
आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
‘छल गाथा’ नाटक विधा के सशक्त हस्ताक्षर अमृतलाल मदान की एक ऐसी कृति है। रचनाकार ने अपने मन को ही एक रंगमंच मान कर अपनी कल्पना शक्ति एवं सृजन-प्रतिभा एवं क्षमता के आधार पर दो सुविज्ञात मिथकों (देवासुर संग्राम तथा सागर मंथन) का उपयोग करते हुए ‘छल गाथा’ और ‘तलछट कथा’ नामक दो काव्य-नाटकों की रचना की है। रचनाओं के पात्रों के आकार-प्रकार और परिवेश सब कुछ लेखक की कल्पना के अनुसार प्रतीकात्मक होने की वज़ह से हर पाठक को अपने परिवेश का यथार्थ और चाहत का आदर्श रूप लगने की क्षमता रखता है।
नाटक ‘छल गाथा’ का कथानक जयशंकर प्रसाद की कृति ‘कामायनी’ की तरह खुलता है। जिस तरह से कामायनी का कथानक अवसादग्रस्त मनु के परिवेश के प्रति मनु के मन की प्रतिक्रया से शुरू होता है, उसी तरह से प्रस्तुत नाटक में भी स्रष्टा अपने मन के स्तर पर पृथ्वीलोक की परिस्थितियों पर विचार रूप में अपनी मनोस्थिति को स्पष्ट करता है और विचार के इसी क्रम में नाटक के नायक स्रष्टा और नायिका पृथ्वी का काव्य-संवाद पृथ्वीलोक की त्रासद स्थितियों को स्पष्ट करता है। संवाद से स्पष्ट रूप में सामने आई समस्या के समाधान के लिए इन मुख्य पात्रों के द्वंद्व और अंतर्द्वंद्व की तरह अन्य पात्रों का द्वंद्व और अंतर्द्वंद्व भी नाटककार ने बखूबी चित्रित किया है। अंततः नाटक पृथ्वी के इस संवाद के साथ समाप्त होता है कि ‘कुछ तुम भी उतरो नीचे, कुछ मैं भी आऊं नीचे सयास, हो मनुज चेतना फिर से चैतन्य समझे स्वीकारे यह विरोधाभास। परस्पर प्रेम ही उत्थान, घृणा-हिंसा ही पतन व ह्रास।’ मतलब कि प्रेम के आधार पर विश्वशांति के लिए समन्वय की भावना का होना अति आवश्यक है।
इसी तरह से दूसरे काव्य-नाटक ‘तलछट कथा’ का कथानक भी पृथ्वीलोक पर विचरण करने वाले प्राणियों के व्यवहार को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है, पर इस नाटक के पात्र प्रतीकात्मक नहीं, परिवेशगत हैं। विवेच्य काव्य नाटक की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें नट-नटनी के व्यंग्य-व्यवहार ने सूत्रधार का काम किया है। पात्रों के कार्य-व्यवहार व संदेश की दृष्टि से दोनों नाटक परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और सम्भवतः इसी से इस कृति का शीर्षक ‘छल गाथा’ रखा गया है।
कुल मिलकर प्रस्तुत कृति के दोनों काव्य-नाटकों का संयुक्त कथानक संयुक्त रूप से मानव-जीवन का सार प्रस्तुत करते हुए सार्थक संदेश छोड़ता है कि यह जीवन एक छलावा है, यहां प्रत्येक पात्र जाने-अनजाने में एक-दूसरे को छल रहा है और छला भी जा रहा है किन्तु कटु सत्य यह है कि अंततः तलछट को ही शेष रह जाना है।
पुस्तक : छल गाथा लेखक : अमृतलाल मदान प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, मेरठ पृष्ठ : 127 मूल्य : रु. 165.
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