देविंदर शर्मा
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्पलॉएमेंट विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 महामारी की पहली लहर के बाद 23 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं और किसी को पता तक नहीं चला। पीईडब्ल्यू रिसर्च सेंटर का एक अन्य अध्ययन बताता है कि महामारी के पहले वर्ष के भीतर देश के मध्य वर्ग में लगभग 3.2 करोड़ की सिकुड़न आई है। सनद रहे, यह अनुमान महामारी के पहले वर्ष के हैं। दोनों अध्ययन बताते हैं कि महामारी ने किस कदर मध्य और गरीब वर्ग को भारी चोट पहुंचाई है।
हमें अभी भी मालूम नहीं है कि दूसरी लहर से बनने वाली चोट की तीव्रता पहली लहर के मुकाबले कितनी अधिक या कम रहेगी। हालांकि समाज के सभी तबके कमोबेश अनुपात में प्रभावित हुए हैं, परिवारों की आय में भारी गिरावट आई है, बेरोजगारी में भारी इजाफा हुआ है, जिसके चलते सरकार को 80 करोड़ जरूरतमंदों को मुफ्त 5 किग्रा खाद्य सामग्री आवंटन योजना नवम्बर माह तक बढ़ाने को मजबूर होना पड़ा है। लेकिन पिछले वित्तीय वर्ष में कॉर्पोरेट जगत की लिस्टेड कंपनियों का मुनाफा 57.6 फीसदी बढ़ गया है! ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभाव से उबरने की जद्दोजहद में है, वहीं अतिरिक्त पैसे के प्रवाह की वजह से स्टॉक मार्किट लगातार ऊंचाई पर बनी हुई है। भारत के खरबपतियों का सरमाया 35 प्रतिशत बढ़ा है, ब्लूमबर्ग के मुताबिक देश के दो चोटी के अमीर –अंबानी और अडानी– के धन में क्रमशः 8400 करोड़ और 7800 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, जबकि महामारी गरीबों को और गरीबी में ढकेल रही है।
जरा गहरे झांकें तो पाते हैं कि कॉर्पोरेट्स का बढ़ा हुआ मुनाफा सरकार को अमीरों से मिलने वाले कर की बढ़ोतरी में तबदील नहीं हो पाया है। सच तो यह है, जहां अमीरों को भारी टैक्स छूट दी गई है वहीं बाकी देशवासी ज्यादा कर चुका रहे हैं। कॉर्पोरेट्स से मिलने वाले कर में बहुत कमी आई है, जो पिछले दस वर्षों में अधिकतम ह्रास है। कॉर्पोरेट टैक्स उगाही में कमी शेष वैश्विक हालात के अनुसार है। सितम्बर, 2019 में वित्त मंत्री ने कॉर्पोरेट टैक्स की आधार-रेखा को 30 प्रतिशत से कम कर 22 फीसदी कर दिया था और नये उत्पादनकर्ताओं पर लगने वाले कॉर्पोरेट टैक्स को 25 फीसदी से घटाकर 15 प्रतिशत किया था। परिणाम स्वरूप सरकारी खजाने में प्रति वर्ष कराधान से मिलने वाले पैसे में 1.45 लाख करोड़ की कमी होने लगी।
आईए अब नज़र डालें कि कैसे कॉर्पोरेट्स टैक्स में कमी का खमियाजा आम परिवार पर असरअंदाज़ है। वित्त-वर्ष 2021-21 में प्रत्यक्ष कर की उगाही – कॉर्पोरेट्स हो या निजी – इसकी मात्रा 9.45 लाख करोड़ रही जबकि अप्रत्यक्ष कर का हिस्सा इससे ज्यादा होकर 11.37 लाख करोड़ का रहा। इसके अलावा सड़क पर चलने वाले आम आदमी को पेट्रोल-डीज़ल पर लगने वाले वैट एवं एक्साइज के रूप में 5.70 लाख करोड़ अतिरिक्त चुकाने पड़े हैं। ईंधन कर से आमदनी का लगभग 60 फीसदी दोपहिया वाहनों से आता है। इसके अलावा आमजन के लिए बिजली, जमीन-जायदाद की रजिस्ट्री और शराब पर अतिरिक्त कर लगाए गए हैं, इस तरह जनता द्वारा भरा जाने वाला अप्रत्यक्ष कर बहुत बड़ी मात्रा में है। अब निजी कर भरने वाले यह नहीं कह सकते कि केवल वे ही देश की तरक्की के लिए धन का स्रोत हैं। इस तरह जो लोग निजी कर नहीं भरते, सरकारी खजाना भरने में उनका भी योगदान काफी है। इसी क्रम में हम प्लास्टिक चप्पल पहनने वाले उन मजदूरों को ने भूलें, जो विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं पर जीएसटी भरते हैं। वास्तव में अब सबको साफ मालूम हो ‘हर कोई टैक्स भरता है।’
