सुभाष रस्तोगी
महामारी कोरोना इस शताब्दी की सबसे बड़ी चुनौती है और लॉकडाउन इसकी संक्रमण की कड़ी को तोड़ने का अब तक का सबसे मजबूत हथियार। इस कहानी संग्रह के अंत में लेखक का ‘मोदी जी के नाम खुला पत्र’ में वास्तव में इस कहानी-संग्रह की आत्मा निहित है। इस खुले पत्र की यह पंक्तियां काबिलेगौर है, ‘मोदी जी आपके पास अर्थतंत्र की समझ भले ही न हो, पर आप इस देश के मानस को समझते हो, शायद यही आपकी शक्ति है।’ संभवत: इसलिए लॉकडाउन के कारण हजारों शायद लाखों की तादाद में लोग बेकार हो गये। लेकिन आज बहुमत का समर्थन मोदी जी के पक्ष में बरकरार है।
वरिष्ठ पत्रकार लेखक सुरेंद्र अवस्थी के सद्य: प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘लॉकडाउन’ में कोरोना संवेदना से जन्मी कुल 23 कहानियां संगृहीत हैं। यह कोरोना महामारी की संवेदना से जन्मी कहानियों का चूंकि पहला कहानी संग्रह है, इसलिए इसकी प्रासंगिकता तो हमेशा बनी रहेगी।
‘बेबे चल बसी-मुझे पागलखाने भर्ती करवा दो’, ‘सोशल डिस्टेंस एवं लॉकडाउन’, ‘पेट तो भर गया… पर’, ‘पति-पत्नी और कोरोना’, ‘संस्कार पर बेटों का इंतजार’, ‘मां’ का आखिरी वार’, ‘मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगी-काउंसलर’ तथा ‘मेरी बेटी का डॉक्टर’ सुरेंद्र अवस्थी के कोरोना संवेदना से जन्मे इस कहानी-संग्रह ‘लॉकडाउन’ के पाठक के मन में गहरा उद्वेलन पैदा करने वाली तेजधार कहानियां हैं।
कोरोना महामारी के संक्रमण के आतंक ने तो जैसे मानवीय जीवन का चलन ही बदल दिया है। ‘संस्कार पर बेटों का इंतजार; मां का आखिरी वार इसके एक साक्ष्य के रूप में देखी जा सकती है। इस कहानी में जब बेटों को पता चलता है कि उनकी मां कोरोना संक्रमण से संक्रमित है तो उसकी मृत्यु होने पर उसके बेटे अपनी मां के शव को लेने के लिए भी तैयार नहीं होते और वे अस्पताल के अधिकारियों को दोटूक जवाब दे देते हैं कि ‘वे ही इस शव का अंतिम संस्कार कर दें।’
कोरोना संवेदना से जन्मी इन कहानियों का एक दूसरा छोर ‘मैं तुम्हें मरने नहीं दूगी-काउंसलर’ में उद्घाटित हुआ है। कोरोना संक्रमण से ठीक हुई रेशमा को जब पता चलता है कि उसकी काउंसलर अमृत स्वयं कोरोना की चपेट में आ गई है तो वह समस्त सावधानियों का इस्तेमाल करके जैसे-तैसे अमृत के कमरे तक पहुंच जाती है और उसे जागते हुए देखकर भावविह्वल हो लगभग चीखती हुए कहती है ‘अमृत मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगी?’
यह कोरोना संवेदना से जन्मी सुरेंद्र अवस्थी के इस कहानी-संग्रह के दो छोर हैं एक स्याह… बेहद अमानवीय और दूसरा धवल… बेहद मानवीय।
सुरेंद्र अवस्थी के प्रथम कहानी-संग्रह ‘लॉकडाउन’ की यह कहानियां कोरोना संक्रमण के आतंक से बदलती जीवनशैली के स्याह और धवल दोनों पक्षों को विश्वसनीयता से रेखांकित करती हैं। यही इन कहानियों की सबसे बड़ी विशिष्टता है जो हमें आतंकित भी करती है और सुखद कल के प्रति हमें आश्वस्त भी करती है। वास्तव में यह ‘हमारे आसपास की नहीं, बल्कि हमारी अपनी कहानियां हैं, जो काल्पनिक भी हैं और यथार्थ भी।’
पुस्तक : लॉकडाउन लेखक : सुरेंद्र अवस्थी प्रकाशक : आयुष पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 295.