दिनेश सी. शर्मा
कुछ वक्त ठंडा पड़ने के बाद कोरोना वायरस ने फिर से धावा बोल दिया है। कई राज्यों में संक्रमण का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है और देशभर में एक दिन में आए नये मामलों की संख्या ने सितंबर, 2020 में दर्ज की गई सर्वाधिक गिनती को पार कर लिया है। विशेषज्ञों ने वर्ष 2020 में कोविड महामारी की शुरुआत में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि इसकी दूसरी-तीसरी या अधिक लहर आ सकती है, क्योंकि महामारी में अक्सर यही होता है। साल 1918 में बरपी इंफ्लुएंज़ा महामारी के दौरान दो सालों में तीन मर्तबा लहरें आई थीं। जब भी महामारी के संक्रमण ग्राफ में नये मामलों की बढ़ती संख्या का एकदम स्पष्ट उठान बनने लगे तो यह नयी लहर को दर्शाता है। विश्व के अलग-अलग भागों में विभिन्न समय पर यह लहरें देखने को मिल सकती हैं, लेकिन इनकी अवधि और तीव्रता के बारे में कयास लगाना मुश्किल है। हर नयी लहर की तेजी अथवा नरमी पहले वाली से एकदम जुदा हो सकती है। मसलन, अफ्रीका में आई कोविड-19 की पहली लहर की तीव्रता बाकी विश्व से मद्धिम थी, जबकि दूसरी वाली कहीं ज्यादा संक्रमण दर वाली और घातक है। कनाडा में इस वक्त तीसरी लहर चल रही है जो पिछली दो से अधिक मारक है।
भारत में कोरोना की दूसरी लहर ऐसे वक्त में बनी है जब लोगों ने पहली वाली से सफलतापूर्वक निपटने का जश्न मनाना शुरू करा ही था क्योंकि वर्ष 2021 के आरंभिक दो महीनों में आंकड़ा नाटकीय रूप से काफी कम रहा था। सरकार में बैठे कुछ लोग तो यहां तक दावा करने लगे थे कि विश्व को ‘कोविड-19 प्रबंधन के भारतीय मॉडल’ से बहुत कुछ सीखना चाहिए। 7 मार्च, 2021 को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने घोषणा कर डाली ‘हम कोविड-19 महामारी का खेल खत्म करने की कगार पर हैं।’ स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धाओं एवं बुजुर्गों के कोविड रोधी टीका लगाने की मुहिम भी इस बीच शुरू हो गई और इसे विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम बताकर वाहवाही लूटी गई। परंतु यह काम खुद अपनी पीठ थपथपाने जैसा था और वक्त से पहले जीत की खुशी मनाने वाली जल्दबाजी भी। यह तमाम कारक और सावधानी संबंधी आचार संहिता में उदासीनता स्वरूप लोगों में लापरवाही बनने लगी। लोगबाग कोविड-संबंधी सावधानियों को दरकिनार कर पहाड़ों, समुद्र तट और अन्य पर्यटक स्थलों की सैर को उमड़ने लगे।
इस दौरान पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का वक्त भी आन पहुंचा और कुम्भ जैसा विशालतम धार्मिक उत्सव भी। समय पर चुनाव करवाना बेशक एक संवैधानिक आवश्यकता हो सकती है। महामारी के दौरान कई देशों में चुनाव हुए हैं और भारत में भी पहली लहर के दौरान कुछ विधानसभाई चुनाव सपन्न हुए थे। लेकिन मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में मतदान तिथियों का लंबा चलना और विशाल रैलियों एवं रोड-शो का आयोजन होने से यह चुनाव पिछले वाले से भिन्न है। महामारी को लेकर चुनाव आयोग से आए दिशा-निर्देशों की जमकर धज्जियां उड़ी हैं। असम के स्वास्थ्य मंत्री ने तो मुंह पर मास्क लगाने से यह कहकर मना कर दिया कि ऐसा करके वे जनता के बीच भय का माहौल नहीं फैलाना चाहते! इसके अलावा विशाल चुनावी रैलियों में उपस्थित भीड़ को देखकर बाकी लोगों ने मान लिया कि जब इन्हें कुछ नहीं हो रहा तो हम क्यों कोविड संबंधी सावधानियां बरतें। चुनावी भीड़ का जिक्र कर आम नागरिक महामारी प्रबंधन के तहत सामाजिक आयोजन, जैसे कि शादी-ब्याह, में लोगों की संख्या सीमित रखने वाले आदेशों पर सवाल उठाने लगे। कुछ विश्वविद्यालयों में छात्र सामान्य कक्षाएं फिर से लगाने की मांग कर रहे थे। जबकि चुनाव आयोग के लिए महामारी एक ऐसा मौका था कि प्रचार हेतु नये खोजे गए तरीके और तकनीक के अधिकाधिक इस्तेमाल करने को बढ़ावा देता। कुम्भ के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दखल देते हुए आगंतुक तमाम श्रद्धालुओं के लिए आरटी-पीसीआर नेगेटिव रिपोर्ट पेश करने की अनिवार्यता लागू कर दी है।
