अलका ‘सोनी’
‘ऐतरेय ब्राह्मण’ का एक अंश है ‘चरैवेति सूक्त’, जिसमें पांच मंत्र हैं। चरैवेति सूक्त के मंत्र हमें जाग्रत होने, कर्मठ बनने और निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। चरैवेति का अर्थ ही है- आगे बढ़ो और बढ़ते रहो। क्योंकि मानव जीवन की सफलता का मार्ग सही दिशा में निरंतर आगे बढ़ते जाने में ही निहित है। केवल वे लोग ही जीवन में सफल होते हैं जो जाग्रत होकर आगे बढ़ते हैं। अर्थात हमारे जीवन का जो भी उद्देश्य निर्धारित किया है, उस दिशा में निर्भीक और शांत मन से बढ़ते रहें। यह निरंतरता तब तक बनी रहनी चाहिए, जब तक लक्ष्य की पूर्ति न हो जाये। अपने लक्ष्य को प्राप्त किए बिना रुकना मृत्यु समान है। ये मंत्र हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा रचित अक्षय ऊर्जा के वो स्रोत हैं, जो मानव जाति को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहते हैं। इन मंत्रों में उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूति द्वारा उपदेशित ‘जीवन -दर्शन’ के स्पष्ट संकेत छिपे हैं। जिसका प्रमुख उद्देश्य मानव को सही मार्गदर्शन प्रदान करना है। ये मंत्र स्पष्टरूप से जीवन के प्रति आशावादी और सर्वग्राह्य दृष्टिकोण को व्यक्त करते हैं।
एक मनुष्य अपने जीवनकाल में ही चारों युगों को जी लेता है। इन्हें अनुभव करने के लिए हमारा एक जन्म ही काफी है। जब एक मनुष्य निष्िक्रय, आलसी और एक प्रकार से सुप्तावस्था में होता है तो वह ‘कलियुग’ में होता है। जब वह जाग जाता है और सतर्क हो जाता है तो वह स्थिति उसके लिए ‘द्वापर युग’ की होती है। जब वही व्यक्ति अपने विवेक के साथ उठ खड़ा होता है, तो वह ‘त्रेतायुग’ में प्रवेश करता है। फिर वह जब अपना कदम आगे बढ़ाकर चलना प्रारंभ कर देता है, तो ‘कृतयुग (सतयुग)’ का प्रारंभ होता है। एक ही व्यक्ति के इन विभिन्न स्तरोें में हमें प्रत्येक युग के दर्शन हो जाते हैं। इस कृत या सतयुग में मनुष्य अपने सर्वोच्च रूप में होता है। लेकिन इतनी लंबी यात्रा ऐसे ही तय नहीं की जा सकती। उसके लिए हमें जाग्रत होकर निरंतर आगे बढ़ना होता है। अपने भाग्य के रचयिता हम स्वयं हैं; हम इसे बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। यदि आप केवल बैठे रहेंगे तो आपका भाग्य भी निष्िक्रय हो जाएगा। जब आप उठ खड़े होंगे तो आपका भाग्य भी जाग्रत होगा। आपके सो जाने से भाग्य भी सो जायेगा। केवल वही व्यक्ति जीवन का मधुर फल प्राप्त कर सकता है जो इसकी खोज में हमेशा लगा रहता है। निरंतर आगे बढ़ने वाले ही समृद्धि का मार्ग पा सकते हैं।
प्रकृति के विविध रूपों से हमें चलते रहने की प्रेरणा मिलती है। सूर्य सभी के लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत है क्योंकि वह कभी भी निष्िक्रय नहीं बैठता, आराम नहीं करता। सूर्य को आदर्श बनाइए, तब केवल आप अकेले ही जीवन में सफल नहीं होंगे अपितु समस्त लोगों के लिए ऊर्जा, प्रकाश और सक्रियता लेकर आएंगे। यह धरती भी निरंतर चलती है। इसके चलायमान होने से यहां जीवन संभव हो पाता है। कल्पना करें कि अगर किसी दिन ये सब अपनी गति भूल, स्थिर हो जाएं तो क्या होगा? शायद सृष्टि ही न बचे उस दिन। चलना और हमेशा चलते रहना ही जीवन का पर्याय है। सम्पूर्ण सृष्टि चलायमान है। उसके अंश होने के कारण यह हमारा भी कर्तव्य है कि हम बढ़ते रहें। अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते रहें…… चरैवेति…..चरैवेति……।