हैरानी की बात यह है, जब कहा जा रहा है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में कॉर्पोरेट्स के मुनाफे का हिस्सा पिछले 10 सालों में सबसे अधिक होकर 2.63 फीसदी हो गया है, तब ठीक इसी वक्त भारतीय बैंकों ने कॉर्पोरेट्स के बकाया टैक्स में 1.54 लाख करोड़ की भारी-भरकम छूट दे डाली है। रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक बैंकों के एनपीए (कर्ज न चुकाने वाले खाते) में और अधिक इजाफा होने की संभावना है। इसी बीच, पिछले चार वर्षों में, 2017-18 के बाद, कुल मिलाकर माफ किए गए बकाया कर्ज की रकम 6.96 लाख करोड़ है। जब बारी किसानों का कर्ज माफ करने की आती है, तब तो बहुत ज्यादा हो-हल्ला मचाया जाता है, लेकिन समय-समय पर बैंकों द्वारा एनपीए माफ करने पर ध्यान तक नहीं दिया जाता।
मानो इतना ही काफी न था, समाचार पत्रों में सूचना के अधिकार के हवाले से छपी खबर के मुताबिक बैंकों की लगभग 5 लाख करोड़ रकम घपलों में फंसी हुई है। इसके मुताबिक, चोटी के 50 कर्जदार इस संदिग्ध लेन-देन में 76 फीसदी हिस्से के देनदार हैं। रोचक बात यह है कि, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) संविदा का निर्माण आदतन घपलेबाजों को सजा देने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन इस ओर बहुत कुछ करना बाकी है। इसमें आए हालिया दो मामलों में, बैंकों को अपने सिर के बाल (बकाया) 93 प्रतिशत से बढ़ाकर 96 फीसदी मुंडवाने को मजबूर किया गया, इससे जनता में भारी रोष पैदा हुआ था। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) द्वारा मंजूर की गई एक प्रस्तावित योजना के मुताबिक कर्जदार वीडियोकॉन ग्रुप की 13 कंपनियों का स्वामित्व बोलीदाता वेदांता ग्रुप की ट्विन स्टार टैक्नोलॉजी को लगभग मुफ्त में सौंप दिया गया है। बैंकों द्वारा उगाही की बनती कुल 64,838.63 करोड़ रकम में वेदांता ग्रुप ने 2,962.02 करोड़ चुकाकर, जो कुल कर्ज का महज 4.15 फीसदी है, एकमुश्त फैसला अपने नाम करवा लिया। दूसरे शब्दों में, बैंकों समेत अन्य कर्जदार बकाये की बाकी रकम का 95.85 प्रतिशत माफ करने को सहमत हो गए!
ऐसे ही एक अन्य इन्सॉलवेंसी केस में, शिवा इंडस्ट्री एंड होल्डिंग्स, जिसने अनेक बैंकों का कर्ज चुकाना था, का बकाया भी 93.5 प्रतिशत माफ कर दिया और बकाये की 4,863 करोड़ में से केवल 313 करोड़ रकम अदा करने को कहा। इसमें भी कंपनी ने केवल 5 करोड़ रुपये की आरंभिक रकम देने पर सहमति जताई है। वित्त मामलों के पत्रकार और लेखिका सुचेता दलाल का कहना है ‘अब आप ऐसा करें, एक साइकिल का कर्ज लेकर न चुकाएं, फिर देखें बैंक आपसे कैसे पेश आता है।’
इस किस्म के अनेकानेक मामले हैं, जहां बोलीदाताओं ने कौड़ियों के दाम सौदा पटा लिया है, जिससे बैंकों और अन्य कर्जदाताओं को भारी चूना लगा है, जो अधिकांशतः 80 से 95 प्रतिशत के बीच होता है। इससे यह आम धारणा बन गई है कि जनता का पैसा वैध तरीके से लुटाया जा रहा है। आखिरकार, बैंकों में रखी नागरिकों की बचत है और किसी भी कर्ज माफी का मतलब है जनता के धन की लूट।
शायद इसी से आहत होकर उद्योगपति हर्ष गोयनका ने ट्वीट किया था ‘कंपनियां पहले पैसा एक तरफ कर लेती हैं, फिर सुलह-सफाई करने वालों का रुख करके बैंकों-एनसीएलटी से 80-90 फीसदी की कर्ज माफी प्राप्त कर लेती हैं, शहर में नया खेल चला हुआ है।’ आगे लिखा ‘सरकार द्वारा बहुत से संस्थानों की सफाई की गई है -प्रधानमंत्री कार्यालय के ध्यानार्थ, अगला नंबर एनसीएलटी का लगाएं।’
लेखक कृषि एवं खाद्य विशेषज्ञ हैं।