स्वामी समर्थ गुरु रामदास सदा प्रेम, अहिंसा और भाईचारे की बात करते हुए उपदेश दिया करते थे। धार्मिक आडंबर और व्यर्थ के कर्मकांडों की भी वह भर्त्सना किया करते थे। वे एक दिन अंधविश्वासों से जकड़े एक गांव के बीच उपदेश दे रहे थे। उन्हें ज्ञात हुआ कि कल सुबह गांव के मुखिया द्वारा ग्राम देवता को पशु बलि चढ़ाई जाएगी। उनका मन खिन्न हो उठा और वह इस प्रथा को रोकने की युक्ति सोचने लगे। उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को प्रातः तैयार रहने को कहा। सुबह उठते ही वह सब बलि स्थल पर जा पहुंचे। इससे पहले कि बलि चढ़ाई जाती, उन्होंने शिष्यों की मदद से मुखिया को पकड़ा और उन्हें चौराहे तक ले आए। मुखिया बोला— हमें तो देवता का आदेश है कि घर, गांव की खुशहाली के लिए बलि आवश्यक है। इस पर रामदास जी बोले— मुझे तो बीती रात ही इन देवता ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा है कि यदि मैं बलि देने वाले की बलि चढ़ाऊंगा तो इस गांव में सात पीढ़ियों तक रोग, भुखमरी नहीं फैलेगी। बात उल्टी पड़ती देख मुखिया ने गुरु जी के चरणों में गिरकर कभी बलि न चढ़ाने की बात कही, तब जाकर गुरु जी ने उसको छोड़ा। प्रस्तुति : मुकेश कुमार जैन