राजेंद्र कुमार शर्मा
कालाष्टमी व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। काल भैरव जयन्ती को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव भैरव रूप में प्रकट हुए थे। भगवान शिव के दो स्वरूप हैं। पहला बटुक भैरव, जिन्हे शांत और सौम्य माना जाता है और दूसरा स्वरूप है काल भैरव का जो भगवान शिव का रौद्र रूप है।
कब मनाई जाती है
कालाष्टमी हर हिंदू चंद्र माह में चंद्रमा के आठवें दिन अर्थात् कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। पूर्णिमा के बाद का 8वां दिन, जिसे पूर्णिमा के बाद अष्टमी तिथि भी कहा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रति माह एक कालाष्टमी होती हैं। उनमें से, जो मार्गशीर्ष महीने में आती है वह सबसे महत्वपूर्ण है और काल भैरव जयंती के रूप में मनाई जाती है।
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई। सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए जिसका समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने कोई तल्ख टिप्पणी कर दी। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने रौद्र रूप भैरव को जन्म दिया। जिनका वाहन कुत्ता है, उनके हाथ में एक छड़ी है। इस अवतार को ही ‘महाकालेश्वर’ का नाम दिया गया। इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है।
भैरव जी ने क्रोध में ब्रह्माजी को क्षति पहुंचाई। परिणामस्वरूप भैरवजी को ब्रह्महत्या दोषी माना गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भैरव बाबा को उनके कार्यों के कारण दंड मिला। लंबे अंतराल के बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसलिए इन्हे काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।
अनुष्ठान
इस दिन भक्त लोग प्रातः काल उठ, स्नानादि से निवृत्त हो, पूरे विधि-विधान से काल भैरव और भगवान महादेव की मंत्रों के साथ पूजा की जाती है। काल भैरव मृत्यु के भय से मुक्ति के साथ ही पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं अतः इस दिन सुबह पितरों के लिए भी विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है। भक्त इस दिन काल भैरव और भगवान शिव के निमित उपवास भी रखते है जिसका समापन ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, धन आदि दान करके किया जाता है।
महत्व
कालाष्टमी या काल अष्टमी हिंदुओं का भगवान भैरव को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। कालाष्टमी का महत्व ‘आदित्य पुराण’ में वर्णित है। आदित्य पुराण के अनुसार ‘काल’ का अर्थ समय है और ‘भैरव’ का अर्थ ‘शिव की अभिव्यक्ति’ है।
कालाष्टमी के दिन व्रत और पूजन करने से भक्त को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति प्राप्त होती है। काल भैरव की पूजा से शत्रु बाधा और रोगों से भी मुक्ति मिलती है। काल भैरव दुष्ट प्रवृत्ति वाले लोगों के लिए दंड देने वाले हैं और अपने भक्तों की रक्षा करने वाले और उनके लिए सौम्य हैं।