ व आत्मविश्वास से भरपूर पाए जाते हैं।
लेकिन हमारा बाह्य व्यक्तित्व हमारे समग्र व्यक्तित्व का बहुत छोटा हिस्सा होता है, जो मुश्किल से उसके दसवें हिस्से के बराबर होता है। इस प्रकार से हमारा शारीरिक कद भी उसी अनुपात में ही महत्व रखता है। हमारा वास्तविक कद हमारे आंतरिक व्यक्तित्व पर निर्भर करता है, जो हमारे समग्र व्यक्तित्व का नब्बे प्रतिशत से भी अधिक होता है। प्रश्न उठता है कि हमारे आंतरिक व्यक्तित्व के वे कौन से तत्व हैं, जो हमारा वास्तविक कद निर्धारित करते हैं।
यदि हममें अच्छी आदतें हैं तो स्वाभाविक रूप से लोग हमें पसंद करेंगे और लोग हमें पसंद करेंगे तो हमारा कद ऊंचा होगा। इतिहास में अनेक ऐसे महान व्यक्ति हुए हैं जिनका न तो बाह्य व्यक्तित्व ही बहुत अधिक आकर्षक था और न कद ही लंबा था लेकिन हम उनको समाज में उनके गुणों व योगदान के कारण जानते हैं व उनके प्रति सम्मान व श्रद्धा रखते हैं। महात्मा गांधी अथवा लाल बहादुर शास्त्री ऐसे ही महान व्यक्ति हुए हैं। उनका वास्तविक कद इतना अधिक था कि लोगों को उनके शारीरिक कद के बारे में विचार करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
बहुत छोटी-छोटी बातें होती हैं जिनसे हमारा समग्र व्यक्तित्व विकसित होकर हमारा वास्तविक कद बहुत बड़ा हो जाता है। इसमें हमारा दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। हम अपने लिए नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए क्या करते हैं और लोगों के प्रति हमारा व्यवहार अथवा हमारा आचरण कैसा है, इससे हमारा वास्तविक कद निर्धारित होता है। हमारे व्यवहार में शिष्टाचार का बहुत अधिक महत्व होता है। यदि हम लोगों का सम्मान करना और रखना जानते हैं तो सचमुच हमारा कद बहुत ऊंचा हो जाता है। जो लोग हमेशा छिद्रान्वेषण अथवा दोषारोपण द्वारा दूसरों को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं, उन्हें कौन पसंद करेगा चाहे उनका बाह्य व्यक्तित्व अथवा जिस्मानी कद कितना ही आकर्षक व उन्नत क्यों न हो?
लोग पहले हमारे बाह्य व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हमारी तरफ आकर्षित होते हैं, लेकिन यदि हमारा आचरण दोषपूर्ण है तो लोग हमसे दूर होते चले जाएंगे। वास्तविक कद उस व्यक्ति का ही ऊंचा होता है जो दूसरों को महत्व देना और उनका सम्मान करना जानता है। सबसे ऊंचा कद तो उस व्यक्ति का होता है जो कभी किसी के साथ अन्याय अथवा पक्षपात नहीं करता। और जब भी कोई व्यक्ति किसी के सम्मान में खड़ा हो जाता है तो उसका अपना कद सचमुच बड़ा हो जाता है। व्यक्ति के स्वभाव की सरलता व आचरण की शुद्धता निश्चित रूप से उसके कद में वृद्धि करने में सहायक होती है। हम समाज व लोगों के लिए कितने उपयोगी हैं, इसका भी हमारे कद से गहरा संबंध है।
कबीर ने यह गलत नहीं कहा कि खजूर के पेड़ की तरह बड़ा अर्थातzwj;् बहुत लंबा होना निरर्थक है क्योंकि उससे न तो राहगीर को छाया ही मिल पाती है और न उसके फल ही आसानी से प्राप्त हो सकते हैं। अटल जी ने भी अपनी एक कविता में कहा है कि मुझे इतनी ऊंचाई नहीं चाहिए जिससे मैं लोगों को गले न लगा सकूं। जो हर हाल में लोगों को गले लगाने की इच्छा को सर्वोपरि मानता हो, उसका कद ही वास्तव में सर्वोच्च होता है। और जब कोई व्यक्ति खड़ा होकर दूसरों के सामने झुकता है, उनका सम्मान करता है, उन्हें महत्वपूर्ण बनाने का अवसर प्रदान करता है तो उसका कद और भी अधिक बढ़ जाता है।
कद उस इंसान का बड़ा होता है जो अपने से अधिक दूसरों की परवाह करता है। कद उस शख्स का बड़ा होता है जो हर हाल में घर आए मेहमान का यथोचित स्वागत करने को उत्सुक व तत्पर रहता है। जो महत्वहीन व क्षुद्र बातों को नजरअंदाज कर सके, जिसके मन में सहिष्णुता व विरोधी के लिए भी थोड़ा स्थान हो और जो स्वयं विषम परिस्थितियों में भी किसी की मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा सके, वही सचमुच ऊंचे कद का व्यक्ति है। दूसरों को कष्ट में देखकर जो द्रवित हो जाए, उसका कद सचमुच बहुत ऊंचा होता है। मधुर व सार्थक संबंधों के विकास के लिए भी इससे अच्छा अन्य कोई उपाय अथवा उपचार नहीं। अपने व्यवहार में उत्कृष्टता लाकर हम अपने कद को सचमुच बहुत ऊंचा कर सकते हैं, इसमें संदेह नहीं।