उपरोक्त तमाम कारकों के अलावा अनेकानेक बायोमेडिकल एवं एपिडेमियोलॉजिकल वेरिएबल्स ने कोविड-19 की नयी लहर पैदा होने में योगदान दिया है। साथ ही, वायरस के नये रूपांतरण, संक्रमण के प्रति संवेदनशील आबादी का अंश और पहली लहर में बनी रोगप्रतिरोधक क्षमता में ह्रास ने भी अपनी भूमिका निभाई है। सीरो-सर्विलांस अध्ययन, वायरस के नये रूपांतर की शिनाख्त हेतु जीनोमिक सर्विलांस और विशिष्ट आयु-लिंग वर्ग संबंधी एपिडेमियोलॉजिकल डाटा इकट्ठा कर दूसरी लहर से निपटने की रणनीति में महीन सुधार करने में मदद मिल सकती है। किंतु इस काम में दीगर खामियां और पारदर्शिता में कमी व्याप्त है। हाल ही में एक लाइव टीवी बहस में भाग लेते वक्त महाराष्ट्र के कोविड-19 रोधी विशेष कार्यदल के एक सदस्य और सीएसआईआर के महानिदेशक के बीच जीनोमिक सिक्वेंस को साझा करने में देरी करने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगे। स्थिति संभालने हेतु सीएसआईआर अधिकारी को उक्त डॉक्टर को अपना आधिकारिक ई-मेल एड्रेस देते हुए पत्राचार करने को कहना पड़ा। कोविड महामारी जैसे अति गंभीर विषय पर केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय पर इस किस्म के अभाव को देखना, वह भी सबकी आंखों के सामने और महामारी प्रबंधन के एक साल के अनुभव के बाद, एक शोचनीय दृश्य है।
सीरो एवं जीनोमिक सर्विलांस, परीक्षण दर बढ़ाने के अलावा हमें टीकाकरण को गति देनी होगी। फिलहाल दो किस्म के टीके उपलब्ध हैं और निकट भविष्य में अन्य दावेदारों को हरी झंडी मिल सकती है। टीकाकरण का दायरा धीरे-धीरे बढ़ने लगा है। इसलिए टीके की यथेष्ट मात्रा में उपलब्धतता बनाए रखना काफी महत्वपूर्ण होगा। पहले ही कुछ राज्यों में टीके की कमी बनने लगी है और कई जिलों में तो आपूर्ति बहुत ही कम है। दूसरी ओर हमारे देश ने 6 अप्रैल तक 6.45 करोड़ टीके निर्यात किए हैं। इसका बड़ा हिस्सा यानी 3.57 करोड़ टीके, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक कंपनी ने विदेशी कंपनियों के साथ किए गए व्यापारिक करार के अंतर्गत भेजे हैं। 1.81 करोड़ टीके विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स नामक कार्यक्रम के तहत दिए गए हैं तो शेष 1.05 करोड़ टीके भारत सरकार द्वारा कई देशों को दान में दिए हैं। इसलिए यदि ‘वैक्सीन मैत्री’ नामक सहायता कार्यक्रम न होता तब भी केवल एक करोड़ अतिरिक्त टीके ही देशवासियों के लिए उपलब्ध हो पाते।
रशियन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट फंड नामक एक रूसी इकाई ने भारतीय कंपनियों यानी सीरम इंस्टीट्यूट और बायोटेक को स्पूतनिक 5 वैक्सीन के लगभग 1 खरब टीके देने के लिए अनुबंध किया है। हैरानी की बात है कि भारतीय एजेंसियों ने घरेलू जरूरत के लिए वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने को भारत बायोटेक एवं सीरम इंस्टीट्यूट को अतिरिक्त क्षमता बनाने या फिर स्थानीय दवा निर्माताओं से ठेके पर वैक्सीन बनवाने को क्यों नहीं कहा? जबकि भारत सरकार ने वैक्सीन संवर्धन कार्यक्रम के तहत डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी को 900 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड दिया है। इस धन का इस्तेमाल भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के अलावा अन्य दवा निर्माताओं की अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को साथ जोड़ने में किया जा सकता था। वैक्सीन की यथेष्ठ उपलब्धि और कोविड संबंधी व्यवहार संहिता को बनाए रखना ही महामारी की लहरों के निपटने का एकमात्र कारगर रास्ता है।
लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के टिप्पणीकार हैं।