सहीराम
देश में अब पदयात्राओं का सीजन आ रहा है जी। अभी थोड़े दिन पहले शोभायात्राएं चल रही थी। कहीं रामनवमी की शोभायात्राएं थी, तो कहीं हनुमान जयंती की शोभायात्राएं थी। इन शोभायात्राओं से रामजी या हनुमानजी की चर्चा कम हुई और उनमें बजाए गए डीजे की चर्चा ज्यादा हुई। उनमें लहरायी गयी तलवारों और लगाए गए नारों की चर्चा भी खूब रही। बल्कि सबसे ज्यादा चर्चा इन शोभायात्राओं के चलते हुए दंगों की हुई। दंगों के बाद चले बुलडोजरों की हुई। इस अवसर पर हनुमान चालीसा के पाठ का हल्ला तो खूब हुआ, पर हनुमान चालीसा वास्तव में किसी ने पढ़ी नहीं।
इन शोभयात्राओं से पहले तिरंगा यात्राएं भी निकली। इन्होंने भी निकाली तो उन्होंने भी निकाली। अब देशभक्ति दिखाने का सबसे आसान और टिकाऊ तरीका तिरंगा पकड़ना ही रह गया है। आंदोलन करो तो तिरंगे के साथ करो, रैली करो तो तिरंगे के साथ करो, धरना दो तो तिरंगे के साथ दो वरना पता नहीं कब देशद्रोही करार दे दिए जाओ। पंद्रह अगस्त के मौके पर चौराहों पर बिकनेवाले कुछ तिरंगे खरीद कर रख लेने चाहिए। घर से बाहर निकलो तो उन्हें आधार कार्ड और वोटर कार्ड की तरह साथ रख लेना चाहिए।
लेकिन अब शोभायात्राओं और तिरंगा यात्राओं के बाद पदयात्राओं का सीजन आ रहा है। विविधता ऐसे ही आती है। विविधता में एकता का नारा बड़ा काम का होता है। पहले तो चुनाव तक जितवा देता था, लेकिन अब उसमें वह बात नहीं रही। अब तो बस एकता ही एकता है। विविधता वैसे ही पीछे छूट गयी जैसे विकास में गरीब पीछे छूट जाते हैं। खैर, इतनी विविधता को अब भी बची है कि शोभायात्राओं और तिरंगा यात्राओं के बाद अब पदयात्राओं का सीजन आ रहा है। अब राहुल गांधी पदयात्रा करेंगे। उनके विरोधी हो सकता है इसे भी उनकी विदेश यात्रा ही करार दें। लेकिन उन्होंने पदयात्रा करना तय कर लिया है। इससे वे भारत को जोड़ने का प्रयास करेंगे, पता नहीं पार्टी कब जुड़ेगी।
खैर, अगर राहुल गांधी पदयात्रा करेंगे तो पी के भी पदयात्रा करेंगे। राहुल गांधी पूरे देश की पदयात्रा करेंगे तो पी के बिहार की पदयात्रा करेंगे। बाकी देश में तो वे चुनाव की रणनीतियां बनाएंगे और चुनाव जितवाएंगे। बंगाल में दीदी को जितवाएंगे तो आंध्र में जगनमोहन रेड्डी को जितवाएंगे और तमिलनाडु में स्टालिन को। वे तो राहुलजी को भी चुनाव जितवाने के लिए तैयार थे। लेकिन उनकी पार्टी ही तैयार नहीं हुयी। उनकी पार्टी राहुलजी को अध्यक्ष बनवाने के अलावा किसी बात के लिए तैयार नहीं होती। खैर, अगर इन पदयात्राओं का कुछ अच्छा परिणाम आया तो हो सकता है कुछ और पदयात्राओं का प्लान भी बन जाए।