महेंद्र वर्मा
सूर्य, अग्नि और दीपक वैश्विक संस्कृति के आधार हैं। इन अभिव्यंजित अर्थों को समझने के लिए हमें अपनी संस्कृति के अतीत की ओर निहारना होगा। सभ्यता और संस्कृति निरंतर विकासमान अवधारणाएं हैं। बुद्धि के विकास की प्रारंभिक अवस्था में विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं के कारण मनुष्य के मन में जो पहली प्रतिक्रिया उपजी वह भय और आश्चर्य के रूप में अभिव्यक्त हुई। यहीं से प्राकृतिक शक्तियों को देवता माने जाने की परंपरा प्रारंभ हुई। दिन में सूर्य का प्रकाश और रात में चंद्रमा तथा असंख्य तारों का चमकना तब के मनुष्यों के लिए विस्मयकारी घटनाएं थीं। दुनियाभर के प्राचीन धर्मों, लोकधर्मों और लोककथाओं के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि प्रकाश या उससे संबंधित प्राकृतिक वस्तुएं और घटनाएं जैसे, सूर्य, चंद्रमा, तारे, अग्नि, तड़ित आदि को मनुष्य ने सबसे पहले देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया। अनेक संस्कृतियों में सूर्य और अग्नि प्रथम देवता हैं। संस्कृत में देव शब्द की व्युत्पत्ति दिव् धातु से हुई है जिसका अर्थ है- चमकना। इसी से द्यौः की व्युत्पत्ति हुई है, जिसका अर्थ आकाश है। वेदों में आकाश भी एक प्रमुख देवता है क्योंकि उसमें सभी चमकने वाले पिंड अर्थात् सूर्य, तारे, ग्रह आदि स्थित हैं। सूर्य की देव रूप में व्यापक प्रतिष्ठा रही है। रात्रि के भयकारी अंधकार के बाद तीक्ष्ण प्रकाश के साथ उदित, गतिमान और अस्त होते सूर्य ने विश्व की प्रत्येक सभ्यता को प्रभावित किया।
मनुष्य ने जब स्वयं अग्नि उत्पन्न करना और उसे नियंत्रित करना सीख लिया तब याज्ञिक अनुष्ठानों के रूप में धार्मिक क्रियाओं में बहुत बड़ी क्रांति हुई। अग्नि वैदिक युग के सर्वाधिक प्रसिद्ध देवों में से एक है। अग्नि, सूर्य और दीपक के गुणों में समानता है। तीनों ज्वालाओं के पुंज हैं इसलिए आंतरिक और बाह्य तिमिर के नाशक हैं। तीनों पावक हैं, अपनी ऊष्मा और प्रकाश से अपावन को पवित्र करने वाले हैं। दीपक पंचमहाभूतों का आदर्श समन्वय है। दीप जलाने का अर्थ अग्नि के देवत्व की स्थापना भी है।
दीपक जलाना उन सभी सकारात्मक भावों और शक्तियों को भी जाग्रत करना है जो सभी के लिए शुभकारक हैं। दीपावली पर्व में तो दीपों की पंक्तियां जलाई जाती हैं, घर, आंगन, गलियां, चौराहे- सभी ओर, जैसे सहस्रों सूर्य धरती पर उतर आए हों, अमावस्या की रात्रि की गहन कालिमा, चाहे वह बाह्य जगत की हो या अंतर्मन की, को भस्म कर भू-दिशाओं और हमारी मनोदशाओं को प्रियकर उजास से आपूरित करने।
साभार : शाश्वत-शिल्प डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम