चेतनादित्य आलोक
सनातन धर्म में अक्षय तृतीया को अन्य सभी पर्व-त्योहारों में विशेष स्थान प्राप्त है। यह तिथि इतनी शुभ और महत्वपूर्ण होती है कि सनातन धर्म में इसको ‘अबूझ मुहूर्त’ माना गया है। तात्पर्य यह कि इस तिथि को कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करने यथा नई योजना शुरू करने, नए व्यवसाय, नौकरी, नए घर में प्रवेश, विवाह, बच्चे का नामकरण, सोने में निवेश, भूमि का प्लॉट एवं सोने-चांदी के आभूषण आदि खरीदने के लिए मुहूर्त आदि का विचार नहीं करना पड़ता है। वैदिक पंचांग के अनुसार अक्षय तृतीया का पर्व प्रत्येक वर्ष वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।
देखा जाए तो ‘अक्षय’ का अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय अथवा नाश न हो सके। यही कारण है कि इस शुभ अवसर पर गंगा-जमुनादि तीर्थों में स्नान, दान-पुण्य, पूजा-पाठ, जप-तप, यज्ञ, स्वाध्याय और तर्पण आदि शुभ कर्मों के करने से मिलने वाले फलों का कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया को ‘आखा तीज’, ‘अखतीज’ या ‘अक्खा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया को भगवान श्रीहरि विष्णु ने परशुराम अवतार लिया था। इस व्रत को सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला और सभी सुखों को प्रदान करने वाला माना गया है।
पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया को ही त्रेता एवं सतयुग दोनों ही युगों का आरंभ हुआ था, इसीलिए इसे ‘कृतयुगादि तृतीया’ अथवा ‘युगादि तृतीया’ भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती हैं। हिंदू शास्त्रों में वर्णित ‘नर-नारायण’ और ‘हयग्रीव’ ने भी इसी दिन अवतार लिया था। भगवान परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं थीं। राजा भागीरथ ने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की और शिव की कृपा से अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर लाए। मान्यता है कि इस दिन पवित्र और निर्मल गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार रसोई में निवास करने वाली माता अन्नपूर्णा का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसलिए इस दिन भंडारा करके गरीबों को भोजन कराने की भी परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति माता अन्नपूर्णा की पूजा करता है, उसके घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। यही नहीं, भगवान श्रीविष्णु के अवतार महर्षि वेदव्यास ने ‘पांचवां वेद’ कहे जाने वाले महाभारत को लिपिबद्ध करना भी इस दिन को ही प्रारंभ किया था। इसीलिए इस दिन गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि अक्षय तृतीया को ही युधिष्ठिर को ‘अक्षय पात्र’ की प्राप्ति हुई थी, जिसकी विशेषता यह थी कि उसमें खाना कभी समाप्त नहीं होता था। इसलिए इस दिन से ही किसान रबी की फसल के बाद खाली पड़े खेतों की जुताई शुरू कर देते हैं। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया को ही खुलते हैं। इनके अतिरिक्त श्रीवृन्दावन धाम स्थित श्रीबांके बिहारी जी के मन्दिर में भी केवल इसी दिन भक्तों को श्रीविग्रह के चरण-दर्शन करने का परम सौभाग्य प्राप्त होता है, अन्यथा पूरे वर्ष ठाकुर जी वस्त्रों से ढके रहते हैं।
अक्षय तृतीया को व्रत रखने और अधिकाधिक दान देने का बड़ा महात्म्य है। सुख शांति की कामना से एवं सौभाग्य तथा समृद्धि हेतु इस दिन भगवान शिव-पार्वती एवं नर-नारायण की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया को यदि अपने या स्वजनों के जाने-अनजाने अपराधों की क्षमा के लिए परमात्मा से सच्चे मन से प्रार्थना करें तो भगवान क्षमा कर देते हैं। भक्तगण इस दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगते हैं। इस वर्ष अक्षय तृतीया का पावन त्योहार 10 मई को है।
अक्षय तृतीया के दिन उपवास रखकर भगवान श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। भगवान श्रीविष्णु को तुलसी-दल अत्यधिक प्रिय है। इसलिए नैवेद्य के साथ तुलसी-पत्र अवश्य चढ़ाएं। इस दिन ‘श्रीविष्णु सस्त्रनाम’ का पाठ या श्रवण करना बेहद लाभकारी माना गया है।