शक्ति वर्मा
भारत में सरकारी नौकरी का बड़ा क्रेज है। केवल क्रेज ही नहीं बल्कि नौकरी में स्थायित्व और निजी संस्थानों द्वारा कर्मचारी विरोधी नियमों के शोषण से भी बचाती है सरकारी नौकरी। लेकिन पिछले कई सालों से केंद्र और राज्य सरकारों के खाली पदों पर भर्ती में बेतरह देरी हो रही है। इस देरी के कारण बेरोजगार युवाओं को जो मानसिक और शारीरिक उत्ताप झेलना पड़ता है, उसी पर केंद्रित है सोहेल रजा का उपन्यास ‘ताश के पत्ते।’
‘ताश के पत्ते’ का नायक आदिल भी बेरोजगार युवा है। वह एसएससी की तैयारी कर रहा है। समय पर परिणाम न निकलने तथा परीक्षा के स्थगित होने से बेचैन है। सीजीएल की परीक्षा में नकलची पकड़े जाने के कारण कोर्ट ने रिजल्ट पर रोक लगा दी है। इसकी भर्ती जल्दी पूरी कराने के लिए देशभर के अभ्यर्थी दिल्ली कूच करते हैं और वहां धरना देते हैं। उपन्यास के लेखक सोहेल रजा भी वर्ष 2013 और 2014 में सीजीएल की परीक्षा में बैठे थे। सोहेल बताते हैं कि उस साल नकलचियों के चलते सीजीएल की परीक्षा का परिणाम घोषित करने पर कोर्ट ने रोक लगा दी। परीक्षा का परिणाम न निकलने से लाखों अभ्यर्थी और उनके परिजनों मानसिक संताप भोग रहे हैं। इसी दौरान आदिल को मोबाइल पर एक मैसेज मिलता है कि सीजीएल परीक्षा का परिणाम घोषित करवाने की मांग को लेकर दिल्ली में एक धरना आयोजित किया जा रहा है। आप भी उसमें शामिल हों। आदिल धरने में शामिल होने के लिए तैयार हो जाता है और अपने मां-बाप को भी मना लेता है। वहां पहुंच कर देखता है कि काफी संख्या में युवक धरना देने पहुंचे हैं। आंदोलन के असर से विभाग फिर से परीक्षा कराने की मांग मान लेता है।
सोहेल ने आदिल के जरिए उस पूरे घटनाक्रम को विस्तार देकर उपन्यास का रूप दिया है। उपन्यास में बेरोजगार युवाओं का संघर्ष, दिल्ली में जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते युवाओं का दर्द, कोचिंग सेंटरों के हाल के साथ प्रेम और रोमांस को भी कहानी में डाला गया है।
सोहेल रजा लिखते हैं, देश में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और बेरोजगारी से जूझते लाखों हिंदुस्तानी युवाओं का सपना है सरकारी नौकरी। इस सपने को साकार करने के लिए वे अपनी जवानी के आठ-दस साल लगा देते हैं। लेकिन लम्बे संघर्ष के बावजूद बहुतों को नौकरी हाथ नहीं लगती। इसका कारण अभ्यर्थियों की काबिलियत की कमी कम, व्यवस्था की अनियमितताओं का नतीजा ज्यादा होता है। उपन्यास यथार्थवादी है। यह संदेश भी देता है कि एकजुट होकर संघर्ष करके ही हक हासिल किया जा सकता है। उसके दोस्तों का दिल्ली में जमावड़ा एक सवाल उठाता है कि सरकारी अव्यवस्था का दंड आखिर युवा वर्ग कब तक भुगतेगा।
पुस्तक : ताश के पत्ते लेखक : सोहेल रज़ा प्रकाशक : राजपाल एंड संस, नयी दिल्ली पृष्ठ : 224 मूल्य : रु. 295.