मोनिका शर्मा
श्रावण मास शृंगारित धरा, हर ओर हरियाली और खिली-खिली प्रकृति का मौसम। चैत्र मास से शुरू होने वाले हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह पांचवां महीना होता है। तपती धरा पर बरसी बूंदों की शीतलता का यह मास आस्था और उपासना के कई पर्व अनुष्ठान साथ लाता है। श्रावण के महीने में मनाए जाने वाले सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े होते हैं। उनसे जुड़े धार्मिक आस्था के पर्व हमें व्यावहारिक रूप से प्रकृति से जोड़ते हैं। ऐसे पर्वों से जुड़ा उल्लास का भाव धरती के शृंगार में इन्द्रधनुषी रंग भरता है। प्रकृति को सहेजने की सीख देता है।
आस्था और अनुष्ठानों का महीना
हमारे यहां ऐसे कई व्रत-त्योहार हैं, जिनमें प्रकृति को ही पूजा जाता है। कुदरत को आराध्य मानने का यह भाव श्रावण के महीने में सबसे ज्यादा मुखर होता है। तभी तो बरसती बूंदों के इस महीने में तीज-त्योहारों, धार्मिक अनुष्ठानों के स्नेहिल और सरोकारी रंग हरियाली की तरह हर तरफ छा जाते हैं। हरियाली अमावस, हरियाली तीज, रक्षा बंधन, नागपंचमी और विशेष रूप से भगवान शिव की उपासना के सोमवार इस महीने के प्रमुख पर्व हैं। ऐसे त्योहार सही अर्थों में प्रकृति के पूजन और सृजन से जुड़े हैं। पौराणिक मान्यताओं में इस महीने को भगवान शिव की उपासना का महीना ही माना जाता है। स्वयं महादेव भी कहते हैं कि मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इन दिनों मनाए जाने वाले सभी पर्वों का साझा संदेश पर्यावरण संरक्षण है। श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाने वाला हरियाली तीज प्रकृति के आंगन से जुड़ने का त्योहार है। हर ओर छायी हरियाली में पिकनिक, झूले और महादेव का पूजा-अर्चन कर कुदरत से अपनी आस्था को जोड़ने का सामुदायिक उत्सव है। हरियाली अमावस्या के दिन पौधरोपण का कार्य किया जाता है तो रक्षाबंधन भी प्रकृति की रक्षा करने का आह्वान करने वाला त्योहार है।
परंपराओं को पोषित करती रुत
श्रावण का महीना दैवीय ही नहीं मानवीय भावों से भी गहराई से जुड़ा है। यह हमारे भावनात्मक बन्धनों को भी पोषित करता है। तभी तो सावन में धर्म कर्म ही नहीं परम्परा के भी खूब रंग खिलते हैं। विशेषकर महिलाओं के मन-जीवन से जुड़ी कई परम्पराएं वाकई सुंदर और सार्थक भाव लिए हैं। पीहर और ससुराल के आंगन से जोड़ते कई रिवाज आज भी उमंग और उल्लास के भाव जगाते हैं। रिश्तों के प्रति सकारात्मक भाव और जुड़ाव को पोषित करते हैं, जो आज के दौर में सबसे ज्यादा जरूरी है। श्रावण में कहीं लहरिया पहनने की रीत है तो कहीं हरी चूड़ियां। देश के कई हिस्सों में श्रावण मास में बेटियों को मायके आने का न्योता दिया जाता है। सुखद यह कि बदलते वक्त के साथ भी परंपरा के यह रंग फीके नहीं पड़े हैं।
जीवन से जोड़ती आस्था
बरखा की बूंदों से सिंचित सोंधी सुंगध से परिपूर्ण परिवेश का यह महीना समझाता है कि प्रकृति ही ईश्वर है। आषाढ़ में बुआई के खेतों को सींचता बरसात का जल ही जीवन का आधार है। विभिन्न जल स्रोतों में जमा होने वाला यही बरसाती पानी वर्ष भर इस धरती पर मौजूद हर जीव की प्यास बुझाता है। श्रावण में सूखते जलाशय, नदी और पोखर सभी नया जीवन पाते हैं। तभी तो यह मौसम हमारी उम्मीदों से भी जुड़ा होता है। साल भर की खेती किसानी इसी मौसम में बरसीं फुहारों पर निर्भर होती है। यही वजह है कि बरसात की बूंदों की अगवानी मन और जीवन दोनों करते हैं। इस महीने हर ओर छाया हरापन हर किसी के मन को सकारात्मक संभावनाओं की उम्मीद से भर देता है। टिप-टिप, टप-टप और छपाक की धुन में ज़िंदगी मानो नया ही संगीत सुनती है। महादेव की उपासना और कुदरत से जुड़ने का यह मास सचमुच मनोहारी छटा और आलौकिक भाव साथ लाता है।