चेतनादित्य आलोक
शास्त्रों में ज्येष्ठ महीने को बहुत पवित्र माना जाता है। इस महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अपरा एकादशी अथवा अचला एकादशी कहा जाता है। सभी एकादशियों की तरह यह भी भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होती है। गौरतलब है कि यह किसी क्षेत्र विशेष का नहीं, बल्कि देशभर में पूरी लगन, निष्ठा और प्रतिबद्धता के साथ किया जाने वाला व्रत है। भाषा, संस्कार और परंपराओं की विविधता के कारण इसे देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर राज्य तथा जम्मू केंद्रशासित प्रदेश में इसे ‘भद्रकाली एकादशी’ के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी भद्रकाली की पूजा-अर्चना करना अत्यंत शुभ माना जाता है। वहीं, उड़ीसा में अपरा एकादशी को ‘जलक्रीड़ा एकादशी’ कहा जाता है और इसे भगवान श्री जगन्नाथ जी के सम्मान में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अपरा एकादशी व्रत अपार पुण्य प्रदान करने वाली एवं बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली होती है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अपरा एकादशी व्रत के शुभ प्रभाव से ब्रह्म हत्या जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। व्यक्ति को अपार पुण्य एवं असीमित धन की भी प्राप्ति की संभावनाएं बनती हैं। अपरा एकादशी को उपवास रख कर व्रत की कथा का वाचन या श्रवण करने से सहस्रों गौ के दान करने का पुण्य फल मिलता है। जिस घर-परिवार में सुख और समृद्धि का अभाव हो तथा जहां अक्सर कलह होता रहता हो उस घर-परिवार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति एवं पारिवारिक दुखों और कष्टों से मुक्ति के उद्देश्य से अपरा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस अवसर पर शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ शुभ आचरण एवं पवित्र मन के साथ यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि से रहित होकर इस व्रत को विधिवत करने वाले भक्तों को भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से सभी दुखों और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
महत्व
‘ब्रह्मपुराण’ में अपरा एकादशी का महत्व विस्तार से बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उनके ‘त्रिविक्रम’ या ‘वामन’ रूप में करना चाहिए। नारद पुराण एवं भविष्य पुराण के मुताबिक अपरा एकादशी का व्रत और पूजन करने से जाने-अनजाने में हुए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है।
महाभारत में बताया गया है कि पांडवों ने अपरा एकादशी की महिमा पहली बार भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनी और उनके ही मार्गदर्शन में इस व्रत को करके पांडवों ने महाभारत युद्ध में विजयश्री का स्वाद चखा था। यही नहीं, पांडवों के पुरोहित धौम्य ऋषि ने भी इस व्रत को किया था। शास्त्रों के अनुसार एक बार धौम्य ऋषि जंगल से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने एक पीपल के पेड़ पर एक राजा को प्रेत रूप में देखा। परमार्थ और मानव कल्याण के प्रेरणा-पुंज धौम्य ऋषि ने अपने तपोबल से उस राजा के प्रेत बनने का कारण जाना। तत्पश्चात उन्होंने पीपल के पेड़ से उस प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया।
ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत रखा और उसका पुण्य फल प्रेत बने उस राजा को प्रदान कर दिया, जिससे वह प्रेत योनि से मुक्त हुआ। इस प्रकार देखा जाए तो अपरा एकादशी के व्रत का महत्व द्वापर युग से भी जुड़ा हुआ है।
व्रत-पर्व
28 मई : ज्येष्ठ मंगल (बड़का मंगल)।
29 मई : मेला ग्राम पंजगाईं (बिलासपुर)।
31 मई : श्रीशीतलाष्टमी व्रत, त्रिलोचनाष्टमी (बंगाल), मेला श्यामाकाली (सरकाघाट)।
1 जून : मेला स्थूल मढ़ोल (हि.प्र.)।
2 जून : अपरा एकादशी व्रत (स्मार्त्त), मेला भद्रकाली (कपूरथला, पंजाब), गुरु पूर्वोदय जलक्रीड़ा एकादशी (उड़ीसा), मेला जखोली (उत्तराखंड)। – सत्यव्रत बेंजवाल