किसी राज्य में एक निःसन्तान राजा था। राजा भी अब वृद्ध हो चला था। एक दिन पूरे राज्य में राजा ने मुनादी करवा दी कि जो भी अगले दिन नियत समय पर राजा से मुलाकात करेगा, वह राज्य का उत्तराधिकारी घोषित होगा। अगले दिन राजमहल के प्रांगण में छप्पन भोग की व्यवस्था थी। नृत्य-संगीत से पूरा प्रांगण सम्मोहन में था। सुरा और द्यूत के अलावा मनोरंजन और क्रीड़ा की अनेक व्यवस्थाएं थीं। लोग आते गए और इन सब के मोह में फंसते गए। सब सोचते राजा राज्य तो देने से रहा, इन्हीं सब का आनन्द उठाया जाए। परन्तु एक व्यक्ति था जो इन सबको नजरअंदाज करते हुए राजमहल तक जा पहुंचा। परन्तु उसे दो बलिष्ठ योद्धाओं ने भीतर जाने से रोक दिया। उस व्यक्ति ने उन दोनों योद्धाओं को बाहुबल से हराया और राजमहल में प्रवेश पा लिया। वह निश्चित समय पर राजा के समक्ष उपस्थित था। राजा समझ गए थे कि यह व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति कर्मठ है और सांसारिक व्यसनों से दूर है। उसके शारीरिक बल को भी वह आंक चुके थे। राजा ने उस व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। लक्ष्य के प्रति ईमानदारी ही व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाती है।
प्रस्तुति : स्वाति