भरत झुनझुनवाला
भारतवंशीय कमला हैरिस के अमेरिका के उपराष्ट्रपति चुने जाने को लेकर भारत स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। यह स्वाभाविक भी है। लेकिन गांधी और अम्बेडकर का नाम लेकर भी हमारी ऊर्जा बढ़ती है और यह भी उतना ही स्वाभाविक है। विषय है कि इन दोनों में कौन से गौरव को हम अंगीकार करेंगे?
हमारे वैभव दो प्रकार के होते हैं। कुछ वैभव सच्चे, ठोस और टिकाऊ होते हैं और कुछ ऐसे होते हैं, जिनके पीछे हमारी कमजोरी छिपी होती है। जैसे पिछले वर्ष इंडियन साइंस कांग्रेस की वार्षिक सभा में दावा किया गया था कि पुरातन भारत में टेस्ट ट्यूब से संतान पैदा की जाती थी और रावण के पास पुष्पक विमान थे। अपने ऐसे वैभव का संज्ञान लेकर वास्तव में हमारी ऊर्जा बढ़ती है। टेस्ट ट्यूब बेबी और पुष्पक विमान का कोई पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। तुलना में हमारे ही दूसरे वैभवों के प्रमाण उपलब्ध हैं। कांस्य युग में विश्व में 3 सभ्यताएं थीं—मिस्र, सुमेर (जिसे वर्तमान में इराक कहा जाता है) और हमारी सिन्धु घाटी। इन तीनों में भारत की स्थिति श्रेष्ठ थी। सिन्धु घाटी सभ्यता के शहरों का आकार मिस्र और सुमेर की तुलना में लगभग दस गुना बड़ा था। सम्पूर्ण शहर पकी हुई ईंटों से बनाये जाते थे जबकि मिस्र और सुमेर में कच्ची ईंटें ही उपयोग में लायी जाती थीं। पकी ईंटों का उपयोग केवल नाली इत्यादि ऐसे स्थानों पर किया जाता था जहां पर पानी का प्रकोप हो। भारत की श्रेष्ठ स्थिति का प्रमाण मिस्र और सुमेर की सभ्यताएं देती हैं। मिस्र के पैपिरस ऑफ अनी में कहा गया कि सूर्य का उदय मनु की भूमि में होता है और मिस्र के वाशिंदे वहीं से पूर्व में आये थे। भारत मिस्र के पूर्व में स्थापित है इसलिए यहां सूर्योदय कहा गया। सुमेर के दस्तावेजों में कहा गया कि वे लोग दिलमन नाम के स्थान से आकर सुमेर में बसे थे। सुमेर की सभ्यता के विशेषज्ञ सेमुअल नोआ क्रेमर के अनुसार सुमेर के लोग सिन्धु घाटी को ‘दिलमन’ नाम से जानते थे। इस प्रकार सुमेर की सभ्यता का उद्गम भी सिन्धु घाटी सभ्यता बन जाता है।
धर्म की बात लें तो बाइबल में कहा गया कि प्रथम मनुष्य अादम उस स्थान पर रहते थे जहां पर एक पहाड़ के चारों तरफ चार नदियां निकलती हैं। यहूदी परम्परा में कहा गया कि यह पहाड़ मोर्या के नजदीक स्थापित था। अब हम पाते हैं कि राजस्थान के पुष्कर में एक पहाड़ी है, जिसके ऊपर ब्रह्माजी का मंदिर स्थापित है और वहां से चार नदियां चार तरफ निकलती हैं—उत्तर में रूप नदी, पूर्व में दई, दक्षिण में सागरमती और पश्चिम में सरस्वती। हमारी सभ्यता में माना जाता है कि यहीं पर ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था। ब्रह्मा जी ने जिस स्थान पर सृष्टि रची थी उसका नाम मेरु था जो कि मोर्या से मेल खाता है।
इस प्रकार हमारे पुराने गौरव के दो प्रकार बनते हैं। एक गौरव बनता है, जिसमें हम टेस्ट ट्यूब बेबी अथवा रावण के पुष्पक विमान की बात करते हैं जिनका कोई पुरातात्विक आधार नहीं है। इन्हें कहने से हमें आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता है। तब हमारे सामने प्रश्न नहीं उठता है कि हम अपने उस महान गौरव से चूक क्यों गये? हमारा दूसरा गौरव अपनी सिन्धु घाटी सभ्यता के शहर और यहूदी, ईसाई आदि धर्मों में बताये गये अादम का स्थान यहां होने का है। इन गौरवों के ठोस प्रमाण मिलते हैं। तब हमारे सामने प्रश्न उठता है कि हम अपने उस महान गौरव से चूक क्यों गये? हमें यह पड़ताल करने की प्रेरणा मिलती है कि जिन धर्मों का उद्गम भारत से हुआ वे इतना आगे बढ़ गये और हम इतना पीछे क्यों रह गये? लेकिन यदि हम केवल टेस्ट ट्यूब बेबी और रावण के पुष्पक विमान की बात करें तो इस प्रकार का आत्मचिंतन करने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। इसलिए हमें अपने टेस्ट ट्यूब बेबी और पुष्पक विमान जैसे अप्रमाणित गौरवों पर ध्यान न देकर हमारी जो वास्तविक और ठोस उपलब्धियां हैं, उन पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन हमारे विद्वानों के लिए इस ठोस गौरव को उद्धृत करना कठिन होता है क्योंकि यह हमारी वर्तमान स्थिति के लिए एक चुनौती पैदा करता है।
अब आते हैं कमला हैरिस के महामंडन पर। तमाम ऐसे भारतवंशी हैं जो देश को छोड़कर विदेशों में बस गये हैं। पुराने समय में भी हिन्दू और बौद्ध भिक्षु तमाम देशों में जाकर बसे और वहां उन्होंने भारतीय संस्कृति का प्रसार किया। लेकिन वर्तमान में भारत से विदेश जाकर जो प्रवासी बस रहे हैं, जैसे कमला हैरिस के पूर्वज गये थे, इन्होंने मूल रूप से उस अमेरिकी संस्कृति को अपना लिया है जो आज हमारे गौरव के विपरीत खड़ा दिखता है। जैसे सुरक्षा परिषद में अमेरिका ने भारत की स्थाई सदस्यता की पुरजोर वकालत नहीं की है। राष्ट्रपति ओबामा और उपराष्ट्रपति बाइडन के कार्यकाल में अमेरिका का झुकाव पूरी तरह पाकिस्तान की तरफ था और भारत को मूलतः उन्होंने नजरअंदाज किया। हम मान सकते हैं कि उनकी सहयोगी कमला हैरिस की भी ऐसी ही विचारधारा होगी। आज अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत का शोषण कर रही हैं। जैसे माइक्रोसॉफ्ट अपने विंडो सॉफ्टवेयर को एक डालर की लागत में बनाता है लेकिन भारत में 10 डालर में बेचता है। कमला हैरिस जैसे हमारे प्रवासी ऐसी अमेरिकी करतूतों के समर्थन में खड़े हो जाते हैं और हम उन्हीं का गुणगान करते हैं, जो वास्तव में हमारे हितों के विपरीत खड़े होते हैं। अमेरिका में बसे भारतवंशी भारत के लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं। उनकी आंखों में विपन्न भारत की तस्वीर छपी हुई है। इनकी तुलना में गांधी और अम्बेडकर जैसे महान व्यक्तियों के प्रति हमें अधिक गौरवान्वित होना चाहिए जिन्होंने विदेश में बसने के अवसरों को ठुकराकर स्वदेश लौटकर अपने देश को आगे बढ़ाया। बिलगेट्स आज भारत समेत समस्त विश्व में विन्डोज को महंगा बेचकर भारी लाभ कमा रहे हैं और उसका एक छोटा-सा हिस्सा पुनः भारत को दान में देते हैं। तमाम भारतीय प्रवासी माइक्रोसॉफ्ट में काम करके, माइक्रोसॉफ्ट द्वारा भारत के शोषण में सहयोग कर रहे हैं, अमेरिका में लाभ कमा रहे हैं और भारत में कुछ धर्मार्थ का काम यथा विद्यालय खोल देते हैं अथवा मंदिर में दान देकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। हमें इस प्रकार के खोखले गौरव से बचना चाहिए और उन व्यक्तियों से अपने को गौरवान्वित समझना चाहिए जो भारतवंशी होकर भारत के प्रति संकल्पित रहे हैं और अपनी प्रतिभा का आलोक स्वदेश में बिखेरकर देश को रोशन किये हैं।
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।