भूपेंद्र सिंह हुड्डा
बेरोजगारी संकट देश की सामाजिक शांति, आर्थिक विकास और राजनीतिक ताने-बाने के लिए बड़ा खतरा है। वर्ष 2019 में एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी का स्तर पिछले 45 वर्षों में सबसे ज्यादा है। यह 34 प्रतिशत बेरोजगारी विशेष रूप से 20 से 24 वर्ष की आयु के बीच के भारतीय युवाओं में अधिक थी। सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों, कोरोना महामारी के प्रभाव, समाधान में प्राथमिकता न होने ने स्थिति को विकट बनाया।
दरअसल, रोजगार के अवसरों की कमी होने से ये समस्या बनी हुई है। नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों की बेरोजगारी में वांछित या जरूरी कौशल की कमी भी ऐसी समस्याओं का कारण बनती है, वहीं उपलब्ध नौकरियों की गुणवत्ता नौकरी चाहने वालों के कौशल या शिक्षा स्तर के अनुरूप न होना। हरियाणा में ऊंची डिग्री वाले शिक्षित युवाओं को ग्रुप-डी कर्मचारियों (चपरासी, सेवादार आदि) पदों पर भर्ती किया गया। वहीं कृषि क्षेत्र में दबे पांव बढ़ रही बेरोजगारी और भी अधिक नुकसानदायक है।
दरअसल, समृद्ध और प्रगतिशील राज्य होने के बावजूद हरियाणा में बेरोजगारी की दर ज्यादा है। हाल ही में सीएमआई-सीईडीए द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक़ हरियाणा में बेरोजगारी दर सबसे अधिक यानी 34.1 प्रतिशत है, इसके बाद राजस्थान 27.1 प्रतिशत और झारखंड 17.3 प्रतिशत का नंबर है। हरियाणा प्रति व्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति निवेश, रोज़गार देने में नंबर होने पर भी बेरोजगारी की स्थिति चिंताजनक है।
सरकारी नौकरी पाना हालांकि युवाओं के लिये बड़ी चुनौती है। शिक्षकों के 50,000 से अधिक पदों सहित एक लाख से अधिक स्वीकृत पद खाली पड़े हुए हैं। एचएसएससी और एचपीएससी जैसी सरकारी भर्ती एजेंसियों का कामकाज संदेह के दायरे में है। प्रदेश में ऐसी कोई परीक्षा नहीं हुई जिसका पेपर लीक न हुआ हो, संगठित गिरोह लिखित परीक्षा पास करा रहे हैं। हाल ही में 27 लाख से अधिक उम्मीदवार जो पिछले 2 से 8 वर्षों से 9,361 पदों की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार कर रहे थे, उन्हें रद्द कर दिया गया। अन्य भर्तियां भी या तो रोक दी गई या फिर उन्हें रद्द कर दिया गया।
हर साल नौकरी चाहने वालों की संख्या में औसतन 2.5 लाख की वृद्धि होती है और लगभग एक लाख युवा चयन प्रक्रिया में देरी के चलते अधिक उम्र के हो जाते हैं। इसके अलावा, बेरोजगार युवाओं को हरियाणा कौशल रोजगार निगम की वेबसाइट पर खुद को पंजीकृत करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अनुबंध, तदर्थ, आउटसोर्सिंग आदि पर काम कर रहे हजारों कर्मचारियों का भविष्य भी अनिश्चितता के भवंर मेेें है। जाहिर है, रोजगार की बढ़ती मांग की तुलना में सरकारी नौकरियां सीमित संख्या में हैं।
सरकारें ईमानदारी, गंभीरता और सहानुभूतिपूर्ण नीतिगत हस्तक्षेपों के जरिये बेरोजगारी के इस दुश्चक्र को तोड़ें। उदाहरण के लिए, हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार अधिनियम, 2020 जिसे 15 जनवरी, 2022 से लागू किया गया है, के तहत 30,000 रुपये से कम मासिक वेतन वाली निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन इस क़ानून में हरियाणा अधिवास की योग्यता अवधि को कम करके 15 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष करना अनुचित है। इस कानून की वैधता और संवैधानिकता को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। चैंबर्स ऑफ इंडस्ट्री और ट्रेड यूनियनें इसके कार्यान्वयन को लेकर आशंकित हैं। यह निवेश के लिए पसंदीदा स्थान के तौर पर हरियाणा के आकर्षण को भी बर्बाद कर देगा। उद्योग सस्ते और कुशल कार्यबल की कमी एवं इंस्पेक्टर राज के भ्रष्टाचार के कारण अन्य राज्यों की ओर चले जायेंगे। मौजूदा समय में व्यापार का उदासीन माहौल, महामारी की तीसरी लहर का प्रकोप, बढ़ते एनपीए के कारण ऋण न मिलने के हालात, कमजोर जीडीपी, बढ़ती असमानताएं, कमजोर मांग और धीमा आर्थिक सुधार रोज़गार बाजार के फलने-फूलने में गंभीर बाधाएं खड़ी कर रहा है।
दूसरा, सरकार को हमारी युवा पीढ़ी की रोजगार योग्यता को बढ़ाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और उनके कौशल में वृद्धि करने की आवश्यकता है। वहीं उपयुक्त पाठ्यक्रम के साथ प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तुरंत शुरू किया जाना चाहिए। वहीं कृषि क्षेत्र सहित कृषि-उद्योग को मजबूत करने की आवश्यकता है क्योंकि इनमें बड़े पैमाने पर कुशल और अकुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने की क्षमता है। मनरेगा कार्यक्रम की भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
दूसरी ओर एमएसएमईज़ को प्रभावी बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए, जो कि बड़ी संख्या में कारीगरों, कुशल श्रमिकों, कलाकारों, पेशेवर विशेषज्ञों और पर्याप्त पेशेवर प्रशिक्षण हासिल करने वाले अन्य कामगारों को फायदेमंद रोजगार प्रदान करते हैं। वहीं बेरोजगारों की योग्यता के अनुसार उन्हें उपयुक्त बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चाहिए।