भारत विश्व के बहुत से देशों से हर क्षेत्र में आगे है, पर भूख के विषय में हम पीछे रह जाते हैं। इस बार भी वैश्विक भूख सूचकांक के जो आंकड़े मिले हैं, उसमें 117 देशों में भारत 94वें स्थान पर है। यह ठीक है कि पिछली बार हम 102वें स्थान पर थे। इस सूची में हम गंभीर स्थिति वाले देशों में हैं। भारत से अच्छी स्थिति तो नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश म्यांमार की है। जिस देश से आज हमारा मुकाबला है, युद्ध में भी और आयात-निर्यात में भी, वह चीन हमारे से बहुत आगे है। शीर्ष रैंक पर जो 17 देश हैं, उनमें चीन के साथ बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा, कुवैत हैं।
हमारी इस स्थिति के लिए विशेषज्ञों ने खराब कार्यान्वयन प्रक्रिया, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का उदासीन दृष्टिकोण और बड़े राज्यों के खराब प्रदर्शन को दोषी ठहराया है। अच्छा होता इन कमियों के साथ ही रिश्वत, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को भी दोषी ठहरा दिया जाता। कौन नहीं जानता कि जब गरीब के लिए राशन बांटा जाता है तो अनाज से भरे ट्रक को सत्ता पक्ष का कोई नेता, पार्षद या हलका इंचार्ज बांटते हैं। कौन नहीं जानता कि खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के इंस्पेक्टरों, अधिकारियों तथा डिपो होल्डरों के बीच ऐसा अपवित्र रिश्ता बन गया है कि जिनको राशन मिलना चाहिए वे बेचारे लाइनों में धक्के खाते हैं । यह भी सच है कि अधिकतर राशन बांटने का काम करने वाले पार्टीबाजी को भी आधार बनाते हैं।
यह बीमारी किसी एक पार्टी में नहीं, अपितु जो भी सत्ता में होता है वही इन कीटाणुओं से घिर जाता है। पूरी दुनिया में प्रतिदिन भूख से 24 हजार लोग मर जाते हैं। इनमें से एक-तिहाई भारत के हैं और उसमें से भी बच्चे बहुत ज्यादा हैं। ऐसा लगता है किसी को इनकी चिंता नहीं। कभी भी संसद में, विधानसभाओं में इन अभागों पर कोई चर्चा होते नहीं देखी गई। अभी ताजी घटना है, पंजाब के फरीदकोट में एक परिवार के मुखिया ने दोनों बच्चों और पत्नी समेत अपने को जलाकर मार दिया। कारण गरीबी था।
जो पंजाब और देश की गतिविधियों से परिचित हैं, वे जानते हैं कि इन दिनों पंजाब में बड़े आंदोलन चल रहे हैं पर पंजाब की इस घटना पर दो आंसू बहाने वाला किसी भी पार्टी का नेता नहीं है। जिस समय यह घटना हुई, लगभग उसी समय पंजाब के मुख्यमंत्री ने भोजन पर सभी विधायकों को बुलाया। यह तो बहुत साधारण बात है, पर अपने देश में करोड़ों लोग भूखे सोते हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 19 करोड़ सात लाख लोग भारत में कुपोषित हैं, जिनमें से महिलाएं और बच्चे अधिक प्रभावित हैं। अपने देश में 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं में से 50 प्रतिशत में खून की कमी है। लगभग 39 फीसदी बच्चे अपनी आयु के मुताबिक कम लंबाई के और 21 फीसदी का वजन कम है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स ने यह बताया कि भारत 2017 के मुकाबले यद्यपि इस इंडेक्स में छह अंक ऊपर आ गया है, पर अभी भी बहुत पीछे है। कैसी विडंबना है कि एक तरफ तो लोग भूखे मरते हैं, लेकिन रिपोर्ट के अनुसार पिछले 25 वर्षों में भारत के खाना बर्बाद करने के आंकड़ों में कोई फर्क नहीं पड़ा। एक सरकारी जानकारी के अनुसार खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार और मोदी सरकार के जन कल्याण के दावों के बावजूद भारत में भूख की स्थिति गंभीर है पर इसका समाधान ढूंढने और भूखे पेट भरने के लिए कोई गंभीर दिखाई नहीं देता।
सांसद, विधायक, केंद्र और प्रदेशों की सरकारें जब भी चर्चा करती हैं तो स्मार्ट सिटी बनाने की, स्मार्ट गांव बनाने की, विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन बनाने की और बढ़िया-बढ़िया हवाई जहाज हिंदुस्तान में लाने की चर्चा होती है। आश्चर्य तो यह भी है कि देश का संसद भवन जो बहुत ही सुंदर और पर्याप्त स्थान वाला है, अब उसके स्थान पर भी नया संसद भवन बनाने की तैयारी हो रही है। निश्चित ही करोड़ों नहीं, अरबों रुपये इस पर खर्च होंगे, पर प्रश्न यह है कि यह अनावश्यक खर्च तब तक क्यों किया जाए जब तक हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के पेट में रोटी और सिर पर छत नहीं।
क्या सरकारें यह अहसास करेंगी कि हमारी बहुत सी कमियों, कठिनाइयों का कारण बेहिसाब बढ़ती जनसंख्या है और जनसंख्या भी अधिकतर उसी वर्ग की है, जिसके पास न तन ढकने को है, न पेट भरने को। सच तो यह है कि आज तक कोई सरकार या शहरी विकास मंत्रालय बार-बार पूछने पर भी नहीं बता सका कि स्मार्ट की परिभाषा क्या है। स्वच्छता के लिए इन्हें पुरस्कार मिलते हैं। खुले में शौच मुक्ति के लिए बहुत से महानगरों को अपनी पीठ थपथपाने का मौका दिया जाता है, पर गंदगी उसी प्रकार फैल रही है जैसे यह नारे लगाने से पहले फैली थी। कौन इस स्मार्टनेस को स्वीकार करेगा जहां कुत्तों, चूहों, मच्छरों, मक्खियों और अब शहरों के आम घरों में छिपकलियों का भी आतंक है। सरकार लोगों का पेट तो भर नहीं सकी, पर स्मार्ट और बुलेट ट्रेन के नाम पर जनता को सब्जबाग जरूर दिखाए जा रहे हैं।