गिरीन्द्र नाथ झा
गाम-घर करते हुए हम अक्सर यह सोचते हैं कि बदलाव की हवा हर बार गाम की गली, पगडंडी, खेत-खलिहान में सबसे अलग अंदाज़ में महसूस की जा सकती है। कई लोग हैं जो इस बदलाव के वाहक हैं या फिर उस हवा के गवाह! हम जमीन से जुड़े लोग जब भी बदलाव की बात करते हैं, सवाल जरूर पूछते है। सवाल पूछना मना नहीं है, यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। हम सूबा बिहार के पूर्णिया जिला से आते हैं, जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि यहां के पानी में ही दोष है, बीमारियों का घर। फिर 1934 के भूकंप के बाद पानी में भी बदलाव आता है और धीरे-धीरे सब में बदलाव आने लगता है। लोगबाग बाहर से इस जिले में बसने लगते हैं। लेकिन इसके बावजूद यहां के लिए मैथिली में एक कहावत प्रचलित ही रह गई है, ‘जहर नै खाऊ, माहुर नै खाऊ, मरबाक होय त पुरैनिया आऊ।’ लेकिन वक्त के संग यह इलाका भी बदला। लोग बदले, कुछ अधिकारी आए, जिन्होंने इस इलाके के रंग में रंगे लोगों के जीवन को सतरंगी बनाने की भरसक कोशिश की।
देश के पुराने जिलों में एक पूर्णिया ने डूकरेल, बुकानन, ओ मैली जैसे बदलाव के वाहकों को देखा है। आईएएस अधिकारी आरएस शर्मा जैसे लोगों को पूर्णिया ने महसूस किया है, जिन्होंने पूर्णिया को रचा। जिला के कार्यालय से निकलकर जब जिलाधिकारी गाम की गली में पहुंचते हैं तो सिस्टम पर भरोसा बढ़ ही जाता है। जब जिला के आला अधिकारी उस अंतिम घर के लोगों से मिलते हैं तो लगता है बदलाव की हवा बह रही है। हम आलोचना कर सकते हैं, सवाल उठा सकते हैं लेकिन इन सबके संग यदि कुछ अच्छा हो रहा है, तो उसकी तारीफ़ भी होनी चाहिए। गांव में जब जिलाधिकारी अचानक पहुंचे और किसी बस्ती में उस एक व्यक्ति से बात करें और पूछें कि ‘आप तक जो सरकारी योजना पहुंची है, उसकी हालत क्या है’ तो यकीन मानिए उस व्यक्ति का भरोसा जरूर बढ़ जाता है। जिला पूर्णिया के गाम घर तक अक्सर पहुंचने वाले जिलाधिकारी राहुल कुमार की तारीफ़ तो करनी ही चाहिए। वह अक्सर निकल जाते हैं गांव की ओर। खासकर ऐसे वक्त में जब दूरी बढ़ने लगी है, ऐसे समय में जिला मुख्यालय से सुदूर इलाकों में पहुंचकर लोगों से मिलना, उनके सवालों को सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण है। राहुल कुमार की इस तरह की तस्वीर जब भी सामने आती है तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘लीक पर वे चलें’ की यह पंक्ति गुनगुनाने लगता हूं-‘साक्षी हों राह रोके खड़े, पीले बांस के झुरमुट, कि उनमें गा रही है जो हवा, उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।’
साभार : अनुभव डